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देश की शिक्षा व्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले सुप्रीम कोर्ट: जीपीए

  • गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का किया स्वागत
    गाजियाबाद।
    गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश शिक्षा कमाई का जरिया नहीं को प्रभावी बताते हुए निर्णय का स्वागत किया है। गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्य्क्ष सीमा त्यागी ने कहा कि यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब देश के अधिकतर राज्यों में शिक्षा का बढ़ता व्यवसायीकरण अपनी चरम सीमा पर है जिसकी वजह से शिक्षा आम आदमी की पहुंच से दूर होकर एक विशेष वर्ग के लोगों के लिए सीमित होने का संदेश दे रही है। शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर लगाम लगाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार चुप्पी साधे रखती है। शिक्षण संस्थानों की फीस पर लगाम लगाने की चुप्पी का एक बड़ा कारण देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों और नेताओं का पैसा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षण संस्थानों में निवेश करना भी हो सकता है। देश के अधिकतर राज्यों में बड़े-बड़े उद्योगपतियों एवं व्यापारियों की शिक्षा के मंदिरों में घुसपैठ हो चुकी है जिसके कारण देश में शिक्षा का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। देश मे निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा अभिभावकों से फीस के नाम पर की जा रही मोटी उगाही के खिलाफ अभिभावकों एवं पेरेंट्स एसोसिएशन द्वारा लगातार आवाज उठाई जा रही है लेकिन निजी शिक्षण संस्थानों की फीस नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारे गंभीर नहीं हंै। इसका एक बड़ा उदाहरण हम सभी ने कोरोना काल के समय में देखा। जब पेरेंट्स द्वारा कोरोना में आॅन लाइन फीस की निर्धारित करने की मांग देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से की गई लेकिन सरकार आॅन लाइन क्लास की फीस निर्धारित करने की जायज मांग पर भी टस से मस नहीं हुई और देश के अभिभावकों को लगभग 100 साल बाद आई विपदा में भी शिक्षा जिसको समाज सेवा कहा जाता है के नाम पर निजी स्कूलों द्वारा लूटने के लिये अकेला छोड़ दिया गया जो यह अत्यंत चिंतनीय है की फीस नियंत्रण का जो निर्णय केंद्र सरकार को लेना चाहिए आज उस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट को लेने के लिए विवश होना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आंध्र प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में ट्यूशन फीस बढ़ाकर 24 लाख करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द करने के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि शिक्षा कमाई का जरिया नहीं और ट्यूशन फीस हमेशा अफोर्डेबल यानी चुकाई जा सकने लायक होनी चाहिए। यहां यह भी बताना जरूरी है कि हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार और मेडिकल कॉलेज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सख्त रुख अख्तियार करते हुए मेडिकल कॉलेज और आंध्र प्रदेश सरकार पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया, साथ ही इस रकम को 6 हफ्ते के अंदर जमा कराने के आदेश दिए हैं। गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन के सचिव अनिल सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय शिक्षा कमाई का जरिया नहीं, भविष्य में शिक्षण संस्थानों द्वारा की जा रही लूट पर लगाम लगाने के लिए बहुत प्रभावी साबित हो सकता है। केंद्र और राज्य सरकार शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर रोक लगाने में असफल है, इसलिये सुप्रीम कोर्ट को देश की शिक्षा व्यवस्था को अपने आधीन लेकर कोर्ट के निर्णयों को राज्य राज्य सरकारों द्वारा प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये एक इम्पलीमेंटेशन बॉडी का गठन करना चाहिए जिससे कि शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर रोक लग सके एवं शिक्षा आम आदमी की पहुंच से दूर न जाने पाये।

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