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सक्रिय क्षय रोगी खोज अभियान शुरू, सीएमओ ने पीपीसी कोठीगेट से टीम रवाना कीं

हापुड़। शासन के निर्देश पर जनपद में बृहस्पतिवार से सक्रिय क्षय रोगी खोज (एसीएफ) अभियान शुरू हो गया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. सुनील कुमार त्यागी ने पीपीसी कोठीगेट से आठ एसीएफ टीम हरी झंडी दिखाकर टीम रवाना कीं। एसीएफ टीम में शामिल एएनएम, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ के उद्घोष के साथ सक्रिय क्षय रोगी खोज अभियान (एसीएफ) के लिए रवानगी की। सीएमओ डॉ. त्यागी ने इस मौके पर एसीएफ टीम में शामिल एएनएम, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि सभी को मेहनत और लगन से काम करना है। जिस घर जाएं हर सदस्य से बात करने का प्रयास करें। घर के मुखिया से अवश्य मिलें। टीबी के लक्षण के बारे में विस्तार से जानकारी देने के साथ ही जांच और उपचार के बारे में जानकारी दें। लक्षण युक्त व्यक्तियों के बारे में प्रतिदिन रिपोर्ट करें। इस मौके पर जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. राजेश सिंह, पीपीसी कोठीगेट प्रभारी डॉ. योगेश गुप्ता, पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी और राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम का स्टाफ मौजूद रहा। जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि माइक्रो प्लान के मुताबिक एसीएफ टीम पहले दो दिन जनपद के आवासीय संस्थानों में विजिट करेंगी। पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी के नेतृत्व में पहले दिन बृहस्पतिवार को टीम पिलखुआ स्थित ‘अपना घर’ आश्रम गई। बता दें कि ‘अपना घर’ में मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति निवास करते हैं। टीम ने उन्हें टीबी और राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया और चार लक्षण युक्त व्यक्तियों के बलगम के नमूने लेने के लिए कंटेनर (डिब्बी) दिए। 5 दिसंबर तक चलने वाले घर- घर क्षय रोगी खोज अभियान के लिए एएनएम, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मिलाकर 116 टीम गठित की गई हैं। अभियान का संचालन सिंभावली टीबी यूनिट को छोड़कर सभी सात यूनिट में चलेगा। डीटीओ डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि दो सप्ताह से अधिक खांसी या बुखार, खांसी में बलगम या खून आना, सीने में दर्द, वजन कम होना, भूख कम लगना, थकान रहना और रात में सोते समय पसीना आना, टीबी के लक्षण हो सकते हैं। टीबी की जांच और उपचार की सुविधा सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध है। टीबी शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है, लेकिन फेफड़ों की टीबी के मामले अधिक होते हैं और फेफड़ों की टीबी ही संक्रामक होती है। यह टीबी मरीज के खांसने-छींकने से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स से सांस के जरिए फैलती है। उपचार शुरू होने के दो माह बाद क्षय रोगी से संक्रमण फैलना बंद हो जाता है। टीबी के संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए जल्दी जांच और उपचार जरूरी है।

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