चर्चा-ए-आमलेटेस्टस्लाइडर

क्या सभी चुनाव फर्जी वोटों से जीते जा रहे हैं ?

Are all elections being won with fake votes?

कमल सेखरी
पिछले कुछ महीनों में देश के अलग-अलग प्रदेशों में हुए विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में फर्जी मतदान कराने का आरोप लगाकर वहां जबरन सरकारों को जिताकर केन्द्र में बैठी भाजपा सरकार ने अलोकतांत्रिक कार्य किया है। सभी विपक्षी दल एक सुर में यह आवाज बुलंद करते नजर आ रहे हैं। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और अन्य सभी विपक्षी नेताओं ने लोकसभा के सदन में इस फर्जी मतदान के मुददे को एक स्वर से बड़ी पुरजोरता से उठाया है। विपक्षी दल इस मामले में एक लंबे समय से खुलकर आरोप लगा रहे हैं और उन्होंने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त को इस संबंध में लिखित शिकायतें भी दर्ज की हैं हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त ने इन लिखित शिकायतों पर अपना लिखित पक्ष देने के लिए पिछले माह की 5 तारीख निर्धारित की थी परंतु अभी तक चुनाव आयोग ने किसी भी विपक्षी दल को अपना पक्ष स्पष्ट नहीं किया है। प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनाव खत्म होने के साथ ही मतगणना से पहले यह आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र की मतदाता सूची में पिछले छह महीनों में 72 लाख से अधिक नए मतदाताओं के नाम शामिल किए गए हैं और उन सभी ने महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में अपना मत देकर वहां के चुनाव परिणामों को एकतरफा तय कराने का काम किया है। राहुल गांधी ने उसी समय चुनाव आयोग से महाराष्ट्र के मतदाताओें की सूचियां मांगी थीं ताकि उनकी पार्टी यह जांच कर पाए कि 72 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम सूची में किस आधार पर शामिल कर लिये गए हैं,इसी तरह दिल्ली के विधानसभा चुनावों के दौरान दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के संयोजक केजरीवाल ने भी खुलकर आरोप लगाए कि दिल्ली की मतदाता सूची में बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता शामिल कर लिए गए हैं। और अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव से काफी पहले ही यह आरोप लगाती दिखाई दे रही हैं कि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में हजारों की संख्या में ऐसे मतदाताओं के नाम नजर आ रहे हैं जो अब से पहले दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश की मतदाता सूचियों में दर्ज थे। ममता बनर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में अचानक इतनी बड़ी संख्या में शामिल किए गए मतदाताओं का वोट आईडी कार्ड का इपिक नंबर वो ही है जो हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश की सूचियों में दर्ज है। विपक्षी नेताओं का यह आरोप है कि भाजपा के पास लाखों की संख्या में अपने दल और आरएसएस के कार्यकर्ताओं को मिलाकर ‘फ्लोटिंग वोटर’ इतनी बड़ी तादादा में हैं जो किसी भी प्रदेश में विधानसभा चुनाव आने से पहले अपने वोटर आईडी कार्ड को पुरानी विधानसभा क्षेत्र की सूची में सरेंडर कर देते हैं और जहां भी चुनाव होते नजर आते हैं वहां की मतदाता सूची में अपने नाम दर्ज करा लेते हैं। ऐसे मोबाइल वोटरों की संख्या इपिक नंबर के एक होते हुए भी अलग-अलग राज्यों की मतदाता सूची में दर्ज दिखाई दे रहे हैं और ये फर्जी मतदाता रह रहकर नए विधानसभा चुनाव में अपना मतदान दे आते हैं। विपक्षी नेता ईवीएम की मशीनों में फिक्सिंग के साथ-साथ इन मोबाइल वोटरों के एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचकर वोट देने को भी भाजपा की जीत का आधार मान रहे हैं। लोकसभा में इस संबंध में विपक्षी दलों द्वारा रखे गए कई प्रश्नों के जवाब में एक तरफ तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि आप लोग पहले इस संबंध में नियम पढ़कर आईए फिर सदन में बात कीजिए। वहीं दूसरी ओर लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्षी दलों की इस दलील को अनसुना कर दिया कि यह कहकहर कि यह चुनाव आयोग से जुड़ा मामला है, सरकार से जुड़ा नहीं है इसलिए लोकसभा में इसका रखा जाना उचित नहीं है। अब देश के इस सबसे गंभीर मुददे पर चुनाव आयोग अपनी कोई प्रतिक्रिया देने को तैयार नहीं है और लोकसभा के सदन में व्यवस्था इस पर सुनवाई करना नहीं चाहती ऐसे में विपक्षी दल अपने इन गंभीर प्रश्नों को लेकर जाएं तो कहां जाएं। हर रोज सदन में सुनवाई ना होने पर विपक्षी दलों का सदन से बहिष्कार तो समस्या का हल नहीं है। लोकतंत्र में मतदान को लेकर अगर कोई संदेह विपक्षी दलों में पनपता है तो लोकतंत्र का सबसे पहला तकाजा यही है कि चुनाव आयुक्त सब काम छोड़कर इस मामले में अपना स्पष्टीकरण दे और अगर वो ऐसा नहीं करता तो सत्ता में बैठी सरकार लोकतंत्र बचाने के हित में चुनाव आयोग पर दबाव डालकर स्थिति स्पष्ट करने के लिए उसे बाध्य करे।

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