कमल सेखरी
हमारे पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में पिछले कई दिनों से अशांति मारकाट और आगजनी की स्थिति बनी हुई है और पूरा देश एक तरह के गृहयुद्ध में बुरी तरह से घिर गया है वैसा ही कुछ हमारे देश में भी किसी समय हो सकता है। दुर्भाग्य से अगर ऐसा कुछ भारत में भी हुआ तो वो श्रीलंका से कहीं अधिक घातक और देश को नुकसान पहुंचाने वाला होगा। क्योंकि श्रीलंका में तो लोगों की नाराजगी सरकार के खिलाफ महंगाई और बेरोजगारी को लेकर बनी है। यह नाराजगी ऐसा आक्रामक रूप इसलिए भी ले गई क्योंकि देश की परिस्थितियां कुछ और थीं और वहां की सरकार उस वास्तविकता को छुपाते हुए जनता को सब्जबाग दिखा रही थी। श्रीलंका का मीडिया भी काफी हद तक इन सब बातों को छुपाने में सरकार का भागेदार बना हुआ था और आवाम को असली तस्वीर न दिखाकर सरकार के गुनगान करते हुए झूठी जानकारियां दे रहा था। वहां सड़कों पर उतरे आंदोलनकारियों ने ऐसे झूठे और फर्जी मीडिया को भी सबक सिखाया जो देश को गुमराह कर रहा था और सरकार की आरती उतार रहा था। ऐसे कई मीडिया संस्थानों और उनसे जुड़े पत्रकारों पर लोगों ने हमले किए , उनके साथ मारपीट की और उनके संस्थानों में आगजनी तक की। भारत में अगर श्रीलंका जैसा कुछ हुआ तो वो और अधिक गंभीर घातक और आक्रामक होगा क्योंकि यहां निरंतर बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी सभी हदें पार कर गई है। आम आदमी से जुड़ी इन कठिन समस्याओं के बीच सबसे घातक परिस्थितियां हमारे उन सियासी नेताओं ने बनाकर खड़ी कर दी हैं जिसके चलते हमारा देश सांप्रदायिक उन्माद और जातिवाद के गहरे संकट में फंसता चला जा रहा है।
हमारे सियासी नेताओं के ऐसे निरंतर प्रयास देश में नफरत के वो बीज बो रहे हैं जिसके चलते आम आदमियों के बीच ऐसा जहर घुलता जा रहा है जो आने वाले कुछ ही समय में पूरे देश की फिजा को जहरीला बना देगा। जब से उत्तर प्रदेश के चुनावों में एक दल विशेष ने एकतरफा मजबूत जीत हासिल की है तब से इन सियासी नेताओं ने उस हासिल जीत के आधार को अपनी सफलता का मुख्य आधार मानते हुए उस चलन को अपनी निरंतरता का हिस्सा बना लिया है। आज देश में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी पर ऐसा पर्दा डाला जा रहा है कि देश का ध्यान उस ओर ना जाए और देश की जनता सांप्रदायिकता और धार्मिक उन्माद के उस चक्रव्यूह में फंस जाए जिससे बाहर निकलकर वो कुछ और सोच ही न पाए।
हिजाब-हलाल-अजान-हनुमान चालीसा-लाउडस्पीकर-धर्म संसद-धार्मिक जुलूस आदि ऐसे कई मुद्दे देश की सियासत का हिस्सा बनकर बड़े स्तर पर सड़कों पर उतर आए हैं और हमारा मीडिया जो श्रीलंका की मीडिया की तर्ज पर काम कर रहा है वो इन सियासी मुद्दों को पुरजोरता से हवा देने में लग गया है। जो स्थिति हमारे सियासी नेताओं ने पिछले कुछ महीनों से जितनी निरंतरता और पुरजोरता के साथ जोड़कर देश के सामने बनाकर खड़ी कर दी है वो स्थिति अगर कुछ और महीनों तक ऐसी ही चलती रही तो इसमें शक नहीं कि देश धार्मिक उन्माद के ऐसे संकट में आ घिरेगा जो देश को गृहयुद्ध की तरफ ले जाएगा।
अगर ऐसा कुछ हुआ तो पूरा देश संकट की एक ऐसी स्थिति में आ जाएगा जहां सड़कों पर सांप्रदायिक नफरतों के चलते खून खराबा भी शुरू हो सकता है और अगर ऐसा हुआ तो क्या हिन्दू क्या मुसलमान या सिक्ख-ईसाई सभी धर्मों के लोगों को बराबर का नुकसान होगा और किसी धर्म से जुड़ी नहीं बल्कि देश के बेकसूर मासूम लोगों की जानें जा जाएंगी। प्रधानमंत्री जी को ऐसी परिस्थितियों को और आगे बढ़ने से रोकने के प्रयास करने चाहिए और अपनी चुप्पी तोड़कर सभी धर्मों को एक मानते हुए देश की समस्त जनता से अपील करनी चाहिए कि वो सियासी नेताओं के ऐसे प्रयासों का शिकार होने से बचे।