फिरोज बख़्त अहमद
किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारत में और विशेष रूप से दिल्ली व महाराष्ट्र में कोरोना की दूसरी लहर इतनी जल्दी आकार घमासान मचा देगी, सुनामी आ जाएगी, हाहाकार मच जाएगा और इतनी जानें बीमारी के चलते और आॅक्सिजन व रेमडेजिवीर की कमी के होते चली जाएंगी कि मृतकों की लंबी-चौड़ी संख्या के कारण कब्रिस्तानों में कब्र खोदने वाले गोरकन कम पड़ जाएंगे, श्मशानों में लकड़ियाँ और चिताएँ कम पड़ जाएंगी। मोबाइल फोन पर फेसबुक और वाट्सएप खोलते हुए उंगलियां कांपती हैं कि कब किस करीबी जानकार की मृत्यु का संदेश मन व मस्तिष्क की शांति को छिन्न-भिन्न न कर दे। भयावह स्थिति आ गई है और ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिन कहीं और भी भयानक न हों। वास्तव में पिछले कई वर्ष से हालात ऐसे बन रहे थे कि हम इंसान ही धरती माता के भक्षक बन गए थे, न वातावरण का ध्यान, न हरियाली की चिंता, न निर्धन के लिए कोई सोच बल्कि घमंड व अहंकार का दौर-दौरा दिखाई देता था जिसमें न तो सगे संबंधी, न ही दूर-परे के रिश्तेदार व जानकार आपस में सही ढंग से बातचीत कर रहे थे। किसी की मदद के नाम पे ठन-ठन गोपाल! भगवान को तो बीच में से निकाल ही दिया था। यही सब देख ऊपर वाले ने भी अपनी ठानी कि जिनकी संरचना मैंने की है और यह बताकर धरती पर भेजा है कि एक-दूसरे कि सेवा करो, सहएटा करो अँड सुख दो आज वही उल्टे रास्ते पर चल पड़े। इस में कोई दो राय नहीं कि भगवान ने काफी देर तक रस्सी को ढीला छोड़ा हुआ था मगर अब थोड़ी खेंच ली है कि ठीक हो जाओ वर्णी आधी दुनिया का सफाया हो सकता है। अत: भगवान ने इंसान को सबक सिखाने के लिए अपना एक छोटा सा हथियार भेजा, इतना छोटा कि आँख से दिखाई भी नहीं देता मगर चूंकि खुदाई तत्व था, एटम बम से भी अधिक ताकत इसमें है और इंसान के बस में अभी तक नहीं आया है। भगवान ने इंसान को अल्टीमेटम दे दिया है कि सुधर जाओ वरना अंजाम अच्छा न होगा। यह रुपया-पैसा कुछ काम में आने वाला नहीं है जब लाद चलेगा बंजारा! अमेरिका के एक नौजवान पूंजीपति ने कोरोना संक्रामण के अंतिम चरण पर अपनी सारी दौलत अर्थात डॉलर नोट अपने मित्र को दे दिए कि टाइम्स स्कवेर के चौक पर पब्लिक में उड़ा दे क्योंकि यह दौलत उसके किसी काम की नहीं! ऐसे सीन पिछले वर्ष स्पेन और इटली में भी देखने के मिले थे। जहां तक भारत का संबंध है, पिछले वर्ष प्रधानमंत्री ने कप्तान की भूमिका में स्वयं आगे आकार लक्ष्मण रेखा, जनता कर्फ्यू, जान है तो जहान है, ताली और थाली और दीया जलाओ आदि मंत्रों से प्रशंसनीय रूप से कोरोना पर काबू पा लिया था। यह इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि जनता ने मोदी की बात सुनी। इसी बीच, मोदी ने दो वैक्सीन बनवा कर देश के लिए विश्व गुरु की भूमिका में भी देश को दर्शाया। मगर इसी दौरान जनता ने यह सोच कर कि चलो वैक्सीन आ गई है, मोदी मंत्र को ताक में रखो और मौज-मस्ती व मंडली में समय गुजारो। यह भयंकर गलती कर बैठा भारतीय जनमानस। मास्क, साबुन, दो गज की दूरी आदि को तिलांजलि दी जबकि पता था कि महामारी का दूसरा दौर भी लौटता है और भयावह रूप में पलटता है। एक अकेला प्रधानमंत्री कहां तक हाथ-पांव मरेगा। मोदी की बात राज्य सरकारों ने भी अनसुनी की कि महामारी का दूसरा दौर फरवरी या मार्च में लौट सकता है, अत: तैयारी कर लो, मगर किसी ने न सुनी और उसका खमियाजा आज सभी भुगत रहे हैं। केजरीवाल ने आॅक्सीजन नहीं है, नहीं है का राग आलाप रखा है। पहले तो कह दिया कि दिल्ली में विश्व स्तरिए हस्पताल हैं और आॅक्सीजन की कोई कमी नहीं। उन्हें पता ही नहीं कि उनके राज्य में क्या हो रहा है। स्वयं कुछ करने को तैयार नहीं और केंद्र को कोसने के लिए सबसे पहले खड़े हो जाते हैं। इन दिनों इस कोरोना सुनामी के चलते, आॅक्सीजन के घोर अभाव हस्पतालों में बेड की कमी और श्मशानों व कब्रिस्तानों में लाशों को जलाने व दफ़्नाने के मधी जो छीछालीदर अरविंद केजरीवाल व प्रधानमंत्री के बीच हुई उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जनता के ऊपर। बात दरअस्ल यहां यह है कि जिस प्रकार से अप्रेल के शुरू में कोरोना की दूसरी व भयंकर लहर ने मृत्यु का तांडव मचाया है और जिस प्रकार से आॅक्सीजन के न होने से लगभग 100 के ऊपर आम जनता ने प्राण गंवाए हैं, उससे एक तो भय का माहौल फैला है और दूसरे यह कि ठाणे, दिल्ली व अन्य स्थानों आॅक्सीजन न होने के कारण जनता के प्राण पखेरू हो गए, उससे आमजन की नउम्मीदी बढ़ी है और दिल्ली वाले तो विशेष रूप से डरे हुए हैं और कहते हैं कि अगले क्षणा क्या हो, कुछ पता नहीं। आॅक्सीजन की कमी के कारण नासिक के अस्पताल में हुई 24 लोगों की मौत और दिल्ली के जयपुर गोल्डन हस्पताल में हुई 25 लोगों की मृत्यु दिल दहलानेवाली खबर है। आॅक्सीजन की कमी की खबरें देश के कई शहरों से आ रही हैं। कई अस्पतालों में मरीज सिर्फ इसी के कारण दम तोड़ रहे हैं। कोरोना से रोज हताहत होने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि कई देशों के नेताओं ने अपनी भारत-यात्रा स्थगित कर दी है। कुछ देशों ने भारतीय यात्रियों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया है। लाखों लोग डर के मारे अपने गांवों का रुख कर रहे हैं। नेता लोग भी डर गए हैं। वे तालाबंदी और रात्रि-कर्फ्यू की घोषणाएं कर रहे हैं लेकिन बंगाल में उनका चुनाव अभियान पूरी बेशर्मी से जारी है। ममता बेनर्जी ने बंगाल में तेजी से बढ़ रहे कोरोना केसों के लिए कहा है, कोविड तो मोदी ने पैदा किया है। इससे बढ़कर गैर-जिम्मेदाराना बयान क्या हो सकता है? यदि मोदी चुनावी लापरवाही के लिए जिम्मेदार हैं तो उससे ज्यादा खुद ममता जिम्मेदार हैं। बकौल ममता, यदि हिम्मत करतीं तो मुख्यमंत्री के नाते चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगा सकती थीं। उन्हें कौन रोक सकता था? यह ठीक है कि बंगाल में कोरोना का प्रकोप वैसा प्रचंड नहीं है, जैसा कि वह मुंबई और दिल्ली में है लेकिन उसकी चुनाव-रैलियों ने सारे देश को यही संदेश दिया है कि भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है। वरिष्ठ लेखक व पूर्व संपादक, नवभारत टाइम्स, वेद प्रताप वैदिक ने भी अपने ब्लॉग में लिखा कि इन चुनाव रैलियों से यह संदेश गया कि डरने की कोई बात नहीं है। जब हजारों-लाखों की भीड़ बिना मुखपट्टी और बिना शारीरिक दूरी के धमाचौकड़ी कर सकती है तो लोग बाजारों में क्यों नहीं घूम सकते हैं, कारखानों में काम क्यों नहीं कर सकते हैं, अपनी दुकाने क्यों नहीं चला सकते हैं और यात्राएं क्यों नहीं कर सकते हैं? उन्हें भी बंगाली भीड़ की तरह बेपरवाह रहने का हक क्यों नहीं है? लोगों की यह लापरवाही जिस प्रकार से बंगाल में वीभत्स रुप धारण करती जा रही है, ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ भी दिल्ली या महाराष्ट्र जैसी भयावह कोरोना बूम फटने जा रहा है। ममता जिस बात के ठीकरा मोदी पर फोड़ रही हैं, उसकी सबसे बड़ी अनदेखी तो स्वयं उनहोंने अपनी रैलियों में की है। मोदी ने तो बस एक, दो रैलियों के बाद कोई रैली नहीं की मगर ममता लगातार इनका का आयोजन कर रही हैं जिसका प्रभाव तो अभी वहां के 200 केसों से बढ़ कर 20,000 केसों तक देखने में आना प्रारम्भ हो गया है और आने वाले एक महीने में पूर्ण रूप से देखने को मिलेगा। हम भगवान से आशा करते हैं कि वहाँ सब कुछ सकुशल रहें। ममता ने मोदी की रैलियों पर तो आरोप लगा दिया मगर यह नहीं बताया कि किस प्रकार से मोदी पिछले वर्ष से ही कोरोना पर काबू लगाने हेतु दिल-ओ-जान से लगे हुए हैं। एकतरफा और नकारात्मक सोच है उनकी। कुछ ऐसा ही बर्ताव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है जो अपने को बड़ा शातिर समझते हैं और जिस प्रकार का व्यवहार उन्होंने मोदीजी के साथ उनकी बातचीत को वायरल करके किया था व प्रधानमंत्री के साथ भोंडे तरीके से पेश आए थे, सिवाय अपने चाटुकारों के उनकी सभी जगह भर्त्सना हुई। उनका रवैया ऐसा है कि अन्य सभी को वह मूर्ख समझते हैं और अपने आपको सबसे चालाक। केंद्र ने दिसंबर में कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के लिए आॅक्सीजन आॅक्सीजन प्लांट लगाने का भरपूर पैसा दिया था, मगर सब टाएं-टाएं फिस्स! इस पैसे का क्या हुआ, कोई हिसाब नहीं दिया गया और जब केंद्र ने उनके लिए 487 क्यूबिक टन आॅक्सीजन प्राप्त करा दी तो उन्होंने इस आॅक्सीजन को रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे से लाने के लिए विशेष क्रायोजेनिक सिलेन्डर ट्रक क्यों नहीं खरीदे जबकि पैसा उनको केंद्र से मिल चुका थ? हाँ आल इंडिया माइनोरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष डॉ. सैयद मोहम्मद आसिफ ने कहा है कि दिल्ली में लगातार चटपट हो रही मौतों के लिए सीधे तौर पर केजरीवाल सरकार है। उन्होंने कहा कि कोरोना मरीजों के लिए सरकार ने बीते एक वर्ष में एक भी अतिरिक्त अस्पताल नहीं बनवाया। जिन अस्पतालों में कोविड मरीजों का इलाज हो रहा है, उनकी हालत नर्क से बदतर हो चुकी है। कोरोना से मौत का शिकार लोगों की लाशें कूड़े के ढेर की तरह जहां तहां पड़ी हैं। मरीज तड़प रहे हैं, रिश्तेदार बिलख रहे हैं। केजरीवाल ने सिर्फ लॉकडाउन जारी कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रही है। डॉ. आसिफ ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली पर राज करने का अपना नैतिक अधिकार खो दिया है। उन्होंने कहा कि आत्मप्रशंसा का प्रचार करने पर अरबों रुपये जो खर्च किये हैं उस राशि से दिल्ली में कई स्थायी व अस्थायी अस्पताल बनाये जा सकते थे। शहर की साफ सफाई और सैनेटाइजेशन पर पूरे वर्ष कोई ध्यान नहीं दिया। हर जगह कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन होता रहा, कही कोई पुख्ता इंतेजाम नहीं किया। इतना उन्होंने अवश्य किया कि एक-आधा कोरोना टेंट लगाकर अपनी कददे आदम अर्थात 6-फुटी फोटो अवश्य स्थापित कर दी। लगभग 600 करोड़ के विज्ञापन प्रति वर्ष जारी कर अपनी तस्वीरें हर स्थान पर इस प्रकार से ठोंकते रहे कि जैसे कोई उन्हें जानता ही नहीं। वास्तविकता तो यह है कि दिल्ली और देश का नागरिक उनके नौटंकिया अंदाज और मतलबपरस्ती व खुदपरस्ती को इतनी अच्छी प्रकार से समझ गया है कि शायद अगली बार वह सत्ता में न आएं। जिस प्रकार से प्रधानमंत्री की गोष्ठी को उन्होंने वायरल करके उनसे अहंकार से पूर्ण व जिल्लत आमेज तरीके से क्षमा याचना की, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो घमंड का एक मूर्ति सामने वाले की तौहीन पर उतरी हुई है! दिल्ली और देश की जनता ने देख लिया कि किस प्रकार से दुनिया को मूर्ख बनाने के लिए, स्वयं कोई जिम्मेदारी न निभाकर वे दोनों हाथों में भीख का प्याला लेकर सरकार और मोदी को कोसते फिरते हैं। कहावत है कि प्रतिदिन रविवार नहीं होता और कुछ पाने के लिए अपना आराम और विलास पूर्ण जीवन त्याग जनता के चरणों में स्वयं को समर्पित करना होता है जैसा कि स्वयं प्रधानमंत्री करते चले आए हैं। वह 24 में से 20-22 घंटे काम करते हैं और योगा व वैष्णव भोजन से अपना दिन शुरू कर अपना सब-कुछ जनता के समर्पित कर देते हैं। बड़े खेद का विषय है कि जहां जनता हस्पतालों में आॅक्सीजन के अभाव से मर रही है, वहीं कुछ लोग लोगों की लाशों पर कारोबार कर रहे हैं। इस जनता के जले पर वे लोग नमक छिड़क रहे हैं, जो रेमजेदेविर का इंजेक्शन 40 हजार रुपए और आक्सीजन का सिलेंडर 30 हजार रुपए में बेच रहे हैं। ऐसे कालाबाजारियों को सरकार ने पकड़ा जरुर है लेकिन ऐसों को तुरंत कोर्ट मार्शल कर उनको 24 घंटे में फांसी पर लटका देना चाहिए जैसा कि सऊदी अरब और ईरान में किया जाता है। मेरा सरकार से प्रश्न है कि वह इन्हें तत्काल फांसी पर क्यों नहीं लटकाती और टीवी चैनलों पर उसका जीवंत प्रसारण क्यों नहीं कराती ताकि ऐसे भावी शैतान नरपशुओं के लिए तुरंत नजीर बने। रही बात आॅक्सीजन की कमी की, तो देश में पैदा होने वाली कुल आॅक्सीजन का सिर्फ 12 प्रतिशत ही हस्पतालों में इस्तेमाल होता है। सरकार और निजी कंपनियां चाहें तो कुछ ही घंटों में सारे हस्पतालों को पर्याप्त आॅक्सीजन मुहय्या हो सकती है। इसी तरह कोरोना के टीके यदि मुफ्त या सस्ते और सुलभ हों तो इस महामारी को काबू करना कठिन नहीं है। समय है कि राजनीतिक नेता तू-तू, मैं-मैं छोड़ जनता जनार्दन की सेवा में लगे अन्यथा बहुत बड़ा अनर्थ होने को मुंह बाहे खड़ा है।