नई दिल्ली। ऋष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को माना जाता है। देवों के देव महादेव को हिंदू धर्म में ऋष्टि विनाशक के रूप में देखा जाता है, फिर भी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता के रूप में इनकी पूजा धरती पर सबसे ज्यादा की जाती है। जब भगवान शिव का अवतरण हुआ तो उनका रूप काफी विकराल था जिसे देखकर दोनों देवता समझ गए कि शिव के पास उनसे अधिक शक्ति है। इस तरह शिव धरती पर अवतरित हुए थे।
आमतौर पर लोग शिव और शंकर को एक ही मानते हैं। परंतु ऐसा मन जाता है कि शंकर जी को महेश कहते हैं और उनका एक रूप में जिसमें वह त्रिशूल लिए हुए हैं और उन्हें संहारकर्ता के रूप में पूजा जाता है। वहीं शिव जो निराकार है जिनका कोई रूप ही नहीं है उन्होंने अनंत ऋष्टि का निर्माण किया है। यहां तक कहा जाता है कि शिव का एक रूप ही शंकर है।
अक्सर आपके मन में यह सवाल उठता होगा कि आखिरकार भगवान शिव का जन्म हुआ कैसे होगा? तो चलिए हम आज आपको भगवान भोलेनाथ के अवतरित होने की कथा सुनाते हैं।
बता दें कि जब भगवान शिव का अवतरण हुआ तो उनका रूप काफी विकराल था जिसे देखकर दोनों देवता समझ गए कि शिव के पास उनसे अधिक शक्ति है। इस तरह शिव धरती पर अवतरित हुए थे।
भगवान शिव ने सतयुग में समुद्र मंथन में निकले विष का पान किया था और त्रेतायुग में भगवान राम के भक्त पवनसुत हनुमान के रूप में जन्म लिया था। द्वापर में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी भगवान भोलेनाथ का उल्लेख मिलता है।
भोलेनाथ को प्रसन्न करने के उपाय
प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय का मंत्र जाप करें। साथ ही शिवजी की आरती और चालीसा का भी पाठ करने से सभी दुख और परेशानियां कम हो जाती हैं। निरोगी बने रहने के लिए शिवलिंग पर दूध और काले तिल का अभिषेक करें। संतान सुख पाने के लिए शिवलिंग पर धतूरा और बेलपत्र अर्पित करें। मान-सम्मान की प्राप्ति के लिए शिवलिंग पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए।