नई दिल्ली। स्तोत्र यानी की स्तुति। स्तोत्र का निर्माण ऋषि- मुनियों ने देव व देवियों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया। स्तोत्र का पाठ कर हम अपने आराध्य की कृपा के पात्र बनते हैं। स्तोत्र सामान्य आराधना से परे है। इसका पाठ करने से जातक को सामान्य पूजा – पाठ से अधिक फल मिलता है। आइये जानते हैं स्तोत्र के बारे में –
स्तोत्र कैसे करें
हर कार्य को करने का एक तरीका होता है। उसी तरह से स्तोत्र का पाठ करने के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। स्तोत्र का पाठ करने से पहले जातक शुद्ध हो, स्नान आदि कर अपने आप को भगवान की भक्ति के लिए तैयार कर लें। कुल मिलाकर स्तोत्र का पाठ करने की विधि की बात करें तो यह देव व देवी के अनुसार तय होता है।
परंतु सामान्य विधि की बात करें तो हर एक स्तोत्र पाठ में अपनाया जाता है। सबसे पहले आपको स्तोत्र करने का स्थान तय करना होगा। इसके बाद आप आसन बिछा कर बैठ जाए। फिर आपको गणेश जी का ध्यान करें। फिर जिस भी देवी देवता के स्तोत्र का पाठ करना हो उसे शुरू करें। ध्यान रहें आपका ध्यान पाठ पर रहें। पूरी श्रद्धा से आप स्तोत्र का पाठ करें।पाठ पूर्ण होने के बाद जिस देव की स्तुति आप कर रहें थे उनका ध्यान करें। हुई भूल चूक क्षमा करने की याचना करें।
स्तोत्र क्या है
स्तोत्र, यह एक संस्कृत शब्द है। इसे स्तोत्रम, स्तोत्रम् के नाम से भी जाना जाता है। इस शब्द है जिसका अर्थ होता है “स्तोत्र, स्तवन या स्तुति। यह भारतीय धार्मिक ग्रंथों की एक साहित्यिक शैली है, जिसे मधुर गायन के लिए तैयार किया गया है। स्तोत्र एक प्रार्थना है। जो एक काव्यात्मक संरचना के साथ है। यह एक कविता हो सकती है, उदाहरण के लिए किसी देवता की प्रशंसा और व्यक्तिगत भक्ति, या अंतर्निहित आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों वाली कविताएँ।
कई स्तोत्र देवों की प्रशंसा करते हैं, जैसे देवी, शिव या विष्णु। शब्द “स्तुति” से संबंधित है, एक ही संस्कृत मूल से आ रहा है स्तू- प्रशंसा करने के लिए, और मूल रूप से दोनों का अर्थ प्रशंसा है। उल्लेखनीय स्तोत्र है राम रक्षा स्तोत्र व शिव तांडव स्तोत्रम हैं, जो राम व शिव से कृपा प्राप्त करने के लिए है। इसी तरह से अन्य देवी व देवताओं की स्तोत्र है। स्तोत्र एक प्रकार का लोकप्रिय भक्ति साहित्य है।
स्तोत्र करते समय क्या न करें
सबसे पहली बात जो ध्यान रखना है वो यह है कि आप अतंर्मन व बाहर से शुद्ध हो। इसके बाद आपको स्तोत्र को बीच में अधूरा नही छोड़ना है। जहां तक हो सके स्तोत्र को शुद्धता के साथ पाठ करें। अशुद्ध उच्चारण न करें । कुल मिलाकर आपको स्तोत्र का पाठ पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ करना चाहिए। भूल चूक की आप क्षमा मांग लें। चाहे भूल हो या न हों। ऐसा करना आपको लिए सही रहेगा।