चर्चा-ए-आमविशेष

युवक 13 घंटे हर रोज काम करें: नीति आयोग

कमल सेखरी

भारत के नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में यह प्रस्ताव पारित किया है कि अब देश की युवा पीढ़ी को अधिक मेहनत करते हुए कम से कम 13 घंटे प्रतिदिन काम करना ही होगा। ऐसा करने में जो अर्थ व्यवस्था बढ़कर सामने आएगी उससे युवकों को उनकी मेहनत करने का औसतन 22 हजार रुपए महीना प्राप्त होगा यानी उन्हें 13 घंटे प्रतिदिन और 90 घंटे प्रति सप्ताह काम करने पर औसतन 703 रुपए प्रतिदिन प्राप्त होगा। नीति आयोग की इस रिपोर्ट पर उसके कुछ ऐसे सलाहकारों ने भी मुहर लगा दी है जो देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों से जुड़े हैं। लार्सन एंड टयूबरो कंपनी के सीईओ जिन्हें साढ़े चार करोड़ रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है यानी प्रतिदिन लगभग 14 लाख रुपए और इन्फोसिस कंपनी के सीईओ जिन्हें प्रतिमाह दो करोड़ 80 लाख रुपए वेतन में प्राप्त होता है यानी लगभग नौ लाख रुपए प्रतिदिन वेतन मिलता है। ये लोग नीति आयोग के उस प्रस्ताव के साथ खड़े हैं यह कहकर की हम भी 13 घंटे रोज काम करते हैं और देश की युवा पीढ़ी को आज की परिस्थितियों को समझते हुए 13 घंटे प्रतिदिन काम करना ही चाहिए। अब ऐसे लोग जिन्हें 14 लाख रुपए प्रतिदिन या 9 लाख रुपए हर रोज वेतन मिलता है वो युवा पीढ़ी को यह कहकर प्रोत्साहित कर रहे हैं कि आप 13 घंटे काम करें जिससे आपको 703 रुपए प्रतिदिन मिलेगा। नीति आयोग का कहना है कि अगर हम भारत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान का विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं तो हमें तीस ट्रीलियन डॉलर तक देश की अर्थव्यवस्था को पहुंचाना ही होगा। आज देश की वो आर्थिक व्यवस्था 4.3 ट्रीलियन डॉलर है जिसे हमें केन्द्र सरकार के इस सत्र के अंत तक 30 ट्रीलियन डॉलर तक लेकर जाना है। हमारे देश की मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में 57 प्रतिशत तक उन लोगों की भागेदारी है जो देश के 9 फीसदी उच्च आय वर्ग से जुड़े हैं। शेष 43 प्रतिशत आर्थिक व्यवस्था उन लोगों के हिस्से आती है जो संख्या में देश की आबादी का 91 प्रतिशत हैं। अब ऐसे में हम इस 91 प्रतिशत लोगों से यह उम्मीद करें कि वो देश की आर्थिक व्यवस्था को साढ़े सात गुणा बढ़ाकर 30 ट्रीलियन डॉलर तक ले जा पाएंगे तो यह कैसे संभव होगा। नीति आयोग ने अपने प्रस्ताव में देश की 70 फीसदी आबादी की युवा पीढ़ी के सामने लक्ष्य तो रख दिया लेकिन यह नहीं बताया कि युवा पीढ़ी क्या काम करके इतना बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर पाएगी। इस प्रस्ताव के मुताबिक लक्ष्य तो बढ़ा है ही और उसे पूरा करने का दायित्व निभाने के लिए युवा पीढ़ी को काम भी स्वयं ही खोजना होगा। यह कितना बड़ा उपहास है कि हम सियासी घोषणा करके अपने देश को विकसित देशों की श्रंखला में खड़ा तो करना चाहते हैं पर जिन युवा कंधों के ऊपर निर्भर करके हम अपनी कल्पना का सफर पूरा करना चाहते हैं उसे प्राप्त करने का हमारा कोई रोडमैप अभी तैयार नजर नहीं आ रहा है। हम जब पहली बार 2014 में सत्ता में आए तो हमने देश को आश्वासित किया कि हम दो करोड़ युवाओं को हर वर्ष रोजगार देंगे। हमारे इस आश्वासन के मुताबिक अब तक हमें बीस करोड़ से अधिक युवाओं को नौकरी दे देनी चाहिए थी लेकिन अभी तक हमने अपने इस लक्ष्य का दसवां हिस्सा भी पूरा नहीं किया है। अब ऐसे में हम बेरोजगार युवकों को बिना काम दिये उनसे 13 घंटे हर रोज काम करने का आह्वान कर रहे हैं लेकिन उनके हाथों को काम नहीं दे रहे। तो ऐसे में जो सपना हम देश को दिखा रहे हैं कि हम जल्द ही विकसित राष्ट्र की श्रंखला में आ खड़े होंगे तो यह कैसे संभव हो पाएगा। हमें अपने सियासी आश्वासनों को अमली जामा पहनाने की दिशा में कुछ कदम तो आगे बढ़ना ही चाहिए।

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