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एक सच यह भी: क्या यूपी में नए डबल ‘इंजन’ की बनेगी नई सरकार

सामंत सेखरी
ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे। पिछले कई दिनों से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर जो ना नकुर की स्थिति बनी हुई थी वो कल बीती शाम एक विशेष बैठक के बाद लगता है अब परवान चढ़ गई है। यह बात अलग है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किस जिले में सपा अपने सहयोगी दल रालोद को कितनी सीटें देगी लेकिन यह तय हो गया है कि कुल सीटें कितनी दी जाएंगी और आने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों दल मिलकर लड़ेंगे यह भी तय हो गया है। हालांकि पिछले एक पखवाड़े में भाजपा ने कई बार विभिन्न माध्यमों से रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी को मनाने और रिझाने की कोशिश की और यहां तक भी संदेश भेजे कि वो रालोद को सपा से दी जा रही सीटों से अधिक सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देंगे और वो भी उनकी मनमर्जी की सीटें। लेकिन रालोद के अध्यक्ष भाजपा के इन मोहक प्रस्तावों से विचलित नहीं हुए और उन्होंने अपने पुराने फैसले यानी सपा के साथ गठबंधन पर ही अपनी दृढ़ता कायम रखी।
भाजपा इस नए गठबंधन के भावी परिणामों को राजनीतिक दृष्टि से आंकते हुए काफी परेशान है और महसूस कर रही है कि यह गठबंधन अगर तेजी पकड़ गया तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उसको न केवल बड़ी चोट पहुंचाएगा बल्कि उसे सत्ता में आने से रोकने का कारण भी बन जाएगा। दो युवा राजनेताओं के इस नए गठबंधन से उत्तर प्रदेश की राजनीति के समीकरण बदल सकते हैं यह आकलन अभी से राजनीतिक विशेषज्ञों ने लगाना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी के के अध्यक्ष अखिलेश यादव जहां एक ओर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की डोर मजबूती से संभाले हुए हैं और उसमें अपने राजनीतिक सहयोगी ओपी राजभर के साथ मिलकर पूर्वांचल में भाजपा के सभी प्रवेश द्वार बंद करने की स्थिति बना चुके हैं वहीं दूसरी ओर अब सपा और रालोद का जो नया गठबंधन हुआ है उससे उत्तर प्रदेश के पश्चिमाचंल में भाजपा की स्थिति पहले की अपेक्षा काफी कमजोर पड़ जाएगी, यह तय है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतकर सत्ता में आने का अपना रास्ता बनाया था अब वो रास्ता रालोद काफी हद तक रोकता नजर आ रहा है।
रालोद के पूर्व अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह की मृत्यु के बाद जाट समुदाय और किसानों में रालोद के नए नेता चौधरी जयंत सिंह के प्रति एक मजबूत सहानुभूति की लहर बनी है और वो मजबूती अगले आने वाले चुनावों में अपना असर दिखा सकती है। पिछली बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश जो जाट बहुल्य क्षेत्र की वजह से जाटलैंड कहा जाता है वो क्षेत्र पिछले चुनावों में एक तरफा भाजपा के साथ था जो अब एक तरफा भाजपा से विमुख होता नजर आ रहा है। पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों को खुश करने की नजर से विवादित तीनों कृषि बिल वापिस लेने की घोषणा की और अपील की कि आंदोलित किसान अपने घर लौट जाएं। भाजपा को लग रहा था कि वो इस घोषणा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों और जाट समुदाय में अपने पक्ष का समर्थन हासिल कर लेगी लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा इस बार।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान और जाट इतनी मजबूती से रालोद के साथ जुड़े हैं कि प्रधानमंत्री की उस घोषणा और अपील का कोई असर उन पर दिखाई नहीं पड़ रहा है। मौजूदा परिस्थितियों में अगर सपा और रालोद का यह गठबंधन बिना टूटे आगे बढ़ता गया तो इस गठबंधन के दो युवा नेता उत्तर प्रदेश में ही डबल इंजन की गाड़ी चला देंगे। पूरब का इंजन साइकिल अपने बल पर खींच ले जाएगी और पश्चिम प्रदेश में इंजन का दम हैंडपंप का पानी भरकर ऐसी भाप बना देगा जिसके दम पर यहां भी गाड़ी खिंची चली जाएगी।

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