‘‘मरना उसका मरना जिसका करे जमाना अफसोस
वरना दुनिया में आते हैं सभी जाने के लिए ’’
कमल सेखरी
भारत ही नहीं विश्व के सुप्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। वे 86 वर्ष के थे और बीती रात स्वास्थ्य खराब होने के चलते उनका स्वर्गवास हो गया। रतन टाटा के इस दुनिया से चले जाने से ना केवल भारत के नागरिक ही दुखी हैं बल्कि विश्वभर के वो लोग जो स्वर्गीय रतन टाटा को नजदीक से या उनके विषय में मिली जानकारियों के आधार पर उन्हें जानते थे, वे सब लोग दुखी हैं और सभी को स्वर्गीय रतन टाटा के स्वर्ग सिधारने पर अफसोस भी है। रतन टाटा देश के एक अनमोल रत्न थे। उनका पूरा जीवन बिना किसी विवाद के बड़े ही सौहार्दपूर्ण और पारस्परिक प्रेम के साथ व्यतीत हुआ। वर्षों तक टाटा समूह के चेयरमैन रहे स्वर्गीय रतन टाटा विश्व के इकलौते ऐसे उद्योगपति थे जिन्होंने अपने पूरे जीवन में अपने आदर्शों और व्यक्तिव के मापदंडों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया। उनके नेतृत्व में चलते रहे टाटा समूह ने देश के किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी से अपने औद्योगिक विकास और कार्यों को लेकर कभी कोई अनावश्यक लाभ नहीं उठाया। टाटा समूह सरकारी निर्माण कार्यों और ठेकेदारी की प्रथाओं से हमेशा ही दूर रहा और उसने एक सामान्य उपभोक्ता के लिए घर के नमक से लेकर स्टील, इलेक्ट्रोनिक्स, आटोमोबाइल, इंश्योरेंस, फाइनेंस, एयरलाइंस तक के क्षेत्रों में एक सम्मान रखते हुए अपना अद्भुत योगदान दिया। टाटा समूह के सौ से अधिक उत्पादन क्षेत्रों में कोई भी ऐसा उदाहरण देश के सामने नहीं आया जिसमें यह आरोप लगाया जा सकता हो कि टाटा समूह ने अमूक क्षेत्र में कोई छल कपट या धोखेबाजी की हो। स्वर्गीय रतन टाटा इतने विशाल उद्योगपति और व्यवसाई होते हुए भी बड़े विनम्र और उदारवादी थे और उन्होंने गरीबों के स्वास्थ्य व अन्य आवश्यकताओं के लिए अपनी कई ऐसी सेवाएं दीं जिनमें गरीबों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। स्वर्गीय रतन टाटा की उदारता के कई उदाहरण बड़ी प्रमुखता से लिये जाते हैं। इनमें एक ऐसा भी है जिसमें एक बार स्वर्गीय रतन टाटा की गाड़ी एक लाल बत्ती पर रुकी तो उन्होंने देखा कि एक स्कूटर पर परिवार के चार लोग बैठे जा रहे हैं। उन्होंने शीशा उतारकर स्कूटर पर चार लोगों के बैठने का कारण पूछा तो पता चला कि यह उनकी मजबूरी है क्योंकि उनके पास इतना धन नहीं है कि वे कार खरीद सकें। स्वर्गीय टाटा ने उसी दिन नैनो कार बनाने का फैसला किया जिसकी कीमत केवल एक लाख रुपए रखी गई। स्वर्गीय रतन टाटा का पशुओं के प्रति भी बहुत प्यार था। बताया जाता है कि वो जब कभी भी घर से निकलते थे तो जगह-जगह गाड़ी रोककर कुत्तों को खाने का भोजन दिया करते थे, उनके इंतजार में कई जगह बड़ी संख्या में कुत्ते इकट्ठा हो जाते थे। उन्होंने अपने घर में भी 35 से 40 कुत्ते पाल रखे थे। कहा जाता है कि एक बार इग्लैंड के शाही परिवार ने स्वर्गीय रतन टाटा को ‘लाइफ टाइम अवार्ड’ देने के लिए आमंत्रित किया, प्रिंस चार्ल्स ने स्वर्गीय टाटा के आगमन को महत्व देते हुए आयोजन की सभी तैयारियां अपनी देखरेख में करार्इं, लेकिन स्वर्गीय टाटा ने अंतिम क्षण में उस कार्यक्रम में ना जाने की सूचना शाही परिवार को दी और बताया कि वो इसलिए नहीं आ पा रहे हैं कि उनके घर उनके एक कुत्ते की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है जिसे छोड़कर आने के लिए उनका मन नहीं कर रहा। इसी तरह बताया जाता है कि एक अन्य मौके पर जब उन्होंने सिंगापुर की विस्तारा एयरलाइंस के साथ भागेदारी की और उसके उद्घाटन समारोह में उन्हें जाना था तब भी उनके एक और अन्य कुत्ते की तबीयत अचानक काफी खराब हो गई। स्वर्गीय रतन टाटा हालांकि उस उदघाटन समारोह में चले गए लेकिन हर आधे-आधे घंटे बाद टेलीफोन करके बीमार कुत्ते का हाल पूछते रहे। इतना ही नहीं उदघाटन समारोह के बाद आयोजकों ने जो रात्री भोज स्वर्गीय टाटा के सम्मान में आयोजित किया था उसमें उन्होंने भाग नहीं लिया और यह कहकर लौट आए कि उनके घर का एक सदस्य काफी बीमार है और उन्हें तुरंत जाना है। पशु-पक्षियों के प्रति उनके इस तरह के अद्भुत प्रेम के अनेकों उदाहरण उनके जीवन की चर्चाओं के साथ जुड़े हुए हैं। श्री रतन टाटा के निधन पर पूरा भारत दुखी है और हम भी दुख की इस घड़ी में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
‘‘जो जिस्त को ना समझे, जो मौत को ना जाने
जीना उसी का जीना, मरना उसी का मरना’’