- व्यक्ति को अनवरत कर्म करते रहना चाहिए: अनिल आर्य
गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में योग और निष्काम कर्म पर गोष्ठी का आयोजन किया गया।
योगाचार्य श्रुति सेतिया ने कहा कि निष्काम भाव से कर्म करना ही योग है। उन्होंने कहा कि हम अपने बनाए मंदिरों को साफ सुथरा और सुगंधित रखते हैं, लेकिन कैसा आश्चर्य है कि ईश्वर की बनाई ‘अष्ट चक्र नव द्वारा देवा नाम पुरयोध्या’ यानी अपने शरीर रूपी मानव मंदिर को हम शाश्वत शराब, मांस, अंडे, बीड़ी, सिगरेट का धुआं सब डालते हैं। जीवन कला के अभ्यासी को आहार शुद्धि का विचार रखते हुए ध्यान रखना है कि हमारी कमाई भी शुभ और सात्विक हो। सामान्यता योग का अर्थ अग्नि या सूर्य के समक्ष महीनों, वर्षों के लिए तपना नहीं होता। योग का वास्तविक अर्थ है कि अपने वर्णाश्रम के अनुसार निष्काम भाव से कर्मरत्त रहना। वासनाओं की अग्नि में इंद्रियों को तपा कर निर्विषय कर देना और जीवन संग्राम के समस्त दुखों को प्रभु का प्रसाद समझकर उनसे संपूर्ण पुरुषार्थ के साथ विशेष रूप से जूझते रहना। प्राय: समझा जाता है कि लोकयम धर्म बंधन अर्थात कर्म लोके बंधन का कारण है, लेकिन योग इसके विपरीत हमें सिखाता है कि कर्म ही बंधन मुक्ति का साधन है। श्री कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन संसार के सारे दुख संग के कारण हैं। योग और कुछ नहीं कर्म करते हुए सिद्धि- असिद्धि में समभाव बनाए रखना, परमात्मा के साथ ही युक्त रहना, अपने को उसी के हाथों में दे देना ही योग है। योग का अर्थ अपने को संपूर्ण रूप से मानव देव ऋषि बनाना है।
आध्यात्मिक जीवन में एक शब्द अक्सर सुनने में आता है- निष्काम। जीवन में हम बिना कर्म किए रह ही नहीं सकते। कर्म के बिना तो पशु भी नहीं रह सकते। निष्काम कर्म उसे कहते हैं जिसके पीछे हमारा कोई निजी हित, निजी स्वार्थ ना जुड़ा हो। जिसका हमारे लिए कोई लाभ ना हो। हमेशा याद रखिए, दूर तक वही कर्म लाभ देते हैं। कर्म में निष्कामता का भाव होगा तो हमारी संवेदनाएं प्रबल होंगी, हम संवेदनशील बनेंगे। दूसरों की सहायता कर हम अपने भीतर निष्कामता का भाव लाने की शुरूआत कर सकते हैं। खुद के स्वार्थ को ना देखें। फायदा हो रहा है या नुकसान इसका विचार मन में ना लाएं। हमेशा ना सही लेकिन कभी-कभी हमारे मन में, कर्म में निष्कामता का भाव आएगा तो जीवन में कई उलझनों का उत्तर मिल जाएगा, हल मिल जाएगा। श्री कृष्ण भगवत गीता में निष्काम कर्म योग का उपदेश देते हुए कहते हैं जो दुख -सुख , सर्दी -गर्मी, लाभ -हानि, जीत- हार, यश-अपयश, जीवन-मरण, भूत -भविष्य की चिंता ना कर के मात्र अपने कर्तव्य कर्म में लीन रहता है वही सच्चा निष्काम कर्म योगी है।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन करते हुए कहा कि व्यक्ति को बिना फल की कामना के सदैव कार्य करते रहना है सफलता निश्चित मिलेगी ।
मुख्य अतिथि शशि सिंघल (प्रधान, महिला आर्य समाज हापुड़) व अध्यक्ष वीना वोहरा (योग शिक्षक,अखिल भारतीय ध्यान योग संस्थान गाजियाबाद) ने भी मानव जीवन को सेवा कार्य के लिए अर्पित करने का आह्वान किया ।
राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि योग सर्वांग सुन्दर बनाने की कला है, महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, धारणा,ध्यान,समाधि द्वारा हम परमपिता परमात्मा को हृदयांतराल में साक्षात कर आनन्दानुभूति कर सकते हैं।
गायिका रजनी चुघ, बिंदु मदान, उर्मिला आर्या (गुरुग्राम), ईश्वर देवी, दीप्ति सपरा, राजकुमार भंडारी, सुदेश आर्या, प्रवीना ठक्कर, प्रवीण आर्या, आदर्श आर्य, सोहन लाल आर्य, सुमित्रा गुप्ता आदि ने मधुर गीत सुनाये ।
प्रमुख रूप से आनन्द प्रकाश आर्य, आस्था आर्या, कुसुम भंडारी, करुणा चांदना, रचना वर्मा, सुशांता अरोड़ा, मृदुल अग्रवाल, कृष्णा गांधी, प्रतिभा कटारिया आदि उपस्थित थे ।