कमल सेखरी
राम कण कण में बसे हैं, हमारे रोम-रोम में बसे हैं। हम अपने व्यवहार में अधिकतर अपने संबोधनों में राम राम जी या जय राम जी की या फिर जय सियाराम शब्दों का प्रयोग करके आपसी संबोधन करते हैं। हमारी सोच में, हमारी मान्यताओं में राम नाम का एक शब्द ही ऐसा है जिसे हम सत्यता के साथ जोड़कर उच्चारित करते हैं। हमारी मान्यताओं में हिन्दू धर्म के अनुयायी किसी भी व्यक्ति की अंतिम यात्रा में यही कहते हुए चलते हैं-‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’ यानि हम जीवन की अंतिम यात्रा में भी इस सत्य को मानते हैं कि जीवन में राम ही सत्य है और इसी सत्य से हर व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन आज हमारे सियासी नेताओं में उसी राम नाम शब्द का प्रयोग राजनीतिक दृष्टि से अपने-अपने स्वार्थों के लिए करना आरंभ कर दिया है। इस सियासी चलन में अंतर केवल इतना बना दिया गया है कि उसी राम नाम के शब्द को जय राम जी, राम राम जी या जय सियाराम की जगह एक नारे में परिवर्तित कर दिया है और राम नाम के उसी शब्द को जय श्रीराम के नाम से बोलना शुरू कर दिया है। अब यह जय श्री राम जो अब तक किसी एक दल विशेष की राजनीतिक धरोहर बनी हुई थी अब वो कई और दलों ने भी अपने चलन में अपनाकर यह दर्शाना शुरू कर दिया है कि हम भी भगवान राम के अनुयायी हैं और हमारी आस्था भी राम प्रभु के साथ जुड़ी है। इन सियासी नेताओं को यह लगने लगा है कि भारत में आप कुछ करें न करें लेकिन चुनावों में राम नाम का सहारा पकड़ लें तो आपको न तो यह बताने की जरूरत है कि आपने अब तक जनहित में क्या काम किया है और आप आगे भविष्य में जनता के लिए ऐसा क्या करने जा रहे हैं जिसके आधार पर जनता यह मन बनाए कि वो अपना मत आपके पक्ष में ही दे। जय श्री राम जो आज राजनीतिक चलन का एक नया नारा बनकर मुख्य आधार बन गया है और जो बोलते ही आस्थाओं की तीव्रता में एक नया उन्माद ऊर्जित करता है उस नारे को अब कई राजनीतिक दल अपनी डूबती नैया को पार लगाने के नजर से बोलते नजर आ रहे हैं। प्रभु श्री राम के अब तक एकतरफा राजनीतिक अधिकार के बीच दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी एक राम भक्त के रूप में उभरकर सामने आए हैं। अब तक केजरीवाल जो कभी इस दिशा में अधिक विचार नहीं करते थे अब अचानक उनकी राम भक्ति में आस्था इतनी प्रबलता से उभरी है कि वो अयोध्या जाकर न केवल प्रभु राम के दर्शन करके आए हैं बल्कि उन्होंने अयोध्या श्री राम के दर्शन करने जाने के लिए दिल्ली सरकार की तरफ से निशुल्क अयोध्या यात्रा शुरू करने की घोषणा भी कर दी है। अभी हाल ही में भाजपा ने भी रामायण एक्सप्रेस के नाम से एक ऐसी आलीशान रेल गाड़ी की सेवाएं शुरू की हैं जो विभिन्न क्षेत्रों से यात्रियों को लेकर अयोध्या राम दर्शन के लिए लेकर जाएगी। यह रेलगाड़ी भारतीय रेलवे द्वारा अब तक आरंभ की गई सभी आलीशान रेल गाड़ियों में से सबसे अधिक आकर्षक और भव्य है। इसमें यात्रा के दौरान खाना खिलाने वाले वेटरों से लेकर अन्य कर्मचारियों की पौशाक भी भगवा रंग में रखी गई। लेकिन देश के संत साधू समाज ने भगवा ड्रेस का विरोध किया और भाजपा को ड्रेस का रंग बदलना पड़ा। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि हम सभी हिन्दुओं की आस्था के प्रभु राम जिन्हें हम सियाराम जैसे शब्दों से मानकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं उन सियाराम और इन सियासी दलों के श्री राम में क्या अंतर है। अगर हमारी आस्थाओं और सियासी आधारों के प्रभु राम एक ही हैं तो फिर उन्हें अलग-अलग सियासी दल अपने-अपने स्वार्थों के चलते अलग-अलग रूप व प्रारूप में क्यों प्रदार्शित कर रहे हैं। इन सियासी नेताओं के ऐसा करने से उनके सियासी स्वार्थ कहां तक पूरे हो रहे हैं या हो पाएंगे यह तो वो जानें लेकिन हम जो प्रभु राम को अपने रोम रोम में बसा हुआ मानते हैं हमारी आस्थाओं और भावनाओं को ये सियासी नेता निसंदेह पीड़ा पहुंचा रहे हैं। हमारी यह पीड़ा असहनीय भी हो सकती है अगर इसी तरह हमारी आस्थाओं से सियासी खिलवाड़ किए जाते रहे। प्रभु राम के नाम को सियासी स्वार्थों के लिए इस्तेमाल करने वाले सियासी दलों के नेताओं की नजर हैं दो पक्तियां:-
देखो ओ दीवानों ऐसा काम न करो, राम का नाम बदनाम ना करो।
राम को समझो, कृष्ण को जानो, नींद से जागो ओ दीवानो।।