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मनुष्य की आत्मा कर्म करने में स्वतंत्र है:आर्य

  • वैदिक सिद्धांत सर्वोपरि पर गोष्ठी सम्पन्न
    गाजियाबाद।
    केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के 267 वें आर्य वेबिनार में वैदिक सिद्धांत सर्वोपरि भाग- 5 में आचार्य विजय भूषण आर्य ने उन सिद्धांतों को प्रस्तुत किया गया जिस पर अधिकांश लोग ध्यान नहीं देते। जो कुछ भी कहता है उसे स्वीकार कर लेते हैं और यह अज्ञान परम्परा के रूप में आगे चलने लगता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर त्रिकालदर्शी है अथवा नहीं इस विषय को सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने जो लिखा है उसका हवाला देते हुए कहा कि ईश्वर को त्रिकालदर्शी कहना या मानना मूर्खता का काम है। ईश्वर भूतकाल भी जानता है कि हमने कौन से कर्म किये और ईश्वर यह भी जानता है कि वर्तमान में हम कौन से कर्म कर रहे हैं परन्तु ईश्वर यह नहीं जानता कि हम भविष्य में क्या करेंगे। यहां अनेक लोग शंका करने लगते हैं कि ईश्वर को ही नहीं पता, तो वह काहे का ईश्वर? उसमें इतनी भी शक्ति नहीं है? ये भोले लोग वैदिक सिद्धांत को नहीं जानते, तभी ऐसा कहते हैं। वैदिक सिद्धांत यह है कि हमारा आत्मा कर्म करने में स्वतंत्र है। ईश्वर की विशेषता यह है कि जैसे ही हमने सोचा, ईश्वर ने तुरन्त जान लिया। परन्तु दूसरा कोई नहीं जान सका। हम जो विचार करना शुरू करते हैं और उसे कार्यान्वित भी कर देते हैं तब भी अन्य मनुष्यों को उसका ज्ञान नहीं होता। अत: ईश्वर को ऐसा कहने का साहस करना अपने आप को बहुत बड़ा विद्वान समझने की भूल करना है।
    ईश्वर कभी भी किसी प्रकार की इच्छा नहीं करता क्योंकि इच्छा होती है अप्राप्त पदार्थ की, जिसकी प्राप्ति से सुख विशेष होवे। अत: ईश्वर इच्छा नहीं करता। हां, ईक्षण अवश्य करता है जिसका अर्थ है जब सृष्टि की रचना का समय आता है तब वह सृष्टि को रचने का जो कार्य करता है, इसे ईक्षण कहते हैं। इसके अतिरिक्त आचार्य ने मुक्ति से जीवात्मा क्यों लौटता है, दाने दाने पर ईश्वर ने पहले से किसी का भी नाम नहीं लिख रखा है,भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं- यह बोलना भी ईश्वर पर दोष लगाने के समान है। क्योंकि देर करना गुण नहीं है, देर करना दोष कहलाता है। ईश्वर के बारे में यह कहना उसके घर देर है,अंधेर नहीं यह सिद्ध कर रहा है कि ईश्वर ! आप गलती तो करते हो, पर सुधार कर लेते हो । ऐसा कहना अपने आप को ईश्वर से ज्यादा अपने आपको बुद्धिमान मानना है जो उचित नहीं है। ईश्वर कैसा है, कैसी है उसकी योग्यता ? यज्ञ में पूणार्हुति से पूर्व ओ३म पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्ण मुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते। यह मंत्र ईश्वर की पूर्णता को और उसकी शक्तियों का बखान कर रहा है और हम उसकी गलतियां निकालने का प्रयास कर रहे हैं? ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। आचार्य विजय भूषण आर्य ने इन वैदिक सिद्धांतों को जीवन में अपनाने का संदेश दिया। हम सभी वैदिक ज्ञान का प्रचार प्रसार करें न कि अवैदिक बातों का। हम सही अर्थों में आर्य बनें तभी हमारे जीवन का कल्याण संभव है। केंद्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि वेद ज्ञान सृष्टि के प्रारंभ से व सर्वकालिक है, सार्वभौमिक है और मानवमात्र के लिए है। मुख्य अतिथि झारखंड राज्य आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री पूर्ण चंद आर्य व आर्य केन्द्रीय सभा फरीदाबाद के महामंत्री आचार्य रघुवीर शास्त्री ने कहा कि यज्ञ सर्वकल्याण की भावना से किया जाता है और इसका लाभ सबको बराबर बिना पक्षपात के सबको मिलता है अत: यज्ञीय भावना सर्वश्रेष्ठ है। राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि वेद मार्ग पर चलकर ही विश्व में शांति हो सकती है। गायिका प्रवीना ठक्कर (नासिक), प्रवीन आर्या, बिंदु मदान, रजनी गर्ग, रजनी चुघ, ईश्वर देवी, कुसुम भंडारी, सुखवर्षा सरदाना (देहरादून), प्रतिभा कटारिया, रवीन्द्र गुप्ता, आदर्श मेहता, सुमित्रा गुप्ता (90 वर्षीय) ने मधुर भजन प्रस्तुत किये । प्रमुख रूप से आचार्य महेन्द्र भाई, राजेश मेहंदीरत्ता, प्रेम सचदेवा, डॉ. सुषमा आर्या, आशा आर्या, डॉ. रचना चावला, डॉ, विपिन खेड़ा, आस्था आर्या आदि उपस्थित थे।

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