समस्त मंगलकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव और माता पार्वती से बढ़कर इस संसार में कोई नहीं है। भगवान शिव की आराधना का पवित्र महीना सावन अब शुरू होने वाला है, इन दिनों तक भगवान शिव और माता पार्वती के साथ उनके परिवार की भी पूजा होगी।
ऐसा मन जाता है कि यह देवों के देव महादेव सावन मास में पूजा के दौरान भक्तों से जल पाकर ही प्रसन्न हो जाते हैं। भक्तजन विधि विधान से शिव-शक्ति की पूजा अर्चना करते हैं और भगवान शिव की आरती करते हैं। भगवान शिव की आरती के बाद कर्पूरगौरं मंत्र का उच्चारण किया जाता है। आखिर ऐसा क्यों? आइए जाने इन मंत्रों का महत्व।
आरती के बाद इस मंत्र के बोलने के पीछे की वजह भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से जुड़ी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने महादेव और माता पार्वती के विवाह के समय कर्पूरगौरं मंत्र को स्वयं बोला था, जिसमें भगवान शिव के विकराल और दिव्य स्वरूप का सार समाहित है।
कर्पूरगौरं मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
मंत्र का अर्थ: कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार, संसार के सार, सर्प का हार धारण करने वाले, वे भगवान शिव शंकर माता भवानी के साथ मेरे हृदय में सदा निवास करें। उनको मेरा प्रणाम है।
आप सावन में या फिर कभी भी जब भगवान शिव की आरती करें तो आखिर में कर्पूरगौरं मंत्र का उच्चारण करें। ऐसी मान्यता है कि पूजा के दौरान कोई कमी रह गई हो, तो उसकी पूर्ति के लिए आरती की जाती है। आरती करने से पूजा की कमी दूर हो जाती है।
भगवान शिव के अभिषेक की सामग्री
यदि आपके पास घर पर शिवलिंग है या पास के किसी छोटे मंदिर में जा सकते हैं तो अभिषेक के लिए निम्न सामग्री रख लें। बिना उबला हुआ गाय का दूध, गुलाबजल, दही, चन्दन, घी, फूल, गंगाजल, जल, अगरबत्ती, दीपक, गुड़, मौली, बेल पत्र, शहद, पान का पत्ता, नारियल और धतुरा। अगर कुछ वस्तुएं नहीं भी कर पाते हैं, तो कोई बात नहीं, जो व्यवस्था कर पाए हैं उनसे ही अभिषेक करें।
भगवान शिव के अभिषेक की विधि
सबसे पहले गंगाजल मिले पानी से स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। अब शिवलिंग को सामान्य जल या गंगाजल से स्नान कराएं। फिर दूध, दही, घी, शहद और गुड़ का मिश्रण बना लें और इससे भगवन शिव को स्नान कराएं। इसके बाद एक स्वच्छ कपड़े से ये मिश्रण साफ कर दें और उनको चन्दन का लेप लगाएं। इसके पश्चात फूल, बेल पत्र, धतुरा और मौली चढ़ाएं। अब अगरबत्ती या दीपक जलाएं तथा गुड़ या कोई मिठाई चढ़ाएं। साथ में पान और नारियल भी अर्पित कर दें। इसके पश्चात महामृत्युंजय मंत्र पढ़ते हुए भगवान् शिव से आशीर्वाद लें।
महामृत्युंजय मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकंयजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्।।
अंत में दीपक के साथ भगवान् शिव की आरती करें तथा शाम को शिव चालीसा भी पढ़ सकते हैं।
12 शिवलिंगों का मंत्र:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ॐ कारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैधनाथ च, डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं, नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं, त्र्यंबकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं, धुश्मेशं च शिवालये॥
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि, सायंप्रात: पठेन्नर।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥