-पिछली बार की तरह इस बार भी मोदी को कोरोना की कमान संभालनी होगी
फिरोज बख़्त अहमद
यूं तो कोरोना पूर्ण विश्व में फैला हुआ है, मगर भारत में इसने अति भयंकर रूप धारण किया हुआ है। आजकर श्मशान और कब्रिस्तान को लेकर मोदी समर्थकों व मोदी विरोधियों में युद्ध की सी स्थिति बनी हुई है। कुछ लोग मोदी और अमित शाह का इस्तीफा मांग रहे हैं कि कोरोना के कारण लाशों के चट्टे लग गए। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस तमाम भयावह महामारी की दूसरी लहर के लिए मौजूदा सरकार ही जिम्मेदार है। वास्ताव में उसूल यही है कि इस प्रकार के हालात के लिए जो सभी सरकार हो उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। बेशक सरकार का ही दायित्व होता है ऐसी आपदा में संभाला देना। मगर क्या केवल सरकार पर ही ठीकरा फोड़कर हर अन्य व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लेना चाह रहा है? यदि हम विश्व पर एक नजर डालें तो ज्ञात होगा कि जो खतरनाक स्थिति भारत की है वह इस समय विश्व में किसी भी देश में नहीं है। इसके कई कारण हैं। सर्वप्रथम तो यह कि आज की तारीख में भारत में कोरोना के 71 म्यूटेंट हैं जिसकी वजह से कोरोना इतनी बुरी तरह भारत में फेल रहा है। सबसे चिंताजनक विषय यह है कि जहां पहली लहर में कोरोना गांवों तक उतनी मात्रा में नहीं पहुंचा था, आज गांवों में बड़े पैमाने पर हमला कर रहा है। ललितपुर (उप्र) के 13 गांवों की आबादी 1 से 7 हजार तक की है। इन सभी गांवों में लोग बड़ी संख्या में बीमार पड़ रहे हैं। लगभग 500 आदमियों के गांव में 400 के ऊपर आदमी बीमार हो गए हैं। बड़े गांवों में पहले हफ्ता दस दिन में एक मौत की खबर आती थी। अब रोज ही वहां शवों की का चट्टा लगा रहता है। यदि गांववासियों से पूछें कि इतने लोगों को क्या हुआ है तो बताते हैं कि नजला-खांसी-बुखार है। पता नहीं यह खांसी-बुखार उनकी जान क्यों ले रहे हैं? उनसे पूछो कि आप लोग जांच क्यों नहीं करवाते, तो वे कहते हैं कि यहां गांव में आकर कौन चिकित्सक उनकी जांच करेगा क्योंकि वह तो 30-40 मील दूर कस्बे या शहर में बैठता है। इतनी दूर मरीज को कैसे ले जाया जाए? गांव में तो थ्री-व्हीलर, बसें ऊबर टैक्सी आदि नहीं हैं अत: गांव में रहकर ही खांसी-बुखार का इलाज करवा रहे हैं। उन बेचारों को पता ही नहीं कि यह मौसमी खांसी-बुखार नहीं बल्कि कोरोना है तो मानते नहीं। चूंकि जिलों में डिसपैनसरियाँ जिलों की ओपीडी तो बंद पड़ी हैं, यहां जो झोलाछाप डाक्टर घूमते रहते हैं, उन्हीं की गोलियां अपने मरीजों को वे दे रहे हैं। वे 10 रुपए की पेरासिटामोल 250 रुपए में बेच रहे हैं। कुछ गांवों के लोग कहते हैं कि उनके गांव में कोरोना का कोई चक्कर नहीं! लोगों को बस खांसी-बुखार है। यदि वह एक आदमी को होता है तो घर में सबको हो जाता है। जब सर्दी-जुकाम की सस्ती दवा की कालाबाजारी गांवों में इतनी बेशर्मी से हो रही है तो कोरोना की जांच और इलाज के लिए हमारे ग्रामीण भाई हजारों-लाखों रुपए कहां से लाएंगे? जनता की लापरवाही इतनी ज्यादा है कि यूपी के पंचायत चुनावों में सैकड़ों चुनावकर्मी कोरोना का लुकमा बन गए गए लेकिन जनता ने कोई सबक नहीं सीखा। राजस्थान भी इस प्रकार की आपाधापी में कम नहीं! सीकर जिले के खेड़ा गांव में भी वही हुआ जो ललितपुर में हो रहा है। ऐसे ही गुजरात से 21 अप्रैल को एक संक्रमित शव गांव लाया गया। उसे दफनाने के लिए 100 लोग पहुंचे। उन्होंने कोई सावधानी नहीं बरती। उनमें से 21 लोगों की मौत हो गई। ऐसी हालत उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कई अन्य गांवों में भी हो रही है लेकिन उसका ठीक से पता नहीं चल रहा है। ये घटनाएं भी इसलिए पता चल गईं क्योंकि कुछ जान पर खेलने वाले पत्रकारों ने ऐसी खबरें जुटाईं। वास्तविकता यह है कि विपक्ष के तत्व तो कुछ कर नहीं रहे हैं और गिरती स्वस्थीय प्रणाली के फटे में टांग अवश्य अड़ा रहे हैं। देश के गांवों को सिर्फ सरकारों के भरोसे कोरोना से नहीं बचाया जा सकता। न ही उन्हें भगवान भरोसे छोड़ा जा सकता है। देश के सांस्कृतिक, राजनीतिक, समाजसेवी, धार्मिक और जातीय संगठन यदि इस समय पहल नहीं करेंगे तो नतीजे और भी भयंकर हो सकते हैं। उधर जिस प्रकार से केंद्रीय सरकार दुनिया भर से आॅक्सीजन जुटाने में लगी हुई है, वहीं विपक्षी और सरकार विरोधी तत्व, सरकार का हाथ बंटाने के बजाय अपनी-अपनी डफली और अपना राग बजने में लगे हुए हैं। उनका बस एक ही उद्देश्य है कि मोदी को हटाओ और अपनी सरकार लाओ। पूरा का पूर एक समाज ही मोदी के पीछे पड़ गया है। मान लो मोदी को हटाकर आज भाजपा से कोई और आ गया या फर्ज करो कि कोई दूसरी सरकार आजकल सत्ता में होती तो यह बात सोलह आने पक्की है कि दुर्व्यसथा इससे भी गूढ़ होती। यह तो ऐसा ही हो रहा है कि क्रिकेट के मैदान पर जिस प्रकार से बल्लेबाज आऊट हो जाता है तो दस लोग उसकी खामियां निकालनी शुरू कर देते हैं। मैदान में डटकर काम करना उतना आसान नहीं होता जितना कि वातानकूलित कमरों में बैठकर फालतू कि टिप्पणियाँ करना। हाँ यह अवश्य है कि यदि सरकार 6 महीने के लिए चुनाव टाल देती, तो कोरोना का प्रकोप ऐसे भयंकर रूप में नहीं देखने को मिलता। कुम्भ को भी कुछ समय के लिए रोका जा सकता था। जिस प्रकार से पिछले वर्ष मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि पर लगातार लॉकडाउन करके भारत की जनता को प्रधानमंत्री ने बचाया, आज भी ऐसा हो सकता है और बावजूद इतनी देर होने के लॉकडाउन लगा दिया जाए तो जो करोड़ों जानों की हानी का अंदाजा है, उस पर अंकुश लग सकता है। राज्यों के हाथ में लॉकडाउन लगाने का निर्णय दे सरकार ने ठीक नहीं किया। वास्तव में भारत में जो घातक कोरोना लहर आई है, वह कुछ इसी प्रकार की है जो पिछले वर्ष स्पेन, इटली, अमेरिका, ईरान, रूस आदि में आई थी कि लाशों के ढेर सड़कों पर पड़े थे और इन देशों की पुलिस और सेना इमर्जेंसी घोषित कर बिना अंतिम संस्कार किए दू-दराज के मैदानों में चील-कौओं और गिद्धों के खाने के लिए फेंक कर आ रहे थे। भारत में कदापि यह भयावह स्थिति नहीं होती अगर मोदी के कहने पर जनता अमल करती क्योंकि मोदी ने यह जानते हुए कि कोरोना की कोई दवाई नहीं है, जनता को जो लक्ष्मण रेखा, जनता कर्फ्यू, जान है तो जहान है, ताली और थाली, दीया जलाओ, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, दवाई भी, कड़ाई भी आदि मंत्र दिये थे, अपनी नहीं, उनकी जान बचाने के लिए दिये थे। यदि इन पर लगकर अमल किया जाता तो इतना अधिक नुकसान नहीं होता। दूसरी बात यह कि यदि इस देश को आज के परिपेक्ष्य में कोई बचा सकता है तो वह मात्र एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जात है, जोक आजकल, 22 घंटे कार्यरत हैं। जिस प्रकार से भारत को भूटान से लेकर अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन आदि से आॅक्सीजन है, वह इसी बात का प्रमाण है कि विश्व में मोदी ने पूर्ण रूप से अपनी विश्वसनियता बनाई है। किसी विदेशी पत्रकार ने लिखा था कि मोदी के ऊपर लगभग 48 देशों की जनता का भार है क्योंकि अमेरिका, ब्राजील, फ्रÞांस, स्पेन, इटली, ब्रिटेन व अन्य आदि जैसे देशों की जनसंख्या आज के भारत की जनसंख्या के बराबर है, अर्थात 138 करोड़! यह एक अकेला प्रधानमंत्री 48 देशों के प्रधानमंत्रियों का दायित्व अपने कंधे पर समेटे हुए है। ऊपर से उसे अपनों की ही, जैसे ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल लांछन लगाते रहते हैं और उनका जीना हराम कर रखा है। अन्य देशों में जहां-जहां कोरोना ने विकराल रूप धारण किया हुआ है, वहाँ के सभी विपक्षी दल और गुट अपनी-अपनी सरकारों के साथ कार्यरत हैं। हुआ यह कि जब पहली लहर सकुशल गुजर गई तो लोगों ने पूर्ण रूप से ढिलाई की और न तो मास्क पहना, न ही दूरी रखी और न ही बार-बार हाथ धोए और न ही मार्किटों में भीड़ कम की, बल्कि भीड़ को डबल ही देखा गया। उधर जब भारत ने दो वैक्सीनें ईजाद कर ली तो जनता बिलकुल ही आपे से बाहर हो गई। उधर सरकार ने भी कुछ जल्दी ही यह ऐलान कर दिया कि कोरोना भारत से विदा ले चुका है, जबकि ऐसा हरगिज भी न था। भले ही सरकार ने ढिलाई छोड़ दी थी मगर जनता को तो बखूबी यह जानते हुए कि कोरोना इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है, एहतियात करनी चाहिए थी और मोदी के पिछले वर्ष के मंत्रों को याद करके अपनी जान बचानी चाहिए थी। आज भी इतने हाहाकार में, भारतीय जनता का एक बड़ा भाग बिलकुल भी ध्यान नहीं कर रहा जिसके कारण आज कोरोना गावों तक पहुँच गया है। यदि यह लापरवाही जारी रही और पिछले वर्ष जैसा 71 दिवस का लॉकडाऊन नहीं लगा तो करोड़ों जानों का खतरा हो सकता है। पिछले वर्ष की भांति मोदी जी को आकर राष्ट्र को बार-बार संबोधित करना होगा क्योंकि भारत में आज भी उनका अत्यंत सम्मान है।