आज के अखबारों में भ्रष्टाचार की खबरें भरी पड़ी हैं। ठगी, धोखाधड़ी और तस्करी जैसे अपराधों की खबरें तो हम आए दिन सुनते ही रहते हैं लेकिन सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार की खबरें कई राज्यों से एक साथ फूट रही हैं। इन अफसरों पर भ्रष्टाचार के कागजी आरोपों की जांच तो चल ही रही है लेकिन उनके घरों पर जो छापे पड़े हैं, वे हैरतअंगेज हैं।
एक-एक अफसर, जिसकी आमदनी कुछ हजार रु. महिना है, उसके यहां करोड़ों रु. का जेवर, लाखों रु. की नकदी, करोड़ों रु. के दर्जनों बैंक खाते, कई मकान और फॉर्म हाउस पकड़े गए हैं। उनके परिजनों और रिश्तेदारों के बैंक खातों में करोड़ों की राशि पाई गई है।
यह भी पता चला है कि विदेशी बैंकों में भी उन्होंने मोटी राशियां छिपा रखी हैं। रिश्वत में ऐंठे गए पैसे को छिपाने की कला कोई सीखना चाहे तो अपने इन भ्रष्ट अफसरों से सीखे। भ्रष्टाचार के किस्सों की यह भरमार देखकर दो सवाल उठते हैं। पहला, यह कि हमारी नौकरशाही इतनी भ्रष्ट क्यों हैं ? इसके कारण क्या हैं ? और दूसरा, यह कि इसका उपचार क्या है? हमारी नौकरशाही अपने नेताओं की अंधभक्त है।
हमारे अफसर नेताओं को लाखों-करोड़ों रु. डकारते हुए और गलत को भी सही घोषित करते हुए रोज देखते हैं। उन्हें नेताओं के भ्रष्टाचार की सूक्ष्मतम और गोपनीयतम जानकारी होती है। तो वे भी लोभ-संवरण नहीं कर पाते। वे नेताओं से भी ज्यादा बारीक तरकीबें निकालकर भ्रष्टाचार को अपना रोजमर्रा का धंधा ही बना लेते हैं। उन्हें पक्का भरोसा रहता है कि उनके नेता को पता चल भी गया तो भी वह उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता। इसका उपचार तो यही है कि नेता लोग पैसा खाना बंद करें। वे कैसे करेंगे? उन्हें चुनावों में और उसके पहले भी ठाठ-बाट से रहने के लिए मोटे पैसे की जरुरत होती है। न तो वे कोई नौकरी करते हैं, न ही खेती और न ही कोई व्यवसाय। उनकी मजबूरी है कि वे लोगों से जैसे-तैसे पैसा ऐंठें।
जब तक देश में लोकतंत्र है, चुनाव होंगे, उनमें पैसा बहेगा तो वह आएगा कहां से? इसीलिए हमारी चुनाव-पद्धति में आमूल-चूल सुधार की जरुरत है ताकि वह न्यूनतम खचीर्ली बने। दूसरा, नेताओं और अफसरों की मुफ्त सरकारी सुविधाओं में अधिकतम कटौती की जाए। तीसरा, भ्रष्टाचार करते हुए जो भी नेता व अफसर पकड़ा जाए, उसे पदमुक्त तो किया ही जाए, उसे जेल तो भेजा ही जाए, उसकी सारी चल-अचल संपत्ति भी जब्त की जाए। उसके जिन रिश्तेदारों, मित्रों और चेलों पर संदेह हो, उन पर भी कड़ी कार्रवाई की जाए। देश के बड़े-बड़े नेता (और साधु-संत भी) अपना निजी जीवन सादगी और शुद्धता की मिसाल बनाकर देशवासियों के प्रेरणा-स्त्रोत बनें।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक