चर्चा-ए-आमराष्ट्रीय
मुफ्तखोर भारत कैसे बनेगा विकसित देश ?

कमल सेखरी कहते हैं कि मुफ्तखोरी का नशा सबसे बुरा नशा होता है। एक बार मुफ्तखोरी का ये नशा मुंह लग जाए तो सिर चढ़कर बोलता है। नशा किसी तरह का हो चाहे गांजे का हो या अफीम का या फिर स्मैक का या सिगरेट या शराब का, कोई भी आदमी अपने जीवन में पहली बार इस तरह का कोई नशा करता है तो कभी खुद से खरीदकर नहीं करता उसे ऐसे नशों की आदत उसका कोई दोस्त या करीबी संबंधी पहली बार मुफ्त में कराता है। और जब वो व्यक्ति नशे का आदी हो जाता है तो अपना घर फूंककर भी वो उस नशे को करता है। ऐसे ही हमारे देश के राजनेताओं ने हमारे देश के आवाम को मुफ्तखोरी के नशे का आदी बना दिया है। इन राजनेताओं ने सत्ता में आने के लिए सबसे सरल व सुगम रास्ता इस मुफ्तखोरी के जरिये ही ढूंढ लिया है। केन्द्र की सत्ता में आई भाजपा सरकार के नेताओं ने 2014 के चुनावों में पहली बार मुफ्तखोरी का एक बड़ा पिटारा खोला। कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए देश की आवाम को कहा गया कि कांग्रेस के कार्यकाल में विदेशों के बैंकों में इतना अधिक काला धन जमा हुआ है जिसे हम सत्ता में आते ही वापस लाएंगे और वो धन इतना अधिक होगा कि देश के हर नागरिक के बैंक खाते में 15-15 लाख रुपए पहुंचाने का काम किया जाएगा। बुद्धिजीवी और चिंतनशील वर्ग के लोग तो समझ गए थे कि ये चुनावी जुमलेबाजी है लेकिन आवाम के एक बड़े हिस्से ने इस घोषणा को सुनकर मुंगेरीलाल के सपने देखने शुरू कर दिए और नतीजा ये निकला कि मुंगेरीलालों ने सपने दिखाने वाले राजनेताओं की पार्टी को जिताकर केन्द्र की सत्ता में बैठा दिया। अब वो 15 लाख रुपए कहां गए, कितना काला धन विदेशों से आया, इसका हिसाब कई बार पूछे जाने पर भी नहीं बताया गया और अंत में यही कहकर पूर्णविराम लगा दिया कि वो तो एक चुनावी जुमला था जो चुनाव के साथ ही खत्म हो गया। लेकिन वहां से ही हमारे देश की राजनीति में एक नया चलन शुरू हुआ कि किसी भी चुनाव में विकास या जनहित के किसी मुददे पर बात किये बिना देश के मतदाताओं को कोई ना कोई प्रलोभन और लालच देकर उनसे अपने पक्ष में मतदान करा जा सकता है। पिछले कुछ समय से लोकसभा के चुनाव से लेकर और जितने भी प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए हैं सभी में मतदाताओं को कई तरह के प्रलोभन दिये गये और उन्हें मुफ्तखोरी के रास्ते पर चलाने की कोशिश की, ये कोशिश सफल हुई और मुफ्तखोरी देश के एक बड़े हिस्से के मतदाताओं के ऐसे मुंह लगी कि उसने यह सोचना और समझना ही बंद कर दिया कि कौन सा राजनीतिक दल देश के मुददों की बात कर रहा है। महंगाई जितनी बढ़ रही है उसे बढ़ने दो, बेरोजगार बिना रोजगार के कितनी भी बड़ी तादाद में पहुंच रहे हों उन्हें पहुंचने दो, देश की बाहरी सुरक्षा और आन्तरिक सुरक्षा किसी भी नाजुक दौर में आ जाए उसे आने दो, शिक्षा-स्वास्थ्य और अन्य जनता की जितनी भी अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी ना हो पा रही हों उन्हें भी दरकिनार कर बस ये ही सोचकर मतदान किया जाए कि हमें सत्ता में आने वाली पार्टी दे क्या रही है। और अब तो एक नया चलन शुरू हो गया है, नोट दो-वोट लो। अभी हाल के सभी चुनावों में आधी आबादी के नाम से महिलाओं के नाम पर हर राजनीतिक दल ने नकदी बांटी और महिलाएं वो नकदी लेकर वोट देने का आश्वासन दे आई। देश की लगभग तीन चौथाई आबादी को 5 किलो मुफ्त राशन बांटने की योजना भी चलाई जा रही है अब ऐसे में जहां हर राजनैतिक दल कई तरह के लालच और प्रलोभन देकर विकास और जनहित की कोई योजना दिये बिना वोट बटोर रहे हों और देश की जनता सब काम छोड़कर पांच किलो अनाज की पंक्ति में लग रही हो तो ऐसे में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम जल्द ही दुनिया के विकसित देशों की पंक्ति में आकर खड़े हो जाएंगे। जहां देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मुफ्तखोरी के नशे का शिकार हो गया हो तो वो देश दुनिया की तीसरी आर्थिक अर्थव्यवस्था बनने का दावा कैसे कर सकता है। अब से दस साल पहले भारत पर जो आर्थिक कर्ज 55 हजार करोड़ रुपए का था वो आज बढ़कर दो लाख अस्सी हजार करोड़ रुपए हो गया है। देश के इस आर्थिक कर्ज की परवाह किये बिना हमारे राजनेता सरकारी कोषों से दोनों हाथ भर-भरकर मतदाताओं को मुफ्त उपहारों के नाम से लुटा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के कुछ जजों ने अपने सार्वजनिक बयान में यह तक कहा है कि सरकार के पास मतदाताओं पर लुटाने के लिए पैसा है जबकि जजों के वेतन और पेंशन देने के लिए उसके कोष में व्यवस्था नहीं है। मुफ्तखोरी का ये दौर अगर इसी तरह अगले चुनावों में भी ऐसे ही चलता रहा तो वो समय दूर नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की जगह इतनी नीचे आकर गिर जाएगी कि विश्व हमें दया की दृष्टि से देखने लगेगा। ये मुफ्तखोरी तुरंत ना रोकी गई और ऐसे ही चलती रही तो शायद एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि मुफ्तखोरी के आदी लोग कोई भी कामकाज किए बिना अपने और परिवार के पालन-पोषण के लिए सरेआम सड़कों पर लूटपाट भी शुरू कर सकते हैं।