- अभी केवल छह साल तक के बच्चों को दी जा रही है बचाव की दवा
- क्षय रोग विभाग ने सरस्वती मेडिकल कॉलेज में सीएमई का आयोजन किया
हापुड़। प्रधानमंत्री के 2025 तक भारत को क्षय रोग मुक्त करने के संकल्प को पूरा करने के लिए टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत क्षय रोग विभाग क्षय रोग की पुष्टि होने पर संबंधित पूरे परिवार को बचाव की दवा उपलब्ध कराएगा। यह दवा पूरी तरह निशुल्क होंगी। अभी तक क्षय रोगी के परिवार में केवल छह वर्ष तक के बच्चों को यह दवा उपलब्ध कराई जाती हैं। दरअसल छोटे बच्चों के किसी भी रोग के जल्दी चपेट में आने की आशंका के चलते यह निर्णय लिया गया था, लेकिन जल्द ही विभाग रोगी के पूरे परिवार को बचाव की दवा उपलब्ध कराएगा ताकि क्षय रोग के प्रसार को और प्रभावी ढंग से रोका जा सके। यह बातें जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. राजेश सिंह ने मंगलवार को सरस्वती मेडिकल कॉलेज में आयोजित सतत मेडिकल शिक्षा कार्यशाला (सीएमई) के दौरान कहीं। कार्यशाला में कॉलेज फैकल्टी के अलावा एमबीबीएस फाइनल ईयर के छात्र मौजूद रहे।
डीटीओ डा. राजेश सिंह ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा क्षय रोग शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है, लेकिन फेफड़ों की टीबी ज्यादा खतरनाक इसलिए मानी जाती है, क्योंकि यह संक्रामक होती है। कोई क्षय रोगी जब खांसता या छींकता है तो उसके मुंह से डॉपलेट के सहारे संक्रमण दूसरे लोगों तक चला जाता है। ऐसे में रोगी के संपर्क में आने वाले कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के लोग बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। सरकार की ओर टीबी रोगी की बेहतर प्रतिरोधक क्षमता के लिए उसे इलाज चलने तक हर माह पांच सौ रुपए का पोषण भत्ता दिया जाता है। पांच सौ रुपए का भुगतान सीधे रोगी के बैंक खाते में किया जाता है।
फेफड़े की टीबी का रोगी एक वर्ष में 10 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है। संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए मॉस्क का इस्तेमाल करें। रोगी खुलें में न थूकें। टीबी के प्रसार पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए विभाग रोगी के पूरे परिवार को बचाव के लिए दवा देगा। फिलहाल यह दवा केवल रोगी के परिवार में मौजूद छह वर्ष तक के बच्चों को दी जाती हैं। कार्यशाला को सरस्वती मेडिकल कॉलेज के डा. जिगनेश नागर ने भी संबोधित किया। कार्यशाला में मेडिकल कालेज प्राचार्य डा. आरसी पुरोहित, छाती रोग विशेषज्ञ डा. सिद्धार्थ सिंह, डा. राहुल सचान, डा. ललित गर्ग, डा. योगेश गोयल और डा. सौरभ गोयल आदि मौजूद रहे।