- अयोध्या नगरी में छाई उदासी केवट ने श्री राम को पार कराई सरयू नदी
गाजियाबाद। श्री रामलीला समिति, राजनगर में दशरथनन्दन राम के राज्याभिषेक की तैयारी चल रही हैं। पूरी अयोध्या में जश्न मनाया जा रहा हैं। राम के राज्याभिषेक से सभी हर्षित हो रहे हैं। तभी राजा दशरथ को रानी कैकेयी के कोप भवन में जाने की सूचना मिलती है और उसके बाद राम को वनवास की सूचना से अयोध्या का पूरा माहौल दुख के सागर में डूब जाता हैं। होश में आने पर जब राजा दशरथ को पता चलता हैं कि राम लक्ष्मण और सीता वन की ओर प्रस्थान कर गए हैं तो पुत्र वियोग में उनके प्राण पखेरु उड़ जाते हैं। मरने से पूर्व वह रानी कौशल्या को श्रवण और उसके माता पिता की घटना को विस्तार से बताते है। वन में प्रस्थान से पूर्व मांझी केवट श्री राम को नाव से सरयू नदी पार कराता हैं। तब होता है राम- केवट संवाद। राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात् भरत भाई राम को मनाने वन में जाते हैं, राम के न मानने पर उनकी खडाऊं लेकर वापस लौटते हैं।
अयोध्या नगरी में चारों राजकुमारों के विवाह के बाद चारों ओर खुशियां बरस रहीं हैं। राजा दशरथ ऐसे माहौल में राम के राज्याभिषेक की घोषणा करके खुद संन्यास लेने का मन बना रहे हैं। ऐसे में भगवान शंकर को चिंता होती हैं कि भगवान राम ने जिस उद्देश्य के लिए धरती पर अवतार लिया है कहीं वह कार्य अधूरा न रह जाए। तब वह माता सरस्वती के सहयोग से रानी कैकेयी की दासी मंथरा की बुद्धि भ्रमित कर देते हैं। जिससे मंथरा रानी कैकेयी के कान भरती हैं और वह कोप भवन में जाकर लेट जाती हैं। जब राजा दशरथ को इसकी सूचना मिलती हैं तो रानी कैकेयी से वातार्लाप करने के लिए कोप भवन पहुॅचतें हैं और उन्हें मनाने की कोशिश करते हैं। तब रानी कैकेयी उन्हें याद दिलाती हैं कि युद्ध के दौरान राजा दशरथ ने उन्हें दो वरदान देने को कहा था। राजा दशरथ द्वारा वरदान मांगनें के लिए कहने पर पर वह राम के लिए 14 वर्षो का वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी मांगती हैं। राजा दशरथ फिर उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन रानी कैकेयी अपनी मांग पर अड़ी रहती हैं। जिसके कारण राजा दशरथ की हालत चिंताजनक हो जाती हैं। तब राम को माता कैकेयी की मांग का पता चलता हैं तो वह राजसी वस्त्र उतार कर वन गमन के लिए तैयार हो जाते हैं। उनके साथ सीता जी तथा लक्ष्मण भी वन जाने को तैयार हो जाते हैं।
भगवान श्री राम अपने पिता के वचनों का पालन करने के लिए राजसी वस्त्र उतार कर वन की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। सभी के समझाने पर राम नहीं मानते हैं। उनके पीछे पीछे सारे अयोध्यावासी भी रोते बिलखते चल रहे हैं। बार बार उनसे यही अनुरोध कर रहे हैं कि वह वन को न जाएं। सभी के समझाने पर राम नहीं मानते हैं। यह दृश्य पूरे अयोध्यावासियों के साथ साथ मैदान में मौजूद सभी दर्शकों को भी विचलित कर देता हैं।
अयोध्यावासियों के सोने के पश्चात श्री राम सरयू नदी पार कर जाते हैं। नदी पार कराने के लिए केवट पहले उनके चरण धोता हैं जिस पर राम मना करते हैं तो दोनों के बीच लम्बा संवाद होता हैं। नदी पार उतरने के बाद उतराई के रुप में वह केवट को अपनी मुद्रिका देते हैं, जिसे वह लेने से इंकार कर देता है। केवट कहता है कि जब भगवन आपके पास मैं आंऊ तो मुझे भी भवसागर से पार करा देना। तब भगवान राम उसे अविरल भक्ति का वरदान देकर आगे बढ़ जाते हैं। दूसरी ओर राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात अयोध्या नगरी में चारों ओर हाहाकार मचा हुआ हैं। राजा दशरथ की मृत्यु के बाद राजकुमार भरत को तत्काल उनकी ननिहाल से बुलाया जाता हैं। अयोध्या वापस लौटने पर जब भरत को सारी स्थितियों का पता चलता हैं तो वह अपनी माता कैकेयी को काफी खरी खोटी सुनाते हैं। पिता का दाह संस्कार करने के बाद वह गुरु, मंत्री, तीनों माताओं व अन्य दरबारियों के साथ वन में श्री राम से मिलने पहुंचते हैं और वापस अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं। राम द्वारा मना करने पर वह राम जी की चरण पादुका सिर पर धारण करके वापस अयोध्या लौटते हैं।
इस मौके पर श्री रामलीला समिति के संरक्षक जितेन्द्र यादव तथा सत्यप्रकाश शर्मा, अध्यक्ष जयकुमार गुप्ता, महामंत्री रवीन्द्रनाथ पाण्डेय, कोषाध्यक्ष राजीव मोहन गुप्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष जीपी अग्रवाल, उपाध्यक्ष सुभाष शर्मा, केपी गुप्ता, अमरीश त्यागी, ब्रजमोहन सिंघल, आर के शर्मा, संगठन मंत्री विनीत शर्मा, मंत्री मुकेश मित्तल, मनीश वशिष्ठ, वीरेन्द्र चैधरी, प्रचार मंत्री रेखा अग्रवाल, सौरभ गर्ग एवं गोल्डी सहगल, अनिल गुप्ता, योगेश गोयल, विनोद गोयल, दिनेश शर्मा, विजय लुम्बा, ओमप्रकाश भोला, ओमदत्त कौशिक, जय सिंह, दीपक सिंघल, डी.डी. शर्मा, नवीन पण्डित, नवीन सिंघल, राधेश्याम सिंघल, जेपी राणा, बी.के. अग्रवाल, आकाश वशिष्ठ, बी.के. गुप्ता, सहित कई राजनगरवासी भी मौजूद थे।