चर्चा-ए-आमराष्ट्रीयस्लाइडर

चर्चा-ए-आम:- कौन लेगा राजनेताओं की संपत्तियों का ब्यौरा

  • सरकार ने क्यों रोका राज्यकर्मचारियों का वेतन
  • बड़े अधिकारियों से क्यों डरती है सरकार
    कमल सेखरी
    उत्तर प्रदेश सरकार ने दो लाख 44 हजार राज्य कर्मचारियों का वेतन रोक दिया है। प्रदेश सरकार का कहना है ये उन राज्य कर्मचारियों का वेतन रोका गया है जिन्होंने निर्धारित समय में अपनी संपत्ति का ब्यौरा अपने-अपने विभागों को नहीं दिया है। राज्य कर्मचारियों में प्रदेश सरकार की इस कार्यवाही को लेकर काफी रोष है, बताया यह भी जा रहा है कि सरकार के कर्मचारी संगठित होकर ना केवल प्रदेश सरकार की इस कार्यवाही का विरोध करेंगे बल्कि प्रदेश व्यापी आंदोलन भी करेंगे। राज्यकर्मचारियों का कहना है कि प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों से तो संपत्ति का ब्यौरा मांगा है लेकिन प्रदेश के किसी भी कार्यालय में तैनात बड़े अधिकारियों से उनकी सपंत्ति का ब्यौरा नहीं मांगा गया है। कर्मचारियों का यह मानना है कि किसी भी राज्य सरकार के कार्यालय में कोई भी सरकारी कर्मचारी यदि कोई संपत्ति अर्जित कर पाता है तो उन्हीं कार्यालयों में तैनात सरकारी अधिकारी किसी भी कर्मचारी से कई गुणा अधिक धन कमाते हैं और अपेक्षाकृत कई गुणा अधिक अतिरिक्त संपत्ति भी बना लेते हैं। उनका कहना है कि अगर सरकारी कर्मचारी से संपत्ति का ब्यौरा मांगा जा रहा है तो सरकारी अधिकारियों से भी उनकी संपत्ति का ब्यौरा मांगा जाना चाहिए। इसमें दोराय नहीं कि देश के अधिकांश प्रदेशों में या फिर सभी प्रदेशों में सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारी या अधिकारी पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। किसी भी सरकारी दफ्तर में जनसाधारण के किसी भी व्यक्ति को पैसा दिए बिना अपना काम कराना मुश्किल पड़ता है। सरकारी कर्मचारी अपने मासिक वेतन से कई गुणा अधिक धन भ्रष्टाचार के अन्य माध्यमों से कमाते हैं। जिसमें निसंदेह भ्रष्टाचार का यह चलन बड़े अधिकारियों के शामिल हुए बिना संभव नहीं है। इसलिए जरूरी है कि राज्य कर्मचारियों के साथ-साथ बड़े अधिकारियों की भी संपत्ति का ब्यौरा मांगा जाए और ब्यौरा ना देने पर अधिकारियों का वेतन भी वैसे ही रोका जाये जैसे कर्मचारियों का रोका गया है।
    देश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए सभी का यह मानना है कि भ्रष्टाचार जितना शासन प्रशासन में व्याप्त है उससे कहीं अधिक राजनीतिक नेता भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। जिसकी भी सत्ता आती है उसके सभी नेता चुने जाने के कुछ समय बाद ही जनहित के मामलों को छोड़कर अपने व्यक्तिगत हित की सोच बनाने में लग जाते हैं। और यही प्रयास करते रहते हैं कि उनकी सत्ता जितने दिन भी रहे उतने दिन में ही वो दिन दोगुनी चार चौगनी कमाई कर लें। ग्राम प्रधान से लेकर पार्षद, विधायक, सांसद और मंत्री जो भी सत्ता की कड़ी से जुड़ता है वो दोनों हाथों से धन समेटने में जुट जाता है। राज्य कर्मचारियों की अतिरिक्त आय और संपत्ति का ब्यौरा जानने वाली सरकारों को चाहिए कि वो बड़े अधिकारियों और अपनी पार्टी के राजनेताओं की अतिरिक्त आय और निरंतर बढ़ती संपत्तियों का ब्यौरा भी अनिवार्य रूप से जुटायें। ग्राम प्रधान से लेकर पालिका के सभासद, विधानसभा के सदस्य, लोकसभा के सांसद और जनहित की शपथ लेकर मंत्री बने सभी नेताओं ने अपना पहला चुनाव लड़ने के समय नामांकन पत्र भरने में जो भी संपत्ति का ब्यौरा दाखिल किया है और मौजूदा समय में उनकी संपत्ति तुलनात्मक कितनी बढ़ गई है यह आंकड़े भी जनहित में सार्वजनिक करने चाहिएं। साइकिल, मोपेड और टूटे स्कूटरों पर चलने वाले नेता निर्वाचित होने के कुछ समय बाद ही लंबी-लंबी गाड़ियां और बड़े-बड़े बंगले कैसे खरीद लेते हैं इसकी जानकारियां सार्वजनिक होकर जनता के बीच में आनी ही चाहिएं ताकि यह पता लग सके कि इतने अल्पकाल में इन राजनेताओं ने इतनी अधिक संपत्ति कैसे अर्जित कर ली है। ऐसे राजनेताओं पर भी कड़ी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button