कमल सेखरी
अगर कोई शराब पीकर नशाबंदी पर भाषण दे तो उसके कहे की सार्थकता को कैसे माना जा सकता है। इसी तरह हमारे बड़े राजनेता जो संचार के विभिन्न माध्यमों से कोरोना को कैसे रोका जाए इस पर रह रहकर राष्टÑीय संदेश दे रहे हैं लेकिन इनके इन संदेशों को भी गंभीरता से कैसे लिया जा सकता है जबकि वो अपना संदेश जारी करने के कुछ ही घंटे बाद खुद ऐसी बड़ी-बड़ी चुनावी जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं जिनमें उन्हें सुनने लाखों लोग आ रहे हैं या एकत्रित किए जा रहे हैं। इन जनसभाओं में उमड़ने वाली लाखों-लाख की भीड़ में लोग न तो मास्क पहन रहे हैं और न ही एक दूसरे से भौतिक दूरियां बना रहे हैं। आज जब हम इस संबंध में लिख रहे हैं तो उस समय में भी विभिन्न स्थानों पर हमारे प्रधानमंत्री जी की चार बड़ी-बड़ी जनसभाएं हो रही हैं, वहीं देश के गृहमंत्री अमित शाह दो बड़ी चुनावी रैलियां कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बंगाल की मुख्यमंत्री व टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी आठ जनसभाओं को संबोधित कर रही हैं। कोरोना महामारी के इस भयानक संकट वाले समय में जहां पूरा राष्टÑ सहमा बैठा है वहीं हमारे देश के ये राजनेता कुल मिलाकर दो सौ से अधिक चुनावी जनसभाएं और रैलियां कर रहे हैं। देश में संकट की इस घड़ी में अपने राजनेताओं के इस व्यवहार को हम क्या कहकर और किस तराजू में तौलें यह सभी चिंतनशील व्यक्तियों की समझ से बाहर है, जहां एक ओर कामधंधे बंद हो गए, स्कूलों और बाजारों को बंद करना पड़ रहा है, स्थानीय अदालतों से लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक में मुकदमों की सुनवाई पर रोक लगा दी गई है, कई जगह लॉकडाउन लगाकर आम नागरिक के घर से बाहर निकलने पर रोक लगाई गई है वहीं हमारे ये राजनेता लाखों-लाख की यह भीड़ लेकर चुनावी जनसभाएं कर रहे हैं। हमारे ये नेता कितने राष्टÑवादी हैं इसका अनुमान हम इनकी इसी सोच और व्यवहार से लगा सकते हैं। जब कुछ न बन पड़े कहने को तो मन इतना कहने से न रुक पाता ‘शर्म करो राजनेताओं कुछ तो शर्म करो’।