- राष्ट्रपति, राज्यपाल व मुख्यमंत्री ने गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह में लिया भाग
- गीता प्रेस के सभी कर्मचारियों की निष्ठा, ईमानदारी और सद्भावना अद्वितीय: राष्ट्रपति
- गीता प्रेस में राष्ट्रपति ने श्रीमद्भगवद्गीता की पाण्डुलिपि को दूरबीन से देखा
- सनातन धर्म को बचाए रखने में जितना योगदान मंदिरों का है, उतना ही गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित साहित्य का
- धर्म और शासन एक-दूसरे के पूरक
- गीता प्रेस दुनिया भर में नैतिकता और आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार कर रहा: राज्यपाल
- सनातन हिन्दू धर्म के प्रकाशन का सबसे प्रमुख केन्द्र गीता प्रेस: मुख्यमंत्री
लखनऊ। भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में आयोजित गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह के शुभारम्भ कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि गीता प्रेस के सभी कर्मचारियों की निष्ठा, ईमानदारी और सद्भावना अद्वितीय है। यहां पर लीला चित्र मंदिर के भ्रमण का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ है। यहां के चित्रों का सार्थक रूप अकल्पनीय है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस में उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता की पाण्डुलिपि को दूरबीन से देखने का सौभाग्य मिला। इसके लेखन के पीछे दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद रहा होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि गीता प्रेस एक प्रेस नहीं, साहित्य का मंदिर है। सनातन धर्म को बचाए रखने में जितना योगदान मंदिरों का है, उतना ही योगदान गीता प्रेस के द्वारा प्रकाशित साहित्य का भी है। भारत का इतिहास प्राचीनकाल से ही अध्यात्म और धर्म से जुड़ा है। देश के प्राचीन भारतीय शासकों ने प्राय: अपने शासन में धर्म का अनुपालन किया है। धर्म और शासन एक-दूसरे के पूरक हैं। आज वही दृश्य यहां देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी गोरखपुर के गोरक्षपीठाधीश्वर के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। एक व्यक्ति में दोनों चीजें समाहित होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
राष्ट्रपति ने कहा कि धर्म और अनुशासन के समागम से हमारी भारतीय संस्कृति का अद्वितीय और अनुपम स्वरूप उभरता है। इस अनुपम संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में सराहा गया है। उन्होंने कहा कि सभी के लिए गर्व की बात है कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान परम्परा हजारों वर्षों से अविरल चलती आ रही है। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। उन्होंने कहा कि भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान को जन-जन तक ले जाने में गीता प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अपने प्रकाशन के माध्यम से गीता प्रेस ने हिन्दू धार्मिक व आध्यात्मिक प्रसंगों को जनमानस तक पहुंचाया है। उन्हें अवगत कराया गया कि गीता प्रेस की स्थापना के पीछे की मंशा श्रीमद्भगवद्गीता के प्रचार-प्रसार और जन-जन में भगवद् प्रेम जाग्रत करना था। इस कार्य को आरम्भ करने का श्रेय श्री जयदयाल गोयन्दका को जाता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक में कहा गया है कि ह्यय इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति। भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय:।। अर्थात मेरे में पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद-(गीता-ग्रन्थ) को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझे ही प्राप्त होगा-इसमें कोई सन्देह नहीं है। उन्होंने कहा कि सम्भवत: इसी श्लोक से प्रेरित होकर गीता प्रेस की स्थापना की गयी, जिससे जनमानस को शुद्ध, न्यूनतम मूल्य पर श्रीमद्भगवद्गीता पुस्तक सुलभ हो सके।
राष्ट्रपति ने कहा कि गीता प्रेस का मुख्य उद्देश्य ईश्वर प्रेम, सत्य, सदाचार, सद्भाव के प्रचार हेतु मानव सेवा सद्ग्रंथों का प्रकाशन करना है। यह प्रेस श्रीमद्भगवद्गीता के अतिरिक्त रामायण, पुराण, उपनिषद इत्यादि पुस्तकों को प्रकाशित करता है। उन्होंने कहा कि उन्हें अवगत कराया गया कि गीता प्रेस की स्थापना से लेकर मार्च, 2022 तक की अवधि में गीता प्रेस से श्रीमद्भगवद्गीता की विभिन्न संस्मरणों की 1,621 लाख प्रतिलिपियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त, गीता प्रेस द्वारा रामचरितमानस व अन्य पुस्तकों को मिलाकर अब तक 70 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित करने का कीर्तिमान स्थापित किया गया है।
राष्ट्रपति ने गीता प्रेस को जनमानस को सस्ते दर पर धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए साधुवाद देते हुए कहा कि गीता प्रेस को सर्वाधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकों को प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने कहा कि कल्याण पत्रिका गीता प्रेस के सबसे प्रसिद्ध प्रकाशनों में से एक है। यह भारत में सबसे व्यापक तौर पर पढ़ी जाने वाली पत्रिका है। वह भी कल्याण पत्रिका के एक साधारण पाठक हैं। उन्होंने कहा कि कल्याण पत्रिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें मनुष्य का धर्म ईश्वर के निकट ले जाने वाली सर्वशक्तियों का विकास करने तथा तमाम प्रतिकूल शक्तियों का त्याग करने का उल्लेख किया गया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि गीता प्रेस अपनी पुस्तकों, पत्रिकाओं के माध्यम से महात्मा गांधी की इसी लक्ष्य को जनमानस तक पहुंचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस के 1850 वर्तमान प्रकाशन में 760 प्रकाशन संस्कृत व हिन्दी में हैं। परन्तु शेष प्रकाशन अन्य भाषाओं में-गुजराती, मराठी, तेलुगु, बँगला, ओड़िआ, तमिल, कन्नड़, असमिया, मलयालम, नेपाली, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी शामिल है। यह भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता के सिद्धान्त के पहलुओं को जाग्रत करता है।
राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने स्व0 श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार को नमन कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि गीता प्रेस में उस दिव्य संकल्प की छवि है, जिसने इसकी स्थापना के लिए प्रेरक शक्ति का कार्य किया। वर्ष 1923 में सत्य, प्रेम और शांति के माध्यम से मानवता की सेवा के लिये इस गीता प्रेस की स्थापना की गई। पोद्दार ने इस गीता प्रेस के माध्यम से जन-जन तक गीता का सन्देश पहुंचाया, जिससे मानव को आदर्श मानव और समाज को आदर्श समाज बनाया जा सके।
राज्यपाल ने कहा कि गीता प्रेस दुनिया भर में अपने साहित्य के माध्यम से नैतिकता और आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार कर रहा है। शताब्दी वर्ष समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सनातन हिन्दू धर्म के प्रकाशन का सबसे प्रमुख केन्द्र गीता प्रेस ने विगत 100 वर्षों में सनातन हिन्दू धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थों का प्रकाशन किया है। गीता प्रेस ने साहित्य के माध्यम से देश और धर्म की अत्यन्त उल्लेखनीय और सराहनीय सेवा की है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस आज अपने यशस्वी कालखण्ड के 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है और हम सबके सौभाग्य से इस कार्यक्रम का शुभारम्भ करने के लिए देश के राष्ट्रपति जी का गोरखपुर में आगमन हुआ है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में ऐसा कोई भी परिवार नहीं होगा, जिसका सनातन हिन्दू धर्म में विश्वास हो और उसके घर में गीता प्रेस से जुड़ा हुआ कोई साहित्य न हो। उन्होंने कहा कि हम सबको गौरव की अनुभूति करनी चाहिए कि गोरखपुर में सन 1923 में मात्र 10 रुपये के किराये के घर में श्रद्धेय जयदयालजी गोयन्दका ने जिस बीज का रोपड़ किया था, आज वह गीता प्रेस के रूप में एक विशाल वट वृक्ष बनकर पूरे देश व दुनिया के अन्दर सनातन हिन्दू धर्म के प्रकाशन को घर-घर पहुंचा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गीता प्रेस, साहित्य के माध्यम से देश और समाज की अभूतपूर्व एवं उल्लेखनीय सेवा कर रहा है। साहित्य की सेवा कभी न मिटने वाली सेवा होती है। श्रद्धेय भाई जी का गीता प्रेस के साथ जुड़ना, ह्यकल्याणह्ण का प्रकाशन गीता प्रेस से होना और घर-घर तक कल्याण को पहुंचाने का अद्वितीय कार्य उस कालखण्ड में होना, जब इतनी आधुनिक तकनीक नहीं थी, उस समय भी गीता प्रेस यह कार्य कर रहा था। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित ह्यतत्व विवेचनीह्ण का एक-एक संस्कृत श्लोक सामान्य व्यक्ति भी बहुत सुगमता से आत्मसात कर सकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरखपुर के घनश्याम दास जालान, महावीर पोद्दार ने गोरखपुर में प्रेस की स्थापना का सुझाव दिया और गोयन्दका ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। उसके पश्चात जब भाई जी का गीता प्रेस के साथ जुड़ाव हुआ, तो कल्याण जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं प्रत्येक घर तक पहुंचना सराहनीय कार्य है। एक समय ऐसा था कि जब लोग कल्याण पत्रिका को प्राप्त करने के लिए महीने भर प्रतीक्षा करते थे। अब तकनीक के माध्यम से यह पत्रिका सर्वसुलभ है।
इस अवसर पर गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति व राज्यपाल के समक्ष मुख्यमंत्री ने दो ग्रंथों का विमोचन किया। इन ग्रंथों में 300 रंगीन चित्रों के साथ आर्ट पेपर पर श्रीरामचरितमानस और गीता प्रेस के संस्थापक श्री जयदयाल गोयन्दका द्वारा रचित गीता तत्व विवेचनी का प्रकाशन किया गया। मुख्यमंत्री ने दोनों ग्रंथों की प्रथम प्रति राष्ट्रपति को भेंट की।
कार्यक्रम के दौरान भारत की प्रथम महिला सविता कोविन्द, राज्यसभा के नवनिर्वाचित सदस्य डा. राधामोहन दास अग्रवाल, सांसद गोरखपुर रविकिशन शुक्ल सहित अन्य जनप्रतिनिधि एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इसके उपरान्त, राष्ट्रपति , राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री ने रामगढ़ताल स्थित नया सवेरा पर लाइट एंड साउंड कार्यक्रम का अवलोकन किया।