कमल सेखरी
हम एकजुट हैं तो मजबूत हैं। अगर हम विभाजित हो जाते हैं तो कमजोर पड़कर टूट जाते हैं। एक साल के संघर्ष के बाद किसानों की जो जीत देश के सामने आई है उसका मुख्य कारण ही किसान संयुक्त मोर्चा बनाकर एकजुट होकर अपनी मांगों को लेकर जो फतह उन्होंने हासिल की है वो आज पूरे विश्व के सामने एक ऐतिहासिक मिसाल बनकर अंकित होने जा रही है। किसानों ने अपना धैर्य नहीं खोया और कई तरह की परेशानियों को झेलते हुए अपना मोर्चा गर्मी, सर्दी, बारिश और अन्य कई कठिनाइयों के बीच मजबूती से कायम रखा। उन्होंने वो अपनी सब मांगे मंनवा लीं जिन्हें केन्द्र सरकार किन्हीं भी परिस्थितियों में मानने को तैयार ही नहीं थी। किसानों ने तीनों कृषि बिलों को वापस करवाने के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग पर भी सरकार को झुका लिया। इसके साथ-साथ आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने पर भी सरकार को राजी कर लिया। इस एक वर्ष के दौरान विभिन्न प्रदेशों के किसानों के खिलाफ अलग-अलग प्रदेश सरकारों ने जो मुकदमे दायर किए थे उन्हें भी वापिस लेने पर राजी करा लिया। केन्द्र सरकार जो एक साल से किसानों की किसी एक बात को भी मानने को तैयार नहीं थी और संघर्षरत किसानों को आतंकवादी, पाकिस्तान और चीन के एजेंट तथा और भी कई गंभीर आरोप लगाते हुए निरंतर यही कहती रही कि यह मुट्ठीभर लोग हैं और देश के अधिकांश किसान कृषि बिल को लेकर सरकार के समर्थन में ही हैं। केन्द्र सरकार के इस रवैये और दृढ़ता की सारी जिदें किसानों की एकता के सामने बौनी पड़ गर्इं और मजबूत कहे जाने वाली मोदी सरकार किसानों के आगे घुटने टेक गई। इस प्रकरण में यह भी एक सच्चाई है कि केन्द्र सरकार ने अपनी सभी जिदें छोड़कर इसलिए घुटने टेके हैं कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के अधिकतर शहरों और गांवों में भाजपा के बड़े नेता और कार्यकर्ता प्रवेश तक नहीं कर पा रहे थे। खासतौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में सत्ता दल के इन नेताओं को चुनाव प्रचार और जनसंपर्क करना तो दूर उन्हें उनके घर तक जाने में किसान बाधाएं डाल रहे थे और उन्हें मजबूती से रोक भी रहे थे। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के करीब आने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के इस तरह के व्यवहार से केन्द्र सरकार और प्रदेश की सरकार के हौसले पस्त हो गए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ये किसान कहीं आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए कमल चुनाव चिन्ह से नाराज हो गए तो सरकार को बहुत महंगा पड़ेगा। यह सोचकर भी अब तक खुद को मजबूत बताने वाली केन्द्र सरकार किसानों के आगे घुटने टेक गई और उनकी सभी मांगों को मानने के लिए आनन फानन में राजी भी हो गए। तभी कहते हैं एकता में बहुत बल होता है। आप किसी भी आंदोलन या संघर्ष में अगर एकजुट हैं जैसा कि किसान आंदोलन के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा एकजुटता से खड़ा रहा तो ऐसी स्थिति में ऐसी एकता बड़े-बड़े तानाशाहों को और बड़ी-बड़ी मजबूत सरकारों को घुटने टेकने पर मजबूर भी कर सकती हैं।