विचार

विदेशी पैसा और हमारी संस्थाएं

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत की हजारों संस्थाओं को मिलने वाले विदेशी पैसे पर कड़ी निगरानी अब शुरू हो गई है। विदेशों की मोटी मदद के दम पर चलने वाली संस्थाओं की संख्या भारत में 22,762 है। ये संस्थाएं समाज-सेवा का दावा करती हैं। विदेशी पैसे से चलनेवाली इन संस्थाओं में कई शिक्षा-संस्थाओं, अस्पतालों, अनाथालयों, विधवा आश्रमों आदि के अलावा ऐसे संगठन भी चलते हैं, जो या तो कुछ नहीं करते या सेवा के नाम पर धर्म-परिवर्तन और छद्म राजनीति करते हैं। पिछले कई वर्षों से यह आवाज उठ रही थी कि इन सब संस्थाओं की जांच की जाए।
इन संस्थाओं का सरकार के साथ पंजीकरण अनिवार्य बना दिया गया था और इन्हें विदेशी पैसा लेने के पहले सरकार से अनुमति लेना जरुरी था। गृहमंत्रालय से इन्हें लायसेंस लेना अनिवार्य है लेकिन इस साल लगभग 6 हजार संस्थाओं का पंजीकरण स्थगित कर दिया गया है। 18 हजार से ज्यादा संस्थाएं अभी पंजीकरण के लिए आवेदन करनेवाली है। ऐसी 179 संस्थाओं का पंजीकरण रद्द हो गया है, जिनके हिसाब में गड़बड़ी पाई गई है या जो निष्क्रिय हैं या जिनकी गतिविधियां आपत्तिजनक मानी गई हैं। मदर टेरेसा की संस्था भी इनमें है। कई संस्थाओं के बैंक खाते भी बंद कर दिए गए हैं। इस पर सरकार के विरुद्ध कई नेता और संगठन काफी शोर मचा रहे हैं। यह स्वाभाविक है। विपक्षी नेताओं को तो हर उस मुद्दे की तलाश रहती है, जिस पर वे कुछ शोर मचा सकें लेकिन समाजसेवी संगठनों की तो सचमुच मुसीबत हो गई है। उनके कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। अस्पतालों में इलाज बंद हो गया है। अनाथ बच्चों को खाने-पीने की समस्या हो गई है।
जिन संस्थाओं के विदेशी पैसे पर रोक लगी है और जिनका पंजीकरण रोका गया है, वे सिर्फ गैर-सरकारी संस्थाएं ही नहीं हैं। उनमें नेहरु स्मृति संग्रहालय, इंदिरा गांधी कला केंद्र, लालबहादुर शास्त्री स्मृति प्रतिष्ठान और जामिया मिलिया जैसी संस्थाएं भी हैं, जो देश के बड़े-बड़े नामों से जुड़ी हुई हैं और जिन्हें सरकारी मदद भी मिलती रही है। इन संस्थाओं पर लगी रोक को शुद्ध राजनीतिक और सांप्रदायिक कदम भी बताया जा सकता है। मदर टेरेसा की संस्थाओं पर रोक को भी इसी श्रेणी में रखा जा रहा है लेकिन जब यह मामला संसद में उठेगा तो सरकार को यह बताना पड़ेगा कि इन संस्थाओं पर रोक लगाने के ठोस कारण क्या हैं? ये संस्थाएं सिर्फ इस कारण विदेशी पैसे का दुरुपयोग नहीं कर सकतीं कि इनके साथ देश के बड़े-बड़े लोगों के नाम जुड़े हुए हैं।
सरकार ने विदेशी पैसे से चलनेवाली इन संस्थाओं के काम-काज पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी है, यह तो ठीक है लेकिन यह देखना भी उसका कर्तव्य है कि मरीजों, अनाथों, छात्रों और गरीबों का जीना दूभर न हो जाए। उनकी वैकल्पिक व्यवस्था भी जरुरी है। इन संस्थाओं पर निगरानी इसलिए भी रखनी जरुरी है कि कोई राष्ट्र या उसके नागरिक किसी पराए देश के लिए अपनी तिजोरियां प्राय: तभी खोलते हैं, जब उन्हें अपना कोई स्थूल या सूक्ष्म स्वार्थ सिद्ध करना होता है। क्या वह दिन भी कभी आएगा, जब हमारी सरकार की तरह हमारी सामाजिक संस्थाएं विदेशी पैसा लेना बंद कर देंगी?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button