नई दिल्ली। हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इस वर्ष चातुर्मास की शुरूआत 20 जुलाई से हो रही है, जोकि 14 नवंबर तक रहेगा। आइए जानते हैं कि चातुर्मास में किन देवी-देवताओं के करें पूजन। मान्यता है कि आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सभी देवी-देवताओं के साथ योग निद्रा में चले जाते हैं, इसलिए इस समय किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। मांगलिक कार्यों की फिर शुरुआत कार्तिक मास की देवउत्थान एकादशी के दिन होती है। इस वर्ष चातुर्मास की शुरूआत 20 जुलाई से हो रही है, जोकि 14 नवंबर तक रहेगा। चातुर्मास के इस काल में व्रत-पूजन का विशेष लाभ मिलता है।
मालूम हो कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में आषाढ़ी एकादशी का भी विशेष महत्व है। इस तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं, इस तिथि से चार माह तक देवताओं की रात्रि होती है। देवता शयन करने जाते हैं, इसलिए आषाढ़ी एकादशी को देवशयनी एकादशी, हरिशयनी एकादशी, शयनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। देवताओं के योग निद्रा में जाने के कारण चार माह तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इस चार माह को चातुर्मास कहा जाता है, जिसका प्रारंभ देवशयनी एकादशी से ही होता है। चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार की आराधना होती है। चातुर्मास में भगवान शिव जगत के संचालक और संहारक दोनों ही भूमिका में होते हैं। जागरण अध्यात्म में आज हम जानते हैं कि देवशयनी एकादशी किस दिन है? जो लोग व्रत रखेंगे, उनके लिए देवशयनी एकादशी व्रत का पारण कब है? इस व्रत को करने से क्या लाभ होते हैं? इसके अतिरिक्त चातुर्मास में हनुमान जी और भगवान विष्णु के वामन अवतार, सूर्य देव, जल देव की पूजा पुण्य फलदायी होती है।
शिव
चातुर्मास का पहला माह सावन का होता है, जो विशेषतौर पर भगवान शिव की पूजा को समर्पित है। पौराणिक मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु सभी देवी-देवताओं के साथ राजा बलि के यहां पाताल लोक में आराम करते हैं। इस काल में सृष्टि संचालन का कार्य भगवान शिव करते हैं, अतः चातुर्मास में भोलेनाथ की पूजा करना विशेषरूप से फलदायी होती है।
गणेश और श्री कृष्ण
कृष्ण भक्त विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में छः से बारह दिन तक विधिपूर्वक भगवान कृष्ण का पूजन करते हैं। चातुर्मास भाद्रपद में भगवान गणेश और विष्णु जी के कृष्ण अवतार की पूजा का विधान है। इसी मास में भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी मनाई जाती है।
दुर्गा
चातुर्मास का तीसरा महीना मां दुर्गा की उपासना के लिए समर्पित है। इस महीने में मां दुर्गा के शारदीय नवरात्रि का व्रत और पूजन किया जाता है। भक्त पूरे नौ दिन मां दुर्गा के लिए कलश स्थापना कर व्रत रखते हैं और दशमी के दिन व्रत का पारण कर कलश का विसर्जन करते हैं।
लक्ष्मी पूजन
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक चातुर्मास माना जाता है। जो भी व्यक्ति पूरे मनोयोग से देवशयनी एकादशी का व्रत करता है और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करता है। उस व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसको कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। श्रीहरि उसकी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को श्रीहरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता है। एकादशी की तिथि, जिसे देवउत्थान एकादशी भी कहते हैं, पर मान्यता अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा त्याग कर अपना कार्यभार संभालते हैं और सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। इस दौरान कार्तिक अमावस्या तिथि पर दीपावली में लक्ष्मी पूजन किया जाता है।