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डॉ. कुंवर बेचैन को मरणोपरांत पदमश्री दिए जाने की मांग

  • हिंदी दिवस समारोह व कवि सम्मेलन में साहित्य प्रेमियों ने की मांग
  • राज्य मंत्री अतुल गर्ग ने लिखित संस्तुति गृह मंत्रालय को भेजी
    गाजियाबाद।
    महाकवि कुंवर बेचैन की स्मृति में हिंदी भवन समिति द्वारा आयोजित हिंदी दिवस समारोह एवं कवि सम्मेलन में साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों ने डॉ. कुंवर बेचैन को मरणोपरांत पदमश्री से सम्मानित किए जाने की मांग की। गाजियाबाद के विधायक व योगी मंत्रिमंडल के सदस्य अतुल गर्ग ने इसकी लिखित संस्कृति पदमश्री समिति को भेजी है। हिंदी भवन में आयोजित हिंदी दिवस समारोह व कवि सम्मेलन महाकवि कुंवर बेचैन को समर्पित रहा।
    मुख्य अतिथि डॉ. हरिओम पवार, मुख्य वक्ता डॉ. प्रवीण शुक्ल, शायर वीरेंद्र सिंह परवाज, हिंदी भवन समिति के अध्यक्ष ललित जायसवाल और महासचिव सुभाष गर्ग ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। डॉ हरिओम पवार ने कहा कि वो खुद को केवल प्रसिद्ध कवि मानते हैं जबकि डॉ. कुंवर बेचैन प्रसिद्ध भी थे और सिद्ध भी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शायर विजेंद्र सिंह परवाज ने कहा कि हिंदी साहित्य के आकाश में ध्रुव तारे की तरह डॉ कुंवर बेचैन सदैव जगमगाते रहेंगे। मुख्य वक्ता प्रवीण शुक्ल ने डा. बेचैन से जुड़े कई संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उन्हें कवि नहीं, महाकवि कहा जाना चाहिए। सभी रचनाकारों ने एक सुर में डॉ बेचैन को पदमश्री से सम्मानित किए जाने की मांग केंद्र सरकार से की। कार्यक्रम में उपस्थित राज्यमंत्री अतुल गर्ग ने बताया कि उन्होंने इसकी लिखित संस्तुति गृह मंत्रालय की पदमश्री समिति को की है। उन्होंने इस आशय का पत्र भी कुंवर बेचैन की बेटी वंदना कुंवर को दिया। कार्यक्रम में बेचैन की पत्नी संतोष कुंवर भी उपस्थित थीं। कवि सम्मेलन में कवियों और शायरों ने बेचैन साहब को याद करते हुए तीन घँटे से भी अधिक समय तक रचनाएं पढ़ीं। डॉ. कुंवर बेचैन की बेटी वंदना कुंवर रायजादा अपने पिता को समर्पित ये मुक्तक सुनाते हुए रोने लगीं-
    गीत गजलों और छन्दों से पुकारूँ मैं सदा
    आपकी पावन धरोहर को सँभालूँ मैं सदा
    आप से जो सीख ली वो ही निभाऊँ मैं सदा
    आपकी बिटिया ही बनकर जन्म पाऊँ मैं सदा
    कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विजेंद्र सिंह परवाज को इन शेरों पर खूब दाद मिली-
    यूं भी तन्हाई का एहसास दिलाया ना करो
    जब तुम्हें लौट के जाना है तो आया ना करो
    मुझको तूफान से निकाला भवर में लाए
    इस तरह डूबने वाले को बचाया ना करो
    डॉ प्रवीण शुक्ल का ये शेर बहुत पसंद किया गया-
    कैसे कह दूं कि थक गया हूं मैं
    जाने किस किस का हौंसला हूं मैं
    शायर राज कौशिक ने इन शेरों पर खूब तालियां बटोरीं-
    माना कि जिस्म पर मेरे अब सर नहीं रहा
    लेकिन ये सच है मरने का भी डर नहीं रहा
    तस्वीर उसकी जबसे लगाई दिवार पर
    मंदिर ही हो गया है ये घर, घर नहीं रहा
    कृष्णमित्र, शिवकुमार बिलगरामी, डॉ रमा सिंह, अंजू जैन, सपना सोनी, डॉ तारा गुप्ता, चेतन आनंद, अल्पना सुहासिनी और गार्गी कौशिक ने भी काव्य पाठ किया। संचालन राज कौशिक व पूनम शर्मा ने किया।

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