- लोनी की राजनीति में बड़ा फेरबदल होने से किस करवट बैठेगा ऊंट
- हिन्दुत्व कार्ड खेलकर क्या फिर से नंदकिशोर गुर्जर रच पाएंगे इतिहास
- भारी भरकम गठबंधन प्रत्याशी मदन भैया दिखा पाएंगे अपना जलवा
गाजियाबाद। लोनी की राजनीति में बड़ा फेरबदल होने से चुनाव बेहद रोचक हो गया है। नगर पालिका की चेयरपर्सन रंजीता धामा द्वारा बुधवार को भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद गुरुवार को निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन कर दिया है। रंजीता धामा के मैदान में उतरने से क्या भाजपा प्रत्याशी नंदकिशोर गुर्जर के वोट बैंक में वे सेंध लगा पाएंगी, यह बड़ा सवाल है। हालांकि गुर्जर व मुस्लिम बहुल्य लोनी विधानसभा क्षेत्र में जाट मतदाता कम है। मनोज धामा जाट हैं। रालोद ने भी जाट न उतारकर गुर्जर बिरादरी के पूर्व विधायक मदन भैया को टिकट दिया है। सवाल बड़ा यह है कि रंजीता धामा आखिर किन जातियों के सहारे मैदान में उतरी हैं। यदि वे चेयरमैन के रूप में अपने द्वारा नगर पालिका परिषद के सभी वार्डों में कराए गए विकास कार्यों के बल पर चुनाव लड़ रही हैं तो इससे उन्हें काफी हद तक सफलता मिलने वाली नहीं हैं, क्योंकि विधानसभा क्षेत्र काफी बड़ा है। वैसे उनके पति मनोज धामा के राजनीतिक करिअर का उन्हें भरपूर लाभ मिलेगा। सवाल यह भी है कि उनके वोटों का आधार क्या है। यदि वे मुस्लिम, जाटव व अपनी बिरादरी के बल पर चुनाव लड़ रही हैं तो बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी हाजी आकिल को चुनाव मैदान में उतार रखा है। कांग्रेस ने भी मुस्लिम प्रत्याशी यामीन मलिक को चुनाव में उतारा है। जबकि गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया गुर्जर, जाट व मुस्लिम मतों के बल पर मैदान में हैं। यदि मदन भैया अधिक संख्या में गुर्जरों की वोटों पर हाथ साफ किया तो इसका नुकसान नंदकिशोर गुर्जर को ही होगा। और यदि रंजीता धामा ने भी गुर्जरों वोटों को अपने पक्ष में किया तो नंदकिशोर गुर्जर को ही नुकसान होगा। लेकिन यदि दोनों ही गुर्जरों वोटों का नुकसान नहीं पहुंचा पाए तो भाजपा को वैश्य वर्ग व अन्य जातियों का समर्थन मिल सकता है। कुल मिलाकर लोनी सीट बुरी तरह फंस गई है और ऊंट किस करवट बैठेगा यह मतगणना के बाद ही पता चलेगा।