Guru Hargobind Jayanti 2021: गुरू हरगोबिंद जी सिखों के छठें गुरू हैं, इन्हे छठ्ठे बादशाह के नाम से भी जाना जाता है। गुरू हरगोबिंद जी की जयंती नानकशाही पंचांग के मुताबिक आज 25 जून दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है। सिख समुदाय इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाता है, इस दिन गुरूद्वारों मे सबद कीर्तन तथा विशेष लंगरों का आयोजन किया जाता है। गुरू हरगोबिंद जी को “अकाल तख्त” की स्थापना और सिख समुदाय को “मीर और पीर” की तलवार देने के लिए जाना जाता है।
गुरु हरिगोविंद जी पहले सिख गुरु थे, जिन्होंने भक्ति के साथ शक्ति का समन्वय स्थापित कर एक नूतन अवधारणा को जन्म दिया था। वर्ष 1606 में 11 वर्ष की आयु में जब गुरु साहिब गुरुगद्दी पर आसीन हुए, तो परंपरागत वेश के स्थान पर उन्होंने दो तलवारें धारण कीं और सिर पर दस्तार सजाकर राजाओं की तरह कलगी लगाई।
गुरू हरगोबिंद जी का जन्म गुरू की वडाली अमृतसर में 1595 ई. में सिखों के पांचवे गुरू अर्जुनदेव के यहां हुआ था। 11 वर्ष की अवस्था में गुरू अर्जुनदेव ने इन्हें गुरू की उपाधि प्रदान कर दी थी। सिख गुरूओं के रूप में इन्होंने सबसे लंबा कार्यकाल 37 साल 9 महीने 3 दिन तक संभाला। गुरू हरगोबिंद जी ने सिख समुदाय में वीरता का संचार करने तथा उन्हें संगठित करना का कार्य किया।
मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरू अर्जुनदेव को फांसी दे दी थी, तब गुरू हरगोबिंद जी ने “मीर और पीर” की दो तलवारें धारण कीं। एक तलवार धर्म के लिए तो दूसरी धर्म की रक्षा के लिए। हरिगोबिंद सिंह जी का गुरु काल 38 वर्ष का था, जिसमें सिख पंथ का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ। गुरु हरिगोविंद साहिब के पिता गुरु अरजन साहिब थे, जिन्हें लाहौर में मुगल शासन ने शहीद कर दिया था। गुरु हरिगोविंद साहिब ने सिखों में जहां वीरता का भाव भरा, वहीं धार्मिक सिद्धांतों के प्रति भी उनमें भावनाएं भरीं।