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Sheetala Ashtami 2021: वैज्ञानिक और रोग मुक्ति कारक है, दो जुलाई को होने वाला शीतलाष्टमी व्रत

नई दिल्ली। शीतला अष्टमी सनातन पंरपरा में महत्वपूर्ण पर्व है। मां शीतला का स्वभाव अत्यंत शीतल है। हिंदी पंचाग के चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ माह के अष्टमी को शीतलाष्टमी मनाया जाता है। शीतलाष्टमी को ‘बसौड़ा’ भी कहा जाता है। आषाढ़ माह की अष्टमी तिथि 02 जुलाई दिन शुक्रवार को है। देवी शीतला की पूजा अर्चना में बासी ठंडा खाना ही माता को भोग लगया जाता है जिसे बसौडा कहा जाता है। अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत-उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढ़ा जाता है।

शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है। साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है। पूजा को विधि विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद बसौडा को बांटा जाता है। संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से भी विख्यात है।

शीतला की पूजा करने से व्यक्ति के रोगों का समूल नाश हो जाता है। शीतला की पूजा बच्चों की दीर्घायु और आरोग्य के लिए की जाती है। शीतला की उपासना से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है। इनके कृपा से चेचक रोग से छुटकारा मिलता है। पुराणों में मां शीतला का उल्लेख सबसे पहले स्कन्दपुराण में मिलता है। शीतला मां रोगों का निवारण करने वाली देवी के रूप में जानी जाती हैं। शीतला की सवारी गधा है। शीतला के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। शीतला की उपासना गर्मियों में सबसे ज्यादा की जाती है। शीतला के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई के सूचक हैं।

प्रातःकाल सभी नित्यकर्म के बाद स्नान करके पूजा का संकल्प लेते हैं। पूजा की थाली में दही, पूआ, पूड़ी, बाजरा, मीठे चावल और गुड़ का भोग लाया जाता है। मां की पूजा में हल्दी, अक्षत्, लोटे में जल और कलावा रखते है। इसके बाद भोग लगाना चाहिए।

प्रचलित मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में समस्त शीतलाजनित रोग ज्वर, चेचक, नेत्र विकार दूर होते हैं। माताएं इस व्रत द्वारा अपने बालकों की दीर्घायु एवं उन्नति मां से आशीर्वाद रूप में प्राप्त करती हैं। प्राचीन काल में जब आधुनिक चिकित्सा विधि अस्तित्व में नहीं थी तब शीतला यानी चेचक की बीमारी महामारी के रूप में फैलती थी। उस समय ऋषियों ने देवी की उपासना एवं साफ-सफाई के विशेष महत्व को बताया।

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