कमल सेखरी
जिसकी आशंकाएं लगाई जा रही थीं धीरे-धीरे वही निकलकर सामने आ रहा है। देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल चाहे वो राष्ट्रीय स्तर पर हों या क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व कर रहे हों, अब सबने बहुत ही सरल और सुगम तरीका अपना लिया है जिसके आधार पर वो राजनीति के चुनावी मैदान में उतरते हैं और उसी रास्ते पर चुनावी परिणाम भी अपने पक्ष में लेने की कोशिश करते हैं। धर्म और जातीय आधार जहां एक ओर सभी राजनेताओं का मजबूत हथियार बन गया है वहीं चुनाव से पहले मतदाताओं को रेवड़ी की तरह कई तरह के उपहार देकर उन्हें अपने पक्ष में लाने का फार्मूला भी सभी दल अपना रहे हैं। जहां एक ओर हिन्दू-मुस्लिम को मुख्य आधार मानकर भाजपा पिछले कई चुनावों से दबी जुबान में अपना चुनावी आधार मानकर चल रही थी अब उसने इस मुददे पर एकतरफा खुलकर बोलना शुरू कर दिया है। बंटोगे तो कटोगे, एक रहोगे तो नेक रहोगे और एक रहोगे तो सुरक्षित रहोगे जैसे नारे जो अभी तक लगाए जा रहे थे अब खुलकर उन नारों के स्पष्ट संकेत देने शुरू कर दिए हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा के विपक्षी दल जो इंडिया गठबंधन के नाम से भाजपा के सामने खड़े हैं उन्होंने पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक को आधार मानते हुए उत्तर प्रदेश में पीडीए का नारा और अधिक तेजी से बुलंद करना शुरू कर दिया है और इसी नारे के आधार पर समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में होने जा रहे नौ सीटों के उपचुनाव को लेकर अपना हल्ला पुरजोरता से बोलना शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण और जातीय जनगणना को अपना अपना मुख्य आधार बनाकर पूरे देश में अभियान छेड़ दिया है। भाजपा जो अब तक अलग-अलग नारों से हिन्दुओं को एकजुट होने का संकेत दे रही थी अब उसने स्पष्ट रूप से एकतरफा रूख अपना लिया है और दो दिन पहले ही देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झारखंड में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस के नारे जातीय जनगणना कराकर रहेंगे का पुरजोर विरोध करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वो कांग्रेस के इस प्रयास को सफल नहीं होने देंगे और जातीय जनगणना के नाम पर देश का विभाजन नहीं होने देंगे। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा से नाराज होकर विमुख हो गया था उसने अब व्यापक हिन्दू दर्शन के नाम पर भाजपा के सभी प्रदेश के चुनावों में अपने स्वयंसेवकों का पूरा-पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया है। एक रहेंगे सेफ रहेंगे को आधार मानते हुए स्वयंसेवक अब महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ यूपी के उपचुनावों में भी घर-घर जाकर हिन्दुओं के एक होने के महत्व को समझा रहे हैं और जातीय जनगणना से ऊपर हिन्दुत्व के व्यापक दर्शन की सोच बनाने की बात कह रहे हैं। अब देखना यह है कि भाजपा के खुलकर हिन्दू एजेंडे पर आने का क्या असर इन आने वाले मतदानों पर पड़ता है और वहीं दूसरी ओर यूपी में अखिलेश यादव के पीडीए और महाराष्ट्र व झारखंड में कांग्रेस के जातीय जनगणना कराने की अनिवार्यता के आधार का असर मतदाताओं में कितना देखने को मिलता है। देश अबसे पहले भी इन्हीं दो विचारधाराओं पर मंडल-कमंडल के नाम से भी बंटा है और अब फिर संकेत नजर आ रहे हैं कि वही पुराना आधार फिर से अपना असर दिखा सकता है। अगले आठ दिनों के अंदर होने जा रहे विधानसभा के ये तीनों चुनाव आने वाले समय में देश की सोच और दिशा निर्धारित करेंगे, यह राजनीति के विशेषज्ञों का मानना है।