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रशिया-यूक्रेन महायुद्ध: अभी भी संकट में हैं हमारे हजारों स्टूडेंट्स

कमल सेखरी
रशिया और यूक्रेन के बीच चल रहा घमासान महायुद्ध आज दसवें दिन में प्रवेश कर गया। रशिया जैसी महाशक्ति जो परमाणु हथियारों को लेकर समूचे विश्व में नंबर एक के स्थान पर है उस देश का यूक्रेन जैसे छोटे मुल्क के साथ इस तरह के घमासान युद्ध में इलझे रहना दुनिया को हैरानी में डाल रहा है। यह युद्ध जो अब महायुद्ध के नाम से जाना जाता है कब क्या शक्ल ले जाए और बढ़ते-बढ़ते विश्व युद्ध तक में बदल जाए इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। एक ओर जहां राष्टÑपति पुतिन जैसे ताकतवर हठयोगी अपनी जिद पर अड़ा हुआ है वहीं दूसरी ओर इतनी भारी मार खाकर इतने बड़े विनाश को झेलने के बाद भी यूक्रेन के राष्टÑपति जेलेंस्की रह रहकर अपना वीडियो संदेश जारी कर दुनिया को यह जता रहे हैं कि उनका देश हार नहीं मान रहा है। उनके देशवासी देश की मिट्टी से जुड़े हैं और किसी हद तक जाकर भी बलिदान करने को तैयार हैं। लिहाजा ऐसी परिस्थितियों में बड़े-बड़े युद्ध विशेषज्ञ भी यह अनुमान लगाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं कि दोनों देशों की स्थिति इस महायुद्ध को लेकर आज कहां खड़ी है, किस ओर जा रही है, आगे क्या दिशा लेगी और इसका अंत कैसे और किन परिस्थितियों में जाकर होगा। क्योंकि दुनियाभर का मीडिया जो दिखा रहा है और जो बता रहा है उससे तो यह आकलन लग नहीं पा रहा कि इस महायुद्ध की मौजूदा स्थिति क्या है। जिस तरह से रशिया हवाई बमबारी कर रहा है और हवा में राकेट दाग रहा है वैसे ही दुनियाभर का मीडिया अपने-अपने माध्यमों पर हवाई तीर चलाने में जुटा है। खासतौर पर भारत का वो इलेक्ट्रोनिक मीडिया जिसे हम गोदी मीडिया, सूरजमुखी मीडिया या आरती उतारने वाला पुजारी मीडिया के नाम से अब जानने और बुलाने लगे हैं वो अपने-अपने चैनलों पर इस महायुद्ध के बारे में जो झूठी सच्ची खबरें दिखा रहा है और युद्ध की स्थिति को बढ़ा-बढ़ाकर बता रहा है उससे निसंदेह चिंता तो होती है लेकिन अब धीरे-धीरे दर्शकगण यह जानने लगे हैं कि यह मीडिया अल सुबह से लेकर देररात तक जो निरंतर कवरेज कर रहा है उसमें अस्सी फीसदी फर्जी है और दर्शकों को अपने-अपने चैनलों से बांधे रखने के लिए खबरें दर्शायी जा रही हैं। इन समस्त परिस्थितियों के बीच आज भी हमारे लिए जो सबसे बड़ी चिंता का विषय है वो ये कि अभी तक भी सात हजार से अधिक हमारे देश के स्टूडेंट्स जो वहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं वो बहुत ही दयनीय, विषम, चिंतनीय तथा भयानक जानलेवा स्थिति में फंसे हुए हैं। इन स्टूडेंट्स के पास पिछले कई दिनों से न तो खाने की उचित व्यवस्था है, न ही पेयजल उपलब्ध है और माइनस 5-6 डिग्री तापमान में चारों तरफ बर्फ के बीच रहने को विवश हैं। यहां पूरे क्षेत्र में बिजली की सप्लाई युद्ध के कारण कट गई है और हमारे ये युवा मासूम बच्चे चाहते हुए भी उन स्थानों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं जहां ऐसी विकट स्थितियों में रह रहे हैं। इन स्थानों से बाहर निकलते ही भारी गोलाबारी और बमबारी के बीच जान जाने का खतरा है लिहाजा उन विकट परिस्थितियों में रहना इनकी विवशता बन गया है।
कई टीवी चैनलों पर और सोशल मीडिया के माध्यमों से ये बच्चे अपना संदेश यूक्रेन में स्थित भारतीय दूतावास और भारत सरकार तक पहुंचाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं लेकिन कहीं से भी इन्हें किसी तरह के सहयोग मिलने या दिए जाने का आश्वासन नहीं मिला है। इन परिस्थितियों में यदि अगले कुछ और दिन ये बच्चे ऐसे ही रह गए तो संभावना है कि इनमें से कई भूख-प्यास या ठंड के चलते अपनी जान से हाथ भी धो सकते हैं। हम जहां एक ओर खुद से यूक्रेन की विभिन्न बाहरी सीमाओं तक पहुंचे बच्चों को सीमा पार करने के बाद अपने हवाई जहाजों से भारत लाकर अपना यशगान कर रहे हैं और भारत सरकार तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पीठ थपथपाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर आज भी हमारे कई हजार बच्चे उस खतरनाक हालातों के बीच जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।
हमने अभी तक उन बहादुर बच्चों की पीठ नहीं थपथपाई है जो वहां रह रहे हैं और जो भीषण गोलाबारी, बमबारी और राकेटों के चलने के बीच कई सौ किलोमीटर पैदल अथवा अपने निजी माध्यमों से यूक्रेन की बाहरी सीमाओं तक पहुंचे हैं। पौलेंड, रोमानिया, हंगरी जैसे देशों की सीमा के अंदर खुद से पहुंचे बच्चों को हम लाकर दुनिया को ये दिखा रहे हैं कि हमने बहुत बड़ा काम किया लेकिन हमारे किसी भी मंत्री ने या सरकारी अधिकारी ने वापस आए बच्चों को इस बात की शाबासी नहीं दी कि वो किस तरह विषम परिस्थितियों से निकलकर यूक्रेन पार करके यहां तक पहुंचे हैं। भारत सरकार को अपनी सारी क्षमता और ध्यान उत्तर प्रदेश के आखिरी चरण के मतदान से कुछ समय के लिए हटाकर पूरी गंभीरता और संवेदना के साथ उन बच्चों को भी यूक्रेन से वापस लाने के बारे में सोचना चाहिए जो आज भी उस भयंकर संकट के बीच यूक्रेन में फंसे हुए हैं।
हमारी सरकार ने अपने इस प्रयास में अगर एक-दो दिन की देरी और कर दी तो मुमकिन है यूक्रेन में फंसे हमारे इन बच्चों के बीच कुछ बच्चे अपना दम भी तोड़ दें।

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