कमल सेखरी
सियासत क्या है? इसके मापदंड क्या है? इसके तौर तरीके क्या हैं? सियासी नेताओं को अपने आचरण और व्यवहार को कैसे बनाए रखना चाहिए? इन सभी गंभीर विषयों पर हमें अब बड़ी गंभीरता से सोचना होगा। पंजाब प्रदेश की राजनीति में पिछले एक पखवाड़े में जो उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं वो मौजूदा राजनीति पर अनेक प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को किस तरह पद से हटाया गया, पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को कैसे और क्यों कर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, इनकी भी अगर गहनता से जांच की जाए तो कई ऐसे गंभीर प्रश्न निकलकर सामने आ जाएंगे जो मौजूदा राजनीति को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं। नवजोत सिंह सिद्धू जो युवा अवस्था से ही काफी गर्म मिजाज के व्यक्ति माने जाते थे जिन्होंने अपने क्रिकेट जीवन के दौरान क्रिकेट के बल्ले से एक व्यक्ति पर हमला करके उसकी जान तक ले ली थी ऐसे गर्म मिजाजी व्यक्तित्व को पहले तो भाजपा ने कंधे पर बैठाकर कई महीनों तक राजनीतिक सफर कराया फिर आप पार्टी ने कुछ दिन सिद्धू को हाथ पकड़कर घुमाया फिराया और उसके बाद तो कांग्रेस ने सिद्धू को पंजाब का नवरत्न मानते हुए अपने सिर पर ही बैठा लिया। जिस तरह से कांग्रेस में सिद्धू का प्रवेश कराया गया और जिस तरह से तानेबाने बुनकर सिद्धू की महिमा गाई गई उससे सिद्धू का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया। सिद्धू ने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ न केवल एक मोर्चा खोला बल्कि खुली बगावत का बिगुल बजा दिया। सिद्धू का निशाना ही मुख्यमंत्री कुर्सी को पाना था। कांग्रेस हाईकमान ने किसी तरह समझा बुझाकर सिद्धू को शांत किया और उसे प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपकर यह मान लिया कि अब वो कांग्रेस की प्रदेश सत्ता के खिलाफ अपने बागी तेवरों को नर्म कर लेगा और कांग्रेस की मजबूती के लिए मुख्यमंत्री के साथ मिलकर अगले चुनाव में कांग्रेस को और अधिक मजबूत करने के लिए काम करेगा। लेकिन हुआ इसके विपरीत ही, सिद्धू ने न तो अपने तेवर बदले और न ही अपने बागी स्वरों को नर्म किया। प्रदेश अध्यक्ष बनने के एक माह के अंदर ही सिद्धू ने खुला ऐलान कर दिया कि पंजाब में या तो कैप्टन अमरेन्द्र रहेंगे या फिर वो खुद रह पाएंगे। उन्हें किस आधार पर और क्यों कर प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था वो अपने स्वार्थों के आगे सबकुछ भूल गए। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष बनकर भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ ऐसी बैटिंग करनी शुरू करी कि कैप्टन न चाहते हुए भी मैदान छोड़कर निकल लिए। अब नया मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो सिद्धू खुलकर नहीं बोल पाए कि वो मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उन्हें लग रहा था कि आला कमान उन्हें खुद से ही सीएम बनाने का प्रस्ताव देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मुख्यमंत्री गरीब दलित परिवार के एक ऐसे व्यक्ति को बना दिया गया जिसके मुख्यमंत्री बनने की किसी ने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। इस नए मुख्यमंत्री ने कुछ फैसले अपने मर्जी से कर लिए जिसमें सिद्धू की राय नहीं ली गई तो स्वभाव के मुताबिक इस गर्ममिजाजी सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया। अभी मात्र साठ दिन ही हुए थे प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाले कि सिद्धू ने आलाकमान को अंगूठा दिखा दिया और खुद मैदान से बाहर निकल गए। अब सिद्धू आगे क्या करेंगे यह तो वक्त ही बताएगा क्योंकि पंजाब प्रदेश में राजनीति कर रहे किसी भी राजनीतिक दल में इतना बल नहीं है कि वो सिद्धू का हाथ पकड़ सकें या उसके करीब भी जा सकें। सिद्धू का पंजाब में राजनीतिक भविष्य क्या रहेगा या तो आगे समय ही बता पाएगा लेकिन यह सामने आ चुका है कि सिद्धू ने बिना सोच विचार किए 20-20 का मैच पंजाब में खेला है और आंखों पर पट्टी बांधकर बल्लेबाजी की है उसके परिणाम तो कांग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनाव में भुगतने ही पड़ेंगे। पंजाब में सिद्धू ने जो राजनीतिक आचरण जगजाहिर किया है उसकी नजर है ये दो पंक्तियां:-
जो हमने उनसे पूछा सियासत क्या है।
जाम हाथ से गिरा और टूट गया।।