सम्भवत: आपमें से बहुत से पाठकगण यह शुभकामना पढ़कर चौंक गए होंगे। यही सोचकर कि यह तो अप्रैल का माह है। फिर नववर्ष कैसा!! पर क्या आप जानते हैं, भारत की मिट्टी से उठती सौंधी खुशबू, आकाश के नक्षत्र-तारे, सम्पूणर् ब्रह्माण्ड आपको इस महीने की एक तारीख को नववर्ष की बधाइयां दे रहा है? भारत का गौरवमयी अतीत, हमारे महामहिम मनीषी, पूर्वज और उनकी ज्ञान-विज्ञान सम्पन्न धरोहरें- सभी इसी दिन हम पर नववर्ष के आशीष लुटा रहे हैं! भारतीय विक्रम-संवत के अनुसार इस चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा याने एक अप्रैल को ही हमारा और आपका अपना, स्वदेशी नया साल शुरू हो रहा है।
संभवत: आपको यह भी न पता हो कि हमारे भारत का एक निजी कैलेन्डर और काल-गणना भी है, जिसे भारतीय संवत्सर या विक्रमी संवत कहते हैं। लगभग 2054 वर्ष पूर्व भारत के एक महान सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने प्राचीनतम अथवा वैदिक काल-गणना के आधार पर इस संवत की स्थापना की थी। यह कैलेन्डर शुरू से ही 12 माह का था तथा सूर्य और चंद्रमा- दोनों पर आधारित एक सर्वोत्तम वैज्ञानिक नमूना था। विश्व के सभी कैलेन्डरों से पूर्व इस विक्रमी संवत्सर का निर्माण हो गया था। विक्रम संवत के अनुसार नववर्ष का श्री गणेश चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को माना गया है। ब्रह्माण्ड पुराण का वर्णन है कि यही वह दिन है, जब सृष्टि सृजन की लीला शुरू हुई।
भारतीय संवत के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नवीनता की छटा अपने आप ही प्रत्यक्ष हो जाती है। एक नहीं, अनेक युक्तियां इस दिन को वर्ष का पहला दिवस घोषित करती हैं।
चैत्र शुक्ल के आते-आते कड़कती ठंड के तेवर ढीले पड़ चुके होते हैं। बर्फीली हवाएं बसन्त की बयार बन जाती हैं। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं- समस्त ऋतुओं में मैं बसन्त हूँ। चैत्र शुक्ल को इसी सर्वप्रिय, सर्वश्रेष्ठऋतुराज का पूरी प्रकृति पर राज हो जाता है। इसी के साथ प्रकृति का कण-कण, नव उमंग, उल्लास और प्रेरणा के संग, अंगड़ाई भर उठता है। यह चेतना, यह जागना, यह गति- यही तो नववर्ष के साक्षी हैं!
सामाजिक चेतना- उत्सवमयी! वैसे भी देखा जाए, तो चैत्र नक्षत्र के चमकते ही कश्मीर से लेकर केरल तक, भारत में उत्सवों के नगाड़े बज उठते हैं। इसी दिन नवरात्रों का भी शुभारम्भ होता है और भारतभर में मां जगदम्बा के जयकारे गूंज उठते हैं। अत: चैत्र शुक्ल पर ही भारत की सामाजिक चेतना नववर्ष में प्रवेश करती है।
अध्यात्म बल की धनी! चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन नक्षत्रों की दशा, स्थिति और प्रभाव उत्तम होता है। चैत्र शुक्ल को विशेष रूप से प्रजापति और सूर्य नामक तरंगों की बरखा होती है। ये सूक्ष्म तरंगें अध्यात्म बल की बहुत धनी और उत्थानकारी हुआ करती हैं।
अत: यदि इस शुभ घड़ी में सुसंकल्पों के साथ नए साल में कदम रखा जाए, तो कहना ही क्या!
भारतीय संवत व उसके आधार पर नव वर्षोत्सव का स्वागत-हमारे विजय गीतों के सुरों को और सुरीला करेगा। हमारी सांस्कृतिक क्रांति को नई बुलंदियां देगा। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
श्री आशुतोष महाराज
(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)