गाजियाबाद। रालोद के प्रवक्ता इन्द्रजीत सिंह टीटू ने जनप्रतिनिधियों के नाम खुला पत्र लिखकर उन पर सवालों की बौछार की है। उन्होंने शहर के लोगों की भी पीड़ा को व्यक्त करते हुए उनसे जवाब मांगे हैं। स्थानीय सांसद एवं केंद्रीय राज्यमंत्री वीके सिंह, राज्यसभा सदस्य अनिल अग्रवाल, महापौर आशा शर्मा, नगर विधायक एवं राज्यमंत्री अतुल गर्ग, विधायक अजीत पाल त्यागी, विधायक सुनील शर्मा एवं विधायक डाक्टर मंजू शिवाज को लिखे खुले पत्र में कहा है कि वह इस पत्र में वे किसी को भी कम नहीं आंक रहे है और न ही किसी पर उंगली उठाना या अपने लिए राजनीति कर रहे हैं बल्कि गाजियाबाद का वासी होने के नाते वह हर उस मतदाता चाहे वह किसी भी धर्म, किसी भी जाति, किसी भी गली-मोहल्ले का रहने वाला हो, जब अपना नुमाइंदा चुनने के लिए वोट देता है तो पूरे 5 साल उससे कुछ उम्मीदें रखता है और विशेष तौर से जितने नुमाइंदों के नाम मैं यह पत्र लिख रहा हूं सभी को हमेशा शहर के मतदाता ने उनको या उनके परिवार को दिया है। कुछ चुने जाने से पहले भी और चुने जाने के बाद भी इनका हमेशा से गाजियाबाद से ताल्लुकात रहा है और ताल्लुकात रहेगा। अब मैं अपनी बात पर आता हूं। इस महामारी के दौरान जो पिछले डेढ़ महीने हालात देखने को मिले हैं। महामारी तो एक साल से चल रही है लेकिन यह डेढ़ माह बहुत ही भयावह स्थिति दिखाकर गया है और पता नहीं अभी हम लोगों को कितना समय और इस बीमारी से लड़ना है। हर परिवार ने कुछ न कुछ खोया है। किसी ने बीमारी को झेला है, किसी ने अपने को खोया है। किसी का पैसे से नुकसान हुआ है। इन चीजों से सभी प्रभावित हुए हैं। गरीब, अमीर, मजदूर, व्यापारी, पत्रकारिता जगत और सभी कारखाने वाले सबका नुकसान हुआ है। ऐसे नुकसान हुए हैं जिसकी भरपाई करना नामुमकिन है।अब पिछले कुछ दिनों से निरंतर देखा जा रहा है सरकार और राजनीतिक नुमाइंदे दो काम में लग गए हैं। कुछ लोग तो जांच कमेटियां बनाने में लग गए हैं। कुछ लोग जो जनता से संपर्क नहीं कर पाए उनको आॅनलाइन करने में लग गए हैं। कुछ दोबारा से जनता के बीच में किस चेहरे को लेकर जाएंगे इस काम में लग गए हैं। राजनीतिक लोगों पर एक सबसे बड़ा हथियार है जांच कमेटी बना दो मामले को ठंडे बस्ते में डाल दो। मैं पूछना चाहता हूं कि अगर कमेटियों से न्याय मिलता है तो 1984 के दंगों का न्याय लेने के लिए 37 साल नहीं लगते। मेरे इस पत्र का मकसद है इन सभी नुमाइंदों के पास जिन लोगों का मैंने जिक्र करा है इनके नुकसान की भरपाई का क्या प्लान है। पिछले कोरोना काल में न तो स्कूलों की फीस खत्म हुई, न ही बैंकों का ब्याज माफ हुआ, न ही ट्रांसपोर्ट व्यापार में किसी भी प्रकार के टैक्स की छूट मिली। न तो बिजली के बिल में छूट मिली। जब सभी नुमाइंदे अपने को गाजियाबाद वासी मानते हैं, इनको दोबारा जनता के बीच में जाना ह,ै चुनाव लड़ना है, नहीं लड़ना तो भी इनको हमेशा गाजियाबाद में जनता के बीच में रहना तो है। मेरी सभी नुमाइंदों से हाथ जोड़कर झोली फैलाकर एक ही मांग है कि यह सभी नुमाइंदे एक प्रेसवार्ता कर सभी लोग गाजियाबाद जिले की जनता को बताएं कि जनता के लिए राहत देने के लिए इनके पास क्या प्लानिंग है। किस रूप में गाजियाबाद की जनता को राहत देंगे या मुख्यमंत्री से दिलाएंगे या केंद्र सरकार से दिलवाएंगे। जो स्पष्ट रूप से नजर आनी चाहिए केवल आंकड़ेबाजी नहीं होनी चाहिए। जनता को अब कमेटियों के फैसले का इंतजार नहीं बल्कि हर शख्स को राहत मिलने का इंतजार है। जिन लोगों ने भी मानवता को बेचते हुए कालाबाजारी की, हॉस्पिटल में पैसे ज्यादा लिए, कुदरत उनसे जवाब अपने आप ले लेगी। हम जवाब नहीं ले पाएंगे। कुदरत की लाठी में आवाज नहीं होती। उसके यहां हमेशा न्याय होता है।