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नए वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन हुई सुनवाई, यथास्थिति बनाए रखने के आदेश, अगली सुनवाई 5 मई को

नई दिल्ली। नए वक्फ संशोधन कानून 2025 पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। बुधवार को भी इस मामले में दो घंटे तक सुनवाई हुई थी। गुरुवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ से केंद्र की मांग पर सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया गया। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक ‘उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ’ या ‘दस्तावेजों की ओर से वक्फ’ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि किसी वक्फ संपत्ति का पंजीकरण 1995 के अधिनियम के तहत हुआ है, तो उन संपत्तियों को 5 मई को अगली सुनवाई तक गैर-अधिसूचित नहीं किया जा सकता। इसके बाद कोर्ट ने मामले की अगली तारीख 5 मई तय की।
सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की तरफ से दी गई दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं के सवालों का जवाब देने के लिए सरकार को एक सप्ताह का समय दे दिया है। हालांकि, कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता की तरफ से दिए गए भरोसे के तहत कुछ अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनसे कानून तो लागू रहेगा, लेकिन अगली सुनवाई तक इसके कुछ प्रावधान पर एक तरह की रोक लगा दी गई है। दरअसल नए कानून में क्या है नियम हैं इसे समझ लेते हैं। वक्फ बोर्डों के संचालन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जैसे कि अब बोर्ड में गैर-मुस्लिम और कम से कम दो महिला सदस्यों को नामित किया जाना प्रस्तावित है। इन सदस्यों को अतिरिक्त विशेषज्ञता और निगरानी के लिए जोड़े जाने की बात कही गई। इसके तहत अधिकांश सदस्य मुस्लिम समुदाय से होते हैं, जिससे धार्मिक मामलों पर समुदाय का नियंत्रण बना रहता है। गैर-मुस्लिमों के नियुक्ति के प्रावधान पर खासतौर पर विवाद है। नियम लाने पर सरकार का तर्क है कि वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 वक्फ प्रशासन के लिए एक धर्मनिरपेक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था तय करता है। जहां वक्फ संपत्तियां धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं, उनके प्रबंधन में कानूनी, वित्तीय और प्रशासनिक जिम्मेदारियां शामिल होती हैं, जिनके लिए सुव्यवस्थित शासन की आवश्यकता होती है। वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद (सीडब्ल्यूसी) की भूमिका धार्मिक नहीं, बल्कि नियामक है, जो कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करती है और सार्वजनिक हितों की रक्षा करती है। यह विधेयक हितधारकों को सशक्त बनाकर और शासन में सुधार करके देश में वक्फ प्रशासन के लिए एक प्रगतिशील और निष्पक्ष ढांचा तैयार करता है।
कानून के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वक्फ संशोधन कानून के प्रावधान (धारा 9, 14) केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों के नामांकन के बारे में है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन में स्वतंत्रता) का सीधा उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं।
याचिकाकतार्ओं ने कहा कि स्वर्ण मंदिर पर गैर-सिखों का नियंत्रण न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए एक लंबे अकाली आंदोलन की जरूरत पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिक्रिया देते हुए पूछा कि क्या सरकार गैर-हिंदुओं और मुसलमानों को हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती बोर्डों या संस्थानों का सदस्य बनाएगी? जस्टिस विश्वनाथ ने कहा कि जब हिंदू बंदोबस्ती की बात आती है तब सिर्फ हिंदुओं के ही शासन की बात आती है।

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