चर्चा-ए-आमस्लाइडर

कामरा को क्यों किया जाए गिरफ्तार!

Why should Kamra be arrested?

कमल सेखरी
हमारा देश संविधान से चलता है, लोकतंत्र तभी तक जिंदा है जब तक हम देश को संविधान के अनुसार चला रहे हैं। हमारा यह संविधान हम भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति का ऐसा अधिकार देता है जिसमें कुछ लिख सकते हैं, कुछ बोल सकते हैं और अपनी बात को किसी माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं। कुणाल कामरा जो पेशे से हास्य कलाकार है और अपने व्यंगों के माध्यम से पिछले कई सालों से देश में काफी लोकप्रिय है उसने ऐसा क्या कह दिया कि जो एकनाथ शिंदे की शिव सेना के सैनिकों ने उसके स्टूडियो में तोड़फोड़ कर दी, सारी लाइट, पंखे और एसी तोड़ डाले और वहां जो फर्नीचर्स था उसे पटक-पटक कर तोड़ डाला। इतना ही नहीं स्टूडियो में जितने पोस्टर लग रहे थे सभी पर कालिख पोत दी। कुणाल कामरा का दोष क्या था, उसने तो अपने अन्य हजारों हास्य गीतों की तरह महाराष्ट्र की राजनीति पर भी एक व्यंगात्मक गीत सोशल मीडिया के अपने चैनल पर अपलोड किया जो खूब वायरल हुआ। हालांकि इस गीत में किसी नेता विशेष या अन्य किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया गया केवल प्रतीक मात्र संकेतों में भाव को प्रकट किया गया। लेकिन एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों को यह लगा कि यह गीत हमको लेकर ही बनाया गया है और इसमें जो व्यंग व्यक्त किया गया है वो हमारी ओर ही संकेत करता है। इस गीत में सबसे कठोर शब्द जो इस्तेमाल किया गया वो गददार शब्द था लेकिन किसी के नाम लिये बिना कहा गया था। बस ये एक गददार शब्द शिंदे गुट के समर्थकों को बुरा लगा और उन्होंने कुणाल कामरा का स्टूडियो पूरी तरह से तहस नहस कर दिया। अब ये गददार शब्द तो आज की राजनीति के चलन का एक बड़ा हिस्सा बन गया है। कई नेता एक दूसरे को गददार कहकर संबोधित करते हैं। गददार तो छोटा शब्द है इससे भी बड़े कई शब्द हमारे ये राजनेता एक दूसरे पर प्रहार करने पर अक्सर बोलते नजर आते हैं। देशद्रोही, आतंकवादी, चोर-लुटेरा, डाकू, 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड, रेनकोट पहनकर बाथरूम में नहाना, मुजरा करना, मंगलसूत्र लूटकर ले जाना और भी कई असंतुलित व अश्लील भाषा में ये राजनेता एकदूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। ऐसे में अगर व्यंगकार ने अपने गीत में बिना किसी का नाम लिये गददार शब्द बोल दिया तो हमें बुरा क्यों लगा। और फिर इतना बुरा क्यों लगा कि हमने उसका स्टूडियो ही तोड़फोड़ दिया। इतना ही नहीं शिंदे की शिवसेना के कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने भी देश के कानून को चुनौती देते हुए मीडिया में सीना ठोककर कहा कि जो हमारे नेताओं के बारे में कुछ भी गलत लिखेगा या बोलेगा तो हम सीधी कार्रवाई करेंगे। मुंबई पुलिस ने दोनों ही पक्षों की तरफ से एफआईआर लिख ली है। शिवसैनिकों को कुछ ही घंटे में रिहाई मिल गई और व्यंगकार कामरा को पुलिस ढूंढ रही है। यहां तक कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने भी मीडिया में स्पष्ट बयान देकर कहा है कि हमारे नेताओं के लिए इस तरह की भाषा बोलने वाले को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने पुलिस से इस संबंध में कामरा के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए हैं। हालांकि इस संबंध में कुछ भी कार्रवाई करना पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं है। पुलिस का कोई भी अधिकारी इस बात की विवेचना नहीं कर सकता कि मानहानि के इस मुकदमे में किसी व्यक्ति के मान सम्मान को कैसे और कितनी ठेस पहुंची है। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना मानहानि के ऐसे मामलों में मात्र एक कानूनी औपचारिकता है जिसका निर्णय प्रेस एक्ट की धारा 500 के अंर्तगत अदालत से ही हो पाना संभव है। दोषी पाये जाने पर मानहानि करने वाले व्यक्ति के खिलाफ अधिकतम दो वर्ष की सजा का प्रावधान है। कथित दोषी को अदालत में हाजिर होने पर पहली ही हाजिरी में जमानत देने का प्रावधान भी है। अत: कुणाल कामरा ने किसकी मानहानि की और किस नीयत से की इस पर फैसला करने का अधिकार केवल अदालत को है। अदालत जाये बिना कानून अपने हाथ में लेकर व्यंगकार कामरा पर सीधा हमला कर दिया जाए और उसके व्यवसाये व कमाई के साधनों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाए, यह कानून की नजर में एक बड़ा अपराध है। ऐसे में सत्ता दल के मुख्यमंत्री जो प्रदेश के गृहमंत्री भी हैं उनका हमलावरों के पक्ष में खड़ा होना और व्यंगकार कामरा से निपटने की धमकी देना भी लोकतंत्र पर एक गहरी चोट है। पुलिस अगर दबाव में आकर कामरा के खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई करती है तो कानून की नजर में वो भी गैर कानूनी ही होगा। वैसे कुणाल कामरा का यह मामला सबसे चर्चा में आया है और मीडिया वो सोशल मीडिया में तेजी पकड़ रहा है उससे एक फायदा तो हुआ है कि महाराष्ट्र में औरंगजेब का नाम लेकर सड़कों पर आई राजनीति अब ठंडे बस्ते में चली गई। अब औरंगजेब के नाम को दोबारा जिंदा करके पहले की तरह सामने लाना भाजपा और सहयोगी दलों के लिए मुश्किल का सबब बन सकता है।

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