कमल सेखरी
या तो जुल्मात की हद है या कोई जादू है
काटता वो है फसल जो नहीं बोता है।
आज की स्थिति में सियासत कुछ ऐसा रंग ले चुकी है कि जिसमें जो शुरू में होता है वो बाद में एकदम बदला सा नजर आता है। सियासी जमीन पर जो भी फसल बोता है उस फसल का हक उसी व्यक्ति का रह पाएगा यह निश्चित नहीं है, अक्सर यही देखने में आता है कि बीज कोई डाल रहा है मेहनत कोई कर रहा है और पकी फसल कोई और काटकर ले जा रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में हुए पंचायती चुनावों के दौरान भाजपा को काफी बुरी शिकस्त का सामना करना पड़ा। लेकिन शिकस्त की यह पीड़ा उसे बहुत अधिक समय नहीं झेलनी पड़ रही है। क्योंकि अब जब जीते हुए जिला पंचायत सदस्यों का अध्यक्ष चुनने का समय आ रहा है तो हारी हुई भाजपा अपना अध्यक्ष बनाकर जिला पंचायत कार्यालयों पर झंडा तो अपना ही फहराने जा रही है। गाजियाबाद में हुए पंचायती चुनावों में जीते 14 सदस्यों में से कुल दो सदस्य ही भाजपा के थे, आज नामांकन के दिन इन्हीं दो सदस्यों वाली पार्टी ने बड़े ही दमखम से अध्यक्ष पद के लिए अपना प्रत्याशी उतार दिया है। आगामी तीन जुलाई को इन 14 जीते हुए जिला पंचायत सदस्यों ने अपना नया अध्यक्ष चुनना है। न केवल अटकलें लगाई जा रही हैं बल्कि समीकरण भी अभी से ऐसे दिखाई देने लगे हैं कि मात्र दो सदस्यों वाली पार्टी अपना नया अध्यक्ष बनाकर ले जा सकती है। अब जो जीता वो हारा और जो हारा अंतिम जीत उसी की होती नजर आ रही है। अब ये कोई करिश्मा है या कोई जादू है या सत्ता बल की ताकत है कि दो सदस्यों वाला दल खुद को मिलाकर 14 विरोधी सदस्यों की मौजूदगी में अपना अध्यक्ष चुनने का करिश्मा दिखा सकता है। यह राजनीतिक शास्त्र का कौन सा मापदंड है, कौन सा फार्मूला है कि इस तरह बुरी तरह से हार का मुंह देखने वाला दल अगले पांच साल कुर्सी पर बैठकर राज करेगा और बहुमत वाले विरोधी दलों के सदस्यों को अपनी चाबुक से हांकेगा। अलादीन का यह चिराग भारतीय राजनीति की किसी बोतल से ही जिन्न प्रकट कर सकता है वरना इस तरह की असंभावनाओं के बीच और किसी देश की सियासत में ऐसा हो पाना संभव नहीं है। इस करिश्मे को सलाम, ये वो जादू है जो किसी और की बोई हुई फसल को काटने का दम रखता है।