सामंत सेखरी
अपना निजी न्यूज चैनल चला रहे वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने बीते दिन ट्वीट कर यह जानकारी दी कि वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ की हालत चिंताजनक है और वो अस्पताल में भर्ती हैं। सोशल मीडिया पर इस जानकारी के सार्वजनिक होते ही विनोद दुआ को चाहने वाले कई लोगों ने ट्वीट कर उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना की और लंबी आयु की दुआ मांगी। लेकिन वहीं दूसरी ओर एक बड़ी संख्या में लोगों ने उसी ट्वीटर हैंडल पर अपमानजनक, आपत्तिजनक और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हुए अपने संदेश इस संबंध में भेजे जो इतने अशोभनीय और असंवेदनशील थे कि उनकी भाषा को यहां शब्दों में उल्लेख करने भर की हिम्मत हम नहीं जुटा पा रहे हैं। विनोद दुआ पिछले चार दशक से भी अधिक समय से सक्रिय पत्रकारिता में रहे हैं। उन्होंने कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ कई बड़े राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर भी अपनी एंकरिंग के शो दिए। यह उनका स्वभाव था कि वो निर्भिकता से लिखते और बोलते थे। न किसी से दोस्ती, न किसी से बैर की नीति पर चलते हुए उन्होंने हमेशा व्यवस्था में अव्यवस्था की चर्चा की और उस पर खुलकर बातचीत की। वर्तमान के नए चलन में खुद को राष्टÑभक्त बताकर हर उस व्यक्ति का विरोध करने वाले लोगों ने कल से अब तक सोशल मीडिया पर इस तरह के संदेशों की झड़ी लगा दी जो संदेश किसी भी चिंतनशील व्यक्ति को यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि हम आज किस स्थिति में इस देश में रह रहे हैं और ऐसी परिस्थतियों में कोई भी सम्मानित और चिंतनशील व्यक्ति रह भी कैसे सकता है।
खुद को राष्ट्रभक्त बताने वाले ऐसे लोग हर उस व्यक्ति को राष्ट्रविरोधी बताकर उसका विरोध करने पर आमादा हो जाते हैं जो आज की स्थिति में सही को सही और गलत को गलत कह पाने की हिम्मत जुटा पाता है। व्यवस्था में अव्यवस्था की चर्चा कर शासन को आईना दिखाने वाला एकदम से किसी भी पल राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाता है। देश में आज चल रहे इस वातावरण के बीच कोई भी सभ्य, सम्मानित, चिंतनशील व्यक्ति कैसे रह सकता है यह आज गंभीर सोच का विषय बन गया है। कहीं यही कारण तो नहीं रहा कि पिछले पांच सालों में साढ़े छह लाख से अधिक भारतीय नागरिक भारत छोड़कर दूसरे देशों में चले गए और वहां की नागरिकता ले ली। इन बीते पांच वर्षों में केवल 4300 लोगों ने ही विदेशों से यहां आकर भारत की नागरिकता ली है। यह अधिकृत सरकारी आंकड़ा है जिसकी पुष्टि की जा सकती है। अब ये साढ़े छह लाख लोग पिछले पांच वर्षों में औसतन सवा लाख प्रतिवर्ष की संख्या में भारत छोड़कर अन्य देशों में क्यों चले गए। यह सरकारी आंकड़ा स्वतंत्र भारत में अब तक की सबसे बड़ी संख्या दर्शाता है। क्या ये लोग रोटी रोजी के लिए अपना देश छोड़कर गए या फिर वो बेरोजगार थे और रोजगार तलाशने दूसरे देशों में चले गए या फिर यहां के बढ़ते प्रदूषण, निरंतर बढ़ते अपराधों के बीच असुरक्षा की भावना से देश छोड़ गए। ऐसी परिस्थितियां तो कोई नई बात नहीं हैं एक लंबे समय से ऐसा होता आ रहा है कि भारत के नागरिक अपने बेहतर भविष्य और सुरक्षित जीवन की तलाश में देश छोड़कर अन्य विकसित देशों में गए हैं। लेकिन पिछले पांच सालों का यह आंकड़ा यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं इस दौरान ऐसा कुछ तो नहीं हो गया जिसने भारत से पलायन करने वालों की संख्या में अचानक इतना इजाफा कर दिया हो।
अधिक गंभीरता से सोचने पर यह निष्कर्ष भी सामने आ खड़ा होता है कि सोशल मीडिया के माध्यम से जो माहौल आज देश में बन रहा है या बनाया जा रहा है उससे त्रस्त होकर देश के सभ्य नागरिक यहां से पलायन करने में ही अपनी बेहतरी मान रहे हों। पिछले 24 घंटे में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के अस्वस्थ होने की जानकारी मिलने पर जिस तरह के संदेश सोशल मीडिया पर दिए गए हैं उससे न केवल मानवता शर्मसार होती है बल्कि हर प्रतिष्ठित व्यक्ति को अपने अस्तित्व और वजूद पर खुद ही प्रश्नचिन्ह लगा नजर आने लगता है। क्या हम नई सोच के नए भारत की बात करते समय इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि देश में कम से कम एक ऐसा वातावरण तो बनाकर रखा जाए जिसमें कोई भी सभ्य व्यक्ति अपने मान सम्मान को लेकर सुरक्षित महसूस कर सके।