- डॉ. गौहर की काव्य यात्रा उनकी अनुभूति और संवेदशीलता का प्रमाण है : राय
गाजियाबाद। ‘बारादरी’ (काव्य कुटुंब) ‘ के वार्षिकोत्सव में गीतकार गोविंद गुलशन, शायरा डॉ. माला कपूर ‘गौहर’, कवयित्री उर्वशी अग्रवाल’ उर्वी’ व लेखक एवं पत्रकार आलोक यात्री की विभिन्न विधाओं की पुस्तकों का विमोचन किया गया। पुस्तकों के विमर्श के क्रम में डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ की पुस्तक ‘माला के मोती’ का विवेचन करते हुए लेखक व संपादक हरियश राय ने कहा कि डॉ. गौहर की अधिकांश कविताओं में पर्यावरणीय चिंता के विभिन्न प्रारूप देखने को मिलते हैं। उनकी अधिकांश कविताएं प्रकृति से संवाद करती नजर आती हैं। चार दशक की उनकी काव्य यात्रा उनकी अनुभूति और संवेदशीलता का प्रमाण है। डॉ. गौहर के गजल संग्रह ‘एहसास के जुगनू’ और ‘तसव्वुर से आगे’ पर प्रसिद्ध शायर शकील जमाली, गोविंद गुलशन की पुस्तक ‘फूल शबनम के’ पर मशहूर शायर मंसूर उस्मानी, आलोक यात्री की पुस्तक ‘हुआ यूं के…’ पर पत्रकार अतुल सिन्हा व उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ के कविता संग्रह ‘अंतर्मन की पाती : सुनो ना…’ पर कवयित्री संध्या यादव तथा दोहा संग्रह ‘हंसुली चांद की’ और ‘यादों की कंदील’ पर प्रख्यात शायर विज्ञान व्रत ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मशहूर शायर प्रो. शहपर रसूल ने की। उन्होंने कहा कि बारादरी का हर आयोजन साहित्यिक कुंभ होता है। उन्होंने कहा कि बारादरी की शमां की रौशनी पूरे देश और दुनिया में फैलनी चाहिए।
कार्यक्रम का शुभारंभ अंजू जैन की सरस्वती वंदना से हुआ। अपने संबोधन में हरियश राय ने कहा कि बारादरी की चार साल की यात्रा से ही माला कपूर ‘गौहर’ ने इस नगरी को उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बना दिया है। उन्होंने कहा कि बारादरी ऐसा आयोजन हो गया है जिसमें आसपास के अलावा गुड़गांव, फरीदाबाद, लखनऊ, मुम्बई और हिमाचल से ही नहीं दूर दराज से लोग इस कार्यक्रम में खिंचे चले आते हैं। उन्होंने कहा कि यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि दिल्ली में भी शायद ही कोई मंच ऐसा होगा जो ऐसा कार्यक्रम आयोजित कर पाए। उन्होंने आयोजकों के प्रयासों की सराहना करते हुए सभी रचनाकारों को बधाई दी। विमोचन कार्यक्रम का संचालन असलम राशिद ने किया
इस अवसर पर बारादरी (काव्य कुटुंब) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन व मुशायरे में देश भर से जुटे कवियों व शायरों ने जमकर दाद बटोरी। काव्य सत्र की शुरूआत संध्या यादव की कविताओं से हुआ। शायरा अलीना इतरत के कहा ‘खिजां की जर्द सी रंगत बदल भी सकती है, बहार आने की सूरत निकल भी सकती है। अभी तो चाक पे जारी है रक्स मिट्टी का, अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है’। उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ ने फरमाया ‘उसने खिड़की बंद की, बोला मुझको बाय, घूंट -धूंट कर पी गई मैं भी अपनी चाय’। विज्ञान व्रत ने फरमाया ‘बस अपना ही गम देखा है, तूने कितना कम देखा है’।
डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने अपनी इन पंक्तियों पर ‘ये किसका गुमां है तसव्वुर से आगे, मुहब्बत जवां है तसव्वुर से आगे।
यहां मुख़्तसर सी कहानी है अपनी, बड़ी दास्तां है तसव्वुर से आगे’ पर भरपूर दाद बटोरी। शायर पवन कुमार ने फरमाया ‘किसी ने रखा है बाजार में सजा के मुझे, कोई खरीद ले कीमत मेरी चुका के मुझे। उसी की याद के बर्तन बनाये जाता हूं, वही जो छोड़ गया चाक पे घुमा के मुझे’। शाहिद अंजुम ने कहा ‘तेरे कत्थई रूप की इमली खाते हैं, दीवानों के चेहरे चुगली खाते हैं। किर्केट का मैदान है ये दुनियां अंजुम, इस में अच्छे अच्छे गुगली खाते हैं। असलम राशिद की पंक्तियां ‘किसको आवाज लगाऊं जो बचा ले मुझको, कोई आये मेरे अंदर से निकाले मुझको। तुझको हासिल हूं मगर ये भी तो हो सकता है, तेरे दामन से कोई और उठा ले मुझको’ पर जमकर दाद बटोरी। शकील जमाली ने कहा ‘ये जो खुश होने का दावा करते हैं, दिन में चार दफा समझौता करते हैं। लफ़्ज को चेहरा ऊपर वाला देता है, हम तो खाली कागज काला करते हैं’। मसूर उस्मानी ने कहा ‘बुझने न दो चरागे वफा, जागते रहो, पागल हुई है अब के हवा, जागते रहो। पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया। फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो। शबाना नजीर ने कहा ‘चमन को फूल वतन को नई बहार मिले, हमें भी दामन-ए-सद-चाक-ओ-तार-तार मिले। यही है आमद-ए-फस्ल-ए-बहार का हासिल, तमाम फूल गुलिस्तां में दिल-फिगार मिले’। बारादरी के अध्यक्ष गोविंद गुलशन की यह पंक्तियां ‘दिल है उसी के पास हैं साँसें उसी के पास, देखा उसे तो रह गईं आँखें उसी के पास। बुझने से जिस चराग ने इन्कार कर दिया, चक्कर लगा रही हैं हवाएँ उसी के पास’ भी भरपूर सराही गईंं। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. शहपर रसूल ने की। उन्होंने कहा ‘मैंने भी देखने की हद कर दी, वह भी अपनी तस्वीर से निकल आया’। कार्यक्रम का संचालन रहमान मुसव्विर ने किया। उन्होंने कहा ‘ये तआल्लुक के तकाजों को भी खा जाता है, शक मोहब्बत की किताबों को भी खा जाता है। मैं तो इक मांस का टुकड़ा हूं मेरी क्या औकात, गम का कीड़ा तो पहाड़ों को भी खा जाता है। श्रोताओं ने विशेष रूप से पधारी अनामिका अंबर को भी बड़े मन से सुना। श्रोताओं ने देर रात तक गीत गजलों का आनंद उठाया। इस अवसर पर श्रीमती संतोष आॅबराय, पवन अग्रवाल, निलाद्री पाल, वी. एस. मनुरकर, प्रेम लता पाठक, डॉ. रेखा अग्रवाल, अर्चना वार्ष्णेय, प्रतिभा सिंह, खुश्बू, डॉ. परिधि, दीवा, मायरा गोयल और मायरा अग्रवाल को सम्मानित किया गया। तन्वी कपूर और राहुल गोयल ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर सुरेंद्र सिंघल, ऋषि कुमार शर्मा, आलोक अविरल, अशोक गुप्ता, स्वति चौधरी, अवधेश श्रीवास्तव, योगेन्द्र दत्त शर्मा, तरुणा मिश्रा, मनु लक्ष्मी मिश्रा, मकरंद प्रताप सिंह, स्मिता सिंह, सुभाष चंदर, शिवराज सिंह, वागीश शर्मा, शकील अहमद, इकरा अंबर, दीपा गर्ग देवेंद्र देव, देवेंद्र गर्ग, दशार्नंद गौड़, बीना शर्मा व भारत भूषण बरारा सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद थे।