कमल सेखरी
उत्तर प्रदेश में निर्धारित सात चरणों के मतदान में पहले दो चरणों का मतदान पूरा हो गया है। हालांकि इस बात को लेकर काफी चिंता थी कि पहले चरण के मतदान में और उसके बाद दूसरे चरण के मतदान में मतों का धु्रवीकरण होगा और सांप्रदायिक आधार पर मतों का विभाजन होने से धार्मिक उन्माद भी पैदा होगा। परंतु मतदाताओं की सूझबूझ और समझदारी से सियासी नेताओं के वो सभी प्रयास विफल हो गए जिसके तहत इस तरह की कोशिशों की पुरजोरता से पैरवी हुई। ऐसे कई प्रयास एक बड़े सियासी दल ने रहरहकर किए जिससे सांप्रदायिक माहौल खराब हो और मतों का किसी भी तरह से धु्रवीकरण हो सके। ऐसा सबकुछ करने में बड़े खुले शब्दों में कुछ सांप्रदायिक दंगों के पुराने जख्मों को कुरेदा गया और निरंतर ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया जिससे हिन्दू और मुसलमान दोनों ही समुदायों में उत्तेजना बढ़े और या तो मुस्लिम विभाजित हो या फिर हिन्दू मतदाता संगठित हो पहले की तरह एक ही दल विशेष को अपनी वोट दें लेकिन ऐसा पूरजोर प्रयासों के बाद भी संभव नहीं हो पाया जिसके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी मतदाता बधाई के पात्र हैं।
अब जब हम तीसरे चरण और आगे के बकाया चरणों के मतदान की ओर बढ़ रहे हैं तो अब प्रयास सांप्रदायिकता से हटकर जातिवाद की ओर केन्द्रित हो गया है। लेकिन अब तक के माहौल से अभी तो ऐसा ही लग रहा है कि यह प्रयास भी पार नहीं उतार पाएंगे। बरहाल परिस्थितयां जो भी हों उनके बीच सबसे अप्रिय जो लग रहा है वो ये कि देश के सबसे बड़े सियासी दल के श्रेष्ठ नेता बुरी तरह से बौखलाए हुए हैं और वो अपनी जनसभाओं में न केवल राजनीति के मापदंड खोते दिखाई दे रहे हैं बल्कि अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हुए अश्लीलता पर भी उतर आए हैं। इन बड़े सियासी नेताओं के इस तरह के बरते जा रहे आचरण को देखते हुए विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि आगामी दस मार्च को परिणाम क्या आ सकते हैं और ऊंट किस करवट बैठ सकता है। इसके विपरीत जिसे मुख्य विरोधी दल आंका जा रहा है उसके मुखिया ने अपने व्यवहार में न केवल और अधिक शालीनता बरतनी शुरू कर दी है बल्कि अपने ऊपर लगाए जा रहे आरोपों को बड़े ठंडे दिमाग से चुटकियां ले लेकर जवाब देना शुरू कर दिया है। इस गर्मी और नरमी से लोगों ने परिस्थितियों को आंकना भी शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश के चुनाव का परिणाम अगर परिवर्तन की ओर चला जाता है तो उसमें एक बड़ी भूमिका दल विशेष के बड़े नेताओं के उस व्यवहार और आचरण की भी रहेगी जो इस दौरान चुनाव प्रचार में उन्होंने अपनी भाषा में अपनाया है। पहले तो अनुमान यही लगाया जा रहा था कि सत्ता दल की वापसी अगर हुई तो उसका श्रेय मोदी और योगी को बराबर का जाएगा परंतु अगर परिस्थितियां प्रतिकूल बनती हैं या सत्ता दल 2017 की तुलना में काफी कमजोर रहकर सामने आता है तो इस नुकसान का ठीकरा प्रदेश नेतृत्व के सिर पर ही फोड़ा जाएगा, केन्द्र के नेतृत्व को इसके लिए अधिक दोषी नहीं ठहराया जा सकेगा।
उत्तर प्रदेश के बकाया बचे पांच चरण के मतदान की सही तस्वीर कैसी उभरकर सामने आती है और उनमें पहले दो चरणों में हुए मतदान में मिल चुकी चोट की कितनी भरपाई हो पाती है यह तो समय ही बताएगा लेकिन यह तय है कि 2022 के ये विधानसभा चुनाव 2017 के चुनावों से एक दम हटकर हैं और दस मार्च को परिणाम भी कुछ हटकर या फिर अपेक्षा के विपरीत भी हो सकते हैं। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में सत्ता दल की डगर बहुत सुगम नहीं है या फिर कहा जा सकता है कि कठिन है।