कमल सेखरी
हम कितनी भी प्रगति कर जाएं आर्थिक रूप से कितने भी संपन्न हो जाएं। कितने भी बड़े-बड़े बंगलों में रहना शुरू कर दें। घूमने-घुमाने के लिए कितनी भी बड़ी-बड़ी गाड़ियां हमारे पास आ जाएं, हमारी ये प्रगति ये आर्थिक संपन्नता तब शून्य हो जाती है जब हमारे घर से संतोष धन चला जाता है यानी घर से शांति चली जाती है और घर में आपसी झगड़ों, क्लेश और तनाव का साम्राज्य बन जाता है। यही स्थिति किसी देश की भी होती है। कोई भी देश कितनी भी प्रगति कर जाए अपने आपको विश्व की सबसे मजबूत आर्थिक स्थिति में भी आंकना शुरू कर दे और विकसित राष्टÑ की ओर बढ़ने के बड़े-बड़े दावे करने लग जाए लेकिन अगर उस देश में आपसी सौहार्द, समन्वय, स्नेह और प्यार लोगों के बीच नहीं बना रह पाता तो यह समस्त प्रगति विकास और उन्नति के दावे स्वत: ही शून्य पड़ जाते हैं। आज हमारे देश की सियासत ने देश में कुछ ऐसा ही माहौल बनाकर खड़ा कर दिया है जहां हर दिन एक ऐसा अहसास मन में आ जाता है कि आज कुछ ऐसा हो सकता है जिससे देश का धार्मिक सौहार्द खतरे में आ जाए या फिर जातीय मतभेद का कोई ऐसा मामला उठ खड़ा हो जो देश के आपसी सौहार्द को कोई बड़ी चोट पहुंचा दे। हिन्दू-मुसलमान के नाम पर देश के आपसी सौहार्द को तोड़ने का सियासी प्रयास हमारे राजनेताओं द्वारा किया जाना कोई नई बात नहीं है। हमारे राजनेताओं ने अपने सियासी स्वार्थों के लिए कई बार ऐसे प्रयास पहले भी किए हैं जिनसे हिन्दू-मुसलमान के नाम पर देश का धार्मिक सौहार्द बिगड़ा है और ये धार्मिक उन्माद पैदा करके जब-जब भी कुछ सियासी नेताओं ने राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की है तब-तब उनके विरोधियों ने उनके उन प्रयासों के जवाब में जातीय मतभेद को उभारने का काम किया है। ऐसे में हमारा देश रह रहकर कई बार धार्मिक उन्माद और जातीय मतभेद का शिकार होता रहा है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में हमारे देश के सियासी दलों ने जो एक नया चलन अपनाया है उसकी उग्रता के जो परिणाम सामने आने शुरू हुए हैं वो समूचे देश के लिए बड़े ही घातक और नुकसान पहुंचाने वाले हैं।
देश के केन्द्र में सत्ता पर आसीन सत्तादल और उसके साथ जुड़े उस दल के प्रदेशों में आज जिस तरह से हिन्दू-मुसलमान के नाम पर खुला खेल निरंतरता के साथ खेला जा रहा है वो वर्तमान में तो देश के लिए घातक है ही है आने वाली पीढ़ियों को भी बहुत गहरी पीड़ा पहुंचाने जा रहा है। धार्मिक उन्माद के इन प्रयासों के जवाब में विपक्षी दलों का गठबंधन मिलकर आरक्षण और जातीय जनगणना के नाम पर जो जातीय अंतर पैदा करने का प्रयास कर रहा है वो भी देश को एक बड़ा नुकसान पहुंचाने का काम कर सकता है। हालांकि विपक्षी गठबंधन का यह प्रयास बहुत अधिक सफल होता नजर नहीं आ रहा है लेकिन फिर भी दिमागों में डाला जा रहा यह बीज कभी भी अंकुर बनकर निकल सकता है। इन सब परिस्थितियों के चलते नि:संदेह देश की शांति और सौहार्द ना केवल टूटते नजर आ रहे हैं बल्कि आने वाले समय में देश को गहरे जख्म भी देने जा रहे हैं। हम अबसे पूर्व भी कई बार अपने इस विशेष कॉलम के जरिये कह चुके हैं कि देश में जो सियासी प्रयास चल रहे हैं उन्हें न रोका गया तो आने वाले समय में हमारा यह देश जो अब तक आपसी सौहार्द और समन्वय का प्रतीक बनकर विश्व पटल पर एक मजबूत स्थान के साथ खड़ा दिखाई देता रहा है वो कभी भी गृह युद्ध की स्थिति तक भी पहुंच सकता है। हमने पहले भी कई बार अनुरोध किया है और अब फिर पुन: अनुरोध कर रहे हैं कि दोस्तों मिलकर कोई ऐसा वातावरण बनाओ जिससे इन सियासी नेताओं के प्रयास सफल ना हो पाएं और देश में आपसी प्यार, सौहार्द, स्नेह और समन्वय बना रहे।