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करोड़ों के व्यापार को छोड़कर जैन मुनि बने संजयनगर निवासी नागेंद्र कुमार जैन

गाजियाबाद। करोड़ों के व्यापार और भोग विलास को छोड़कर वैराग्य का संकल्प लेने वाले लखना, इटावा की पवित्र धरती पर जन्म लेने वाले संजय नगर निवासी नागेन्द्र कुमार जैन दीक्षा प्राप्त करने के बाद अब मुनि 108 श्री ज्ञात सागर महाराज बन गए हैं। आचार्य 108 श्री ज्ञान सागर महाराज के शिष्य आचार्य 108 श्री ज्ञेय सागर महाराज ने उन्हें बड़ा जैन मंदिर मुरैना ग्वालियर मध्य प्रदेश में दीक्षा दिलाई। संजयनगर जैन मंदिर गाजियाबाद के कोषाध्यक्ष प्रद्युम्मन जैन ने बताया कि दीक्षा से पूर्व संजयनगर जैन समाज द्वारा उनके विदाई समारोह में गोद भराई रस्म की गई और उसके पश्चात बिनौली यात्रा भी निकाली गई। दीक्षा लेकर मुनि 108 श्री ज्ञात सागर महाराज बनने वाले नागेंद्र कुमार जैन का जन्म 5 मार्च 1956 को लखना निवासी कृष्ण चंद जैन व श्रीमती निर्मला देवी जैन के सर्वसंपन्न परिवार में हुआ था। चार भाइयों में वे सबसे बड़े है। उनकी दो बहन हैं। धर्म के संस्कार उन्हें बचपन से ही माता-पिता से मिले थे। सात दिसंबर 1977 को उनका विवाह इलाहाबाद निवासी तेजपाल व श्रीमती तारावती जैन की बेटी पुष्पा जैन से हुआ। परिवार में दो बेटे सुमित जैन व शीतल जैन, एक बेटी पूजा जैन, दो पुत्रवधु राशि जैन व नेहा जैन, दामाद रोहित जैन, पौत्र संभव श्रेयांश, मनन एवम पोत्री अक्षरा, अक्षिता एवम काव्या, धेवती अवनी अविका अवधि हैं। 1976 से निर्जला उपवास रखने वाले नागेंद्र 2000 से पूर्व राजनीति में भी पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के साथ सक्रिय रहे। सन 2000 के बाद राजनीति को अलविदा कर मुनि सौरभ सागर महाराज के संपर्क में आए और रात्रि भोजन का त्याग किया। 2003 में शुद्ध भोजन का नियम 2005 में ब्रह्मचर्य व्रत, 2011 में सात प्रतिमा लेते हुए धर्म मार्ग पर बढ़ते चले गए। 2009 में आचार्य ज्ञान सागर के पास दीक्षा लेने गए परन्तु पुत्र शीतल की शादी उस समय तक न होने की वजह से उन्होंने दीक्षा देने से मना कर दिया। प्रद्युम्मन जैन ने बताया कि ज्ञेय सागर महाराज के संपर्क में उनकी ब्रह्मचारी अवस्था से आए जिनसे उनका वात्सल्य पूर्व भाव के संस्कार के कारण बढ़ता चला गया। उन्होंने अपने घर, परिवार, ऐश्वर्य सबका त्याग करके 23 अप्रैल को दीक्षा ले ली। जैन दीक्षा लेने का मतलब कांटों भरी राहों पर चलना है। पूरे विश्व में जैन गुरु की एक अलग पहचान होती है। अपनी आत्मा में लीन रहकर धर्म साधना कर के कर्म निर्जरा करना ही एक मात्र उनका उद्देश्य होता है। बिना चप्पल, बिना वाहन के विहार करना, धूप, गर्मीए सर्दी जैसे 22 संकटों को जीतना आसान काम नहीं है। नागेन्द्र कुमार जैन से मुनि 108 श्री ज्ञात सागर जी महाराज बनने के बाद अब मुनि श्री को एक समय भोजन, पानी वह भी खड़े होकर पीना, चटाई पर सोना, बिना वाहन व बिना चप्पल के गर्मी सर्दी बरसात जैसे प्रत्येक मौसम में पैदल चलना जैसी 22 संकट सहते हुए कठिन तपस्या करनी होगी। जैन धर्म में यह कहा भी गया है कि इस कठिन तपस्या के बगैर बगैर मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।

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