कमल सेखरी
जितना बड़ा प्रदेश उतनी बड़ी घटनाएं। उतनी बड़ी लुकाछुपी, उतनी बड़ी प्रतिक्रियाएं, उतना बड़ा विरोध और इन सब पर पर्दा डालने के सरकार के उतने ही बड़े प्रयास। पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में जनता की रक्षक कहे जाने वाली प्रदेश पुलिस जिस तरह का आचरण और व्यवहार अपनाए हुए है उससे तो लगता है कि प्रदेश की पुलिस आने वाले चुनावों में मौजूदा सत्ता को एक बड़ी चोट पहुंचाने का मन बना चुकी है। आधी रात को गोरखपुर के होटल के कमरे में अचानक दाखिल होकर वहां रह रहे कानपुर के कोराबारी मनीष गुप्ता के समान की तलाशी लेना और ऐतराज जताने पर उसकी मारपीट कर हत्या कर देना और उसके साथियों को बुरी तरह से घायल कर देने जैसी घटना अभी आम आदमी के जहन से उतरी ही नहीं थी कि रविवार को किसानों को कार से रौंद दिए जाने की घटना से देश उबल उठा। आरोप है कि विरोध कर रहे किसानों के समूह के ऊपर केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री के पुत्र और उसके साथियों ने अपनी कारों से हमला करके कई किसानों को रौंद दिया जिसमें चार किसान वहीं घटनास्थल पर ही मारे गए और दर्जनभर से अधिक किसान बुरी तरह घायल हो गए। प्रतिक्रिया स्वरूप वहां एकत्रित भीड़ ने हमलावरों के वाहनों में आग लगा दी और जो हाथ आया उसके साथ मारपीट की। इस हमले और मारपीट में अबतक नौ लोगों की मौत हो चुकी है, इसमें एक मीडियाकर्मी भी हमले का शिकार हुआ है। इस इतनी बड़ी घटना पर सत्ता की गोद में बैठे उसके लाड़ले मीडिया ने एक पक्ष की ही खबर दी और कई घंटों तक सत्ता पक्ष का पक्षधर बनकर ही वो खड़ा रहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने वहां पहुंचकर घटना की जानकारी लेने के इच्छुक सभी विरोधी दलों के नेताओं को न केवल वहां जाने से रोका बल्कि उनको घरों के बाहर निकलते ही हिरासत में ले लिया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को लखनऊ स्थित उनके घर के बाहर ही गिरफ्तार कर लिया गया। बसपा के वरिष्ठ नेता सतीश चन्द्र मिश्रा को रात ग्यारह बजे ही उनके निवास पर हाउस अरेस्ट करा दिया गया। आम आदमी पार्टी के उत्तर प्रदेश के प्रभारी एवं सांसद संजय सिंह को रास्ते में सीतापुर के पास हिरासत में ले लिया गया। रालोद के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह किसी तरह अपने समर्थकों के साथ वेस्ट यूपी के कई जिले पार कर ज्यों ही प्रदेश के पूर्वांचल में दाखिल हुए उन्हें सड़क पर ही पकड़ लिया गया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री बघेल और पंजाब के उपमुख्यमंत्री ने भी लखीमपुर खीरी पहुंचकर घटना की सीधी जानकारी लेनी चाही लेकिन उनके हेलीकाप्टरों को उत्तर प्रदेश में उतरने की अनुमति नहीं दी गई। विरोधी दल के ये सभी नेता लखीमपुर खीरी की घटनास्थल पर पहुंचकर सीधी जानकारी लेना चाहते थे लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इनमें से किसी को भी वहां पहुंचने की इजाजत नहीं दी। इतना ही नहीं कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी को रात बारह बजे से लेकर सुबह पांच बजे तक सड़कों पर चारों तरफ दौड़ा दौड़ाकर घटनास्थल पर पहुंचने से काफी पहले ही हिरासत में ले लिया। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन सभी विरोधी नेताओं को लखीमपुर खीरी पहुंचने से रोकने के लिए जिस ताकत और बल का इस्तेमाल किया ऐसा कभी पूर्व में देखने को नहीं मिला। लखीमपुर खीरी में घटित हुई इस घटना में आखिर ऐसा क्या छुपा था जो प्रदेश सरकार में पुरजोर ताकत लगाकर छिपाने का प्रयास किया। प्रदेश सरकार का कहना था कि अगर ये नेतागण वहां घटनास्थल पर पहुंच गए तो इनके साथ जाने वाली समर्थकों की भीड़ से वातावरण और बिगड़ेगा और व्यवस्था को, स्थिति को सामान्य बनाने में काफी कठिनाई होगी। लेकिन ऐसा भी हो सकता था कि प्रदेश सरकार लखीमपुर जाने वाले विरोधी दल के सभी नेताओं को दो-तीन किलोमीटर पहले ही रोकती और उनमें से केवल चार या पांच प्रतिनिधियों को ही घटनास्थल तक जाने की अनुमति देती। यदि ऐसा होता तो सभी विरोधी दल चार या पांच की संख्या में वहां जाते और परिस्थितियों का अध्ययन करते, वापस लौटकर आम जनता को वहां के हालात से रुबरु करा देते। इन सभी विरोधी दलों को जिस तरह से लखीमपुर खीरी घटनास्थल पर जाने से रोका गया उससे सरकार की मंशा पर कई प्रश्नचिन्ह लग गए। सभी विरोधियों को यह कहने का मौका मिल गया कि सरकार कुछ छुपाना चाहती है और जिस तरह से बल इस्तेमाल करके उन्हें रोका गया है उससे यही लगता है कि वहां हुआ कुछ और है और सरकार अपने बयानों में कह कुछ और रही है। लखीमपुर खीरी की यह घटना बड़ी ही दर्दनाक व शर्मनाक है। चुनाव से कुछ समय पहले ही इस तरह की घटना का घटित होना और उस पर पर्दा डालने का इस तरह से प्रयास किया जाना आने वाले चुनावों में प्रदेश के सत्ता दल को काफी परेशानी में डाल सकता है। इस तरह की घटनाएं जो पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में हुई हैं वो निसंदेह ही आने वाले विधानसभा चुनावों को प्रभावित करेंगी।