व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में ‘चातुर्मास’ कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चतुर्मास या चौमासा का प्रारंभ होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, इसलिए इन चार महीनों में विवाह, मुण्डन, कन छेदन आदि कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। परंतु वर्षा ऋतु के ये चार माह हिंदू धर्म में व्रत और पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। उक्त 4 माह को व्रतों का माह इसलिए कहा गया है कि उक्त 4 माह में जहां हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। उक्त 4 माह में से प्रथम माह तो सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस संपूर्ण माह व्यक्ति को व्रत का पालन करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन सृष्टि संचालन का समस्त कार्यभार भगवान शिव को सौंप कर योग निद्रा में चले जाते हैं। इस कारण सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं। इस दौरान हिंदी पंचांग के चार माह क्रमशः श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक आते हैं, इसलिए इसे चतुर्मास या चौमासा कहा जाता है। इस वर्ष चतुर्मास देवशयनी एकादशी के दिन 20 जुलाई से प्रारंभ होगा और देव उत्थान एकादशी 14 नवंबर तक चलेगा।
हिंदू धर्म में चतुर्मास का व्रत और पूजन का बहुत महत्व है। इन चार माहों में कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते परंतु भगवत् भजन और जागरण का विशेष फल मिलता है। चतुर्मास वर्षा ऋतु के दौरान पड़ने के कारण इस अवधि में खान-पान का संयम रखना चाहिए। व्रत और उपवास इस दृष्टि से भी लाभप्रद हैं। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है।
इस काल में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। चतुर्मास का पहला महीना श्रावण मास विशेष तौर पर भगवान शिव की आराधान को समर्पित है। भाद्रपद मास में गणेश जी का गणेश चतुर्थी पर आगमन होता है और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। अश्विन मास में मां दुर्गा के शारदीय नवरात्रों का पूजन और दशहरा का पर्व मानाया जाएगा। कार्तिक मास में दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन होता है। इसके बाद देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जाग कर अपना कार्यभार पुनः संभालते हैं।