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नव वर्ष विक्रमी संवत व आर्य समाज का स्थापना दिवस मनाया

गाजियाबाद। आर्य केन्द्रीय सभा के तत्वावधान में आर्य समाज मंदिर राजनगर में नववर्ष विक्रमी संवत 2078 में 147 वें आर्य समाज स्थापना दिवस का भव्य आयोजन आॅनलाइन जूम पर किया गया। मुख्य वक्ता आचार्य पुनीत शास्त्री मेरठ ने कहा कि युवा शक्ति को अपनी पुरातन भारतीय संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। यज्ञ हमारी वैदिक विरासत है जो सर्व त्याग व जीवन में ऊपर उठने की प्रेरणा देती हैं। भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और योगी राज श्रीकृष्ण के आदर्शों को आज आत्मसात करने की आवश्यकता है। नववर्ष ही के दिन मुम्बई में महर्षि दयानंद सरस्वती ने प्रथम आर्य समाज की स्थापना की थी। आज आर्यजनों को राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए कार्य करना है। बिजनौर के भजन सम्राट पंडित कुलदीप आर्य द्वारा प्रस्तुत मधुर गीतों ने श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया। मुख्य अतिथि आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली के प्रधान धर्मपाल आर्य ने नववर्ष की बधाई देते हुए कहा कि आर्य समाज अपने जन्मकाल से ही पाखण्ड अंधविश्वास के विरुद्ध संघर्ष करता आया है। युवा पीढ़ी को भारतीय होने व भारतीय संस्कृति पर गर्व करना सीखना चाहिए और वैदिक मूल्यों को जीवन मे आत्म सात करने का आह्वान किया। वैदिक विद्वान आचार्य वागीश ने कहा कि जब 1875 में आर्य समाज की स्थापना हुई थी तो लाखों करोड़ों लोग आर्य समाज के आंदोलन से प्रभावित होकर जुड़े थे, हमें अपनी विचारधारा को आज के ढंग से प्रभावशाली बनाकर प्रस्तुति करनी होगी। विशिष्ठ अतिथि समाज सेवी सुभाष गर्ग ने नव वर्ष विक्रमी संवत की बधाई देते हुए समाज व राष्ट्र निर्माण में आर्य समाज के उल्लेखनीय योगदान की चर्चा की। उन्होंने आगे कहा कि अपनी नई पीढ़ी को हम संस्कारवान बनाएं। समारोह अध्यक्ष श्रद्धानन्द शर्मा ने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जनजागरण करने की प्रेरणा दी।
आर्य केन्द्रीय सभा के प्रधान सत्यवीर चौधरी ने मंच का कुशल संचालन किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से ओम प्रकाश आर्य, आनंद प्रकाश आर्य, डा. आरके आर्य, सत्यपाल आर्य, आशा मालिक, कौशल गुप्ता, कुलदीप चौधरी, प्रवीण आर्य, सुभाष गुप्ता, सुरेश कुमार गर्ग एवं डॉ. प्रतिभा सिंघल आदि उपस्थित रहे। सभा मंत्री नरेन्द्र पांचाल ने आॅनलाइन उपस्थित जनसमुदाय का आभार व्यक्त किया और शांतिपाठ के साथ सत्र को विश्राम दिया।

युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति पर गर्व करना सीखें: आचार्य पुनीत शास्त्री
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