कमल सेखरी
ओमिक्रान यानी कोरोना महामारी की वो तीसरी लहर जिसने विश्व के कई देशों में अपने पांव तेजी से पसारने शुरू कर दिए हैं उसकी दस्तक अब भारत में भी सुनाई देने लगी है। हमारे देश में भी कई अलग-अलग बड़े-बड़े शहरों में ओमिक्रान से प्रभावित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। इस संभावित खतरे को महसूस करते हुए हमारी सरकार ने देश के लगभग सभी बड़े हवाई अड्डों पर विदेशों से आने वाली उड़ानों के यात्रियों की गहन जांच शुरू कर दी है और उन्हें बिना नेगेटिव रिपोर्ट दिखाए हवाई अड्डे से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इतना ही नहीं डेढ़ दर्जन से अधिक देशों से आने वाली हवाई यात्राओं पर पूरी तरह से रोक भी लगा दी गई है। देश के लगभग सभी राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर ओमिक्रान को लेकर लगभग हर रोज विशेषज्ञों से बातचीत शुरू हो गई है और सभी विशेषज्ञ यही कहते सुने जा रहे हैं कि ओमिक्रान की यह तीसरी लहर कोरोना की दूसरी लहर जिसे हम डेल्टा के नाम से जानते हैं उससे कहीं अधिक तेजी से फैलने वाली महामारी है और यह कम समय में अधिक लोगों को अपना शिकार बना सकती है। सरकार ने इस संभावित तीसरी लहर की तीव्रता को आंकते हुए कई तरह की सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सहित लगभग सभी प्रदेशों की सरकारें अपने-अपने सूबों में यह कह रही हैं कि हमें इस तीसरी लहर के खतरे से निपटने के लिए हर तरह की सतर्कता बरतनी चाहिए और इसे लेकर सरकारें कई तरह के निर्देश भी दे रही हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर हमारे सियासी नेता यह जानते हुए भी कि ओमिक्रान अगर देश में तेजी पकड़ गया तो उससे बनने वाली महामारी की यह तीसरी लहर अब से पूर्व देश में तांडव मचा चुकी दोनों लहरों से कहीं अधिक प्रभावी होगी। लेकिन हमारे राजनेताओं की गंभीरता लेशमात्र भी जनहित या देशहित से जुड़ी नजर नहीं आ रही है। अभी दो महीने बाद ही पांच प्रदेशों में शुरू होने जा रहे विधानसभा चुनावों में जिस तरह से चुनावी रैलियां आयोजित की जा रही हैं उन्हें देखते हुए तो यही लगता है कि हमारे सियासी नेता अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थों से अलग हटकर कुछ सोच ही नहीं रहे हैं। जहां एक ओर हम सूचना के विभिन्न माध्यमों से जनता को यह कहकर आगाह कर रहे हैं कि वो बिना मास्क के घर से बाहर न निकलें। रह-रहकर हाथ धोते रहें और आपसी व्यवहार में छह फीट से अधिक की दूरी अवश्य बनाए रखें ताकि आने वाली इस संभावित घातक तीसरी लहर को हम कुछ हद तक रोक पाएं। लेकिन इसके विपरीत जो राजनीतिक रैलियां पिछले एक सप्ताह से लगभग हर रोज ही आयोजित की जा रही हैं उनमें लाखों की भीड़ देखने को मिल रही है और इस भीड़ में न तो कोई मास्क पहने नजर आता है और न ही लोगों के बीच कोई दूरी रखी जा रही है। हमारे प्रधानमंत्री, गृह मंत्री पिछले एक सप्ताह में आधा दर्जन से अधिक बड़ी जनसभाएं आयोजित कर चुके हैं और उनमें यह कहते हुए प्रसन्नता महसूस करते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में आई लोगों की भीड़ यह बता रही है कि उनकी पार्टी इस बार पहले से भी अधिक सीटों से जीतेगी। इसी तरह विपक्षी नेता भी लगभग हर रोज ही खासतौर पर उत्तर प्रदेश में जगह-जगह रैलियां करते नजर आ रहे हैं और उसमें एकत्रित हो भीड़ को बड़े गर्व से अपने समर्थन के पक्ष में बताकर फूले नहीं समा रहे हैं।
मिल रही जानकारी के अनुसार अकेले उत्तर प्रदेश में ही सत्तादल की पांच दर्जन से अधिक बड़ी जनसभाएं होने जा रही हैं और विपक्षी दल भी जवाबी जनसभाएं आयोजित कर अपनी ताकत का इजहार कर रहे हैं। खुद को राष्ट्रवादी और राष्ट्रभक्त कहने वाले ये नेता इस बात को लेकर तनिक भी चिंतित नजर नहीं आ रहे कि उनकी इन रैलियों से संभावित ओमिक्रान महामारी की तीसरी लहर का दुष्प्रभाव देश की मासूम जनता को झेलना पड़ेगा। हमारे इन राजनेताओं को अपने इस चुनावी आचरण पर गंभीरता से सोचना चाहिए। मीडिया के विभिन्न माध्यमों से भी राजनीतिक दल अपना-अपना संदेश जनसाधारण तक पहुंचा सकते हैं। आयोजित हो रही इन रैलियों में विकास की कोई बात कहीं हो नहीं रही है इनमें तो केवल आरोप-प्रत्यारोप और अभद्र भाषा में एक दूसरे की पगड़ी उछालने का काम ही किया जा रहा है। इन रैलियों में अगर कुछ लाख या हजार लोग ओमिक्रान महामारी की चपेट में आ भी जाएं तो इन राजनेताओं की बला से। देश के मुख्य चुनाव आयुक्त को भी गंभीरता से सोचकर देशहित में यह फैसला लेना चाहिए कि जब तक कोरोना की इस संभावित तीसरी लहर बेअसर होकर गुजर न जाए तब तक राजनीतिक रैलियों पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए। क्योंकि इससे पहले कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में हम यह अनुभव कर चुके हैं कि कई हजार लोग इन राजनैतिक रैलियों के कारण ही महामारी की चपेट में आए और उनमें से बड़ी संख्या में लोगों की जान भी चली गई।