कमल सेखरी
देश की राजधानी दिल्ली में केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित विशाल भवन ‘सेंट्रल विस्टा’ के निर्माण को लेकर बड़ी ही बेतुकी सियासत पुरजोरता से चल रही है। कई हजार करोड़ की लागत से बनाई जा रही इस बड़ी इमारत को जहां एक ओर केन्द्र सरकार एक अनिवार्य आवश्यकता बता रही है वहीं दूसरी ओर विरोधी दल जिनमें खासतौर पर कांग्रेस वर्तमान परिस्थितियों में हजारों-करोड़ों के हो रहे इस खर्चे को बेफिजूल बताकर इस पर तुरंत रोक लगाने की मांग कर रही है। केन्द्र सरकार कोरोना की इस दूसरी लहर के दौरान भी इस विशाल भवन के निर्माण पर तेजी से काम करती रही और लॉकडाउन के दिनों में भी इस निर्माण पर कई सौ मजदूरों को हर रोज इस्तेमाल करती रही। केन्द्र सरकार का कहना है कि वह 2022 के प्रारंभ में ही इस विशाल इमारत का शुभारंभ करना चाहती है जबकि कांग्रेस कई तरह के आरोप लगाते हुए इसे मोदी महल की संज्ञा दे रही है और एक अभिमान की तरह इस निर्माण के विरुद्ध खड़ी हो गई है। हालांकि दिल्ली उच्चन्यायालय में बीते दिन इस निर्माण को रोके जाने की अपील करते हुए याचिका दाखिल की थी और माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका कर्ता पर एक लाख रुपए का दण्ड लगाते हुए इस खारिज कर दिया। इस याचिका के खारिज होने पर भाजपा ने इसे अपनी एक बड़ी जीत बताया है जबकि यह मामला किसी हार-जीत से नहीं जुड़ा है क्योंकि यह न्याय पालिका के हस्तक्षेप का विषय ही नहीं था। कोई भी विकसित देश अगर ऐसे किसी विशाल भवन का निर्माण करता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए परंतु कोरोनाकाल के दौरान जब हमें महामारी आर्थिक संकट से उभरने के लिए अधिक धन की आवश्यकता हो तो ऐसे में इस तरह के बड़े खर्चे कुछ समय के लिए टाले जा सकते हैं। इस निर्माणधीन विशाल भवन ने प्रधानमंत्री निवास के अलावा विभिन्न मंत्रालयों के आधुनिक और बड़े आकार के कई भवन बनाए जा रहे हैं। यह मेरा अपना अनुभव है और मैं ऐसी कुछ घटनाओं का हिस्सा भी बना हूं जहां प्रधानमंत्री और अन्य सभी मंत्री अपने दफ्तरों में साइकिलों पर जाते हैं और दिन में केवल सरकारी कामों के लिए सरकारी गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं और शाम पांच बजे अपना कार्य समाप्त कर अपनी-अपनी साइकिलों पर बैठकर अपने घरों को लौट आते हैं। अबसे लगभग ढाई दशक पहले मुझे उत्तरी कोरिया दो बार जाने का अवसर मिला, इस दौरान मेरी मुलाकात वहां के केन्द्रीय शिक्षा मंत्री ली जांगसुम से हुई। मेरे 40 दिन के प्रवास के दौरान श्री सुम मुझे एक दर्जन से अधिक बार अपनी साइकिल के पीछे बिठाकर राजधानी प्यांग यांग में घुमाकर लाए जिसमें तीन बार ऐसा भी हुआ कि मैंने साइकिल चलाई और शिक्षा मंत्री मेरे पीछे बैठे। आपको यह जानकर और ताज्जुब होगा कि शिक्षा मंत्री ऐसे अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर रहते थे जिसकी चौथी मंजिल पर मेरे गाइड और द्विभाषी किमइल भी रहते थे। उस समय उत्तरी कोरिया की आर्थिक स्थिति में उनके एक वॉन में भारत के सात रुपए मिलते थे। वो उस समय भारत से कई आगे का विकासशील देश था। जब ऐसे विकासशील देशों के बड़े राजनेता साधारण से चार कमरों के मकान में रह सकते हैं और साइकिलों पर घूमकर अपने कामों को अंजाम दे सकते हैं तो हमारे भारत के ये बड़े राजनेता जनता के बीच रहते हुए एक साधारण जीवन का निर्वाह क्यों नहीं कर सकते। यहां हर नेता को अपनी गाड़ी के साथ 10-20 गाड़ियों के काफिले के साथ चलने की आदत पड़ गई है। तीन-चार एकड़ भूमि क्षेत्र से कम में बने विशाल भवनों में रहे बिना इनका दिल नहीं लगता फिर कैसे बनेगा मेरा भारत महान।