पश्विच बंगाल के नंदीग्राम विधान सभा क्षेत्र से गाजियाबाद लौटकर आए एक दल विशेष के कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओं ने यहां आने के बाद अपने मित्रों को बताया कि वो लोग चुनावी दौर के बीच इसलिए लौट आए हैं क्योंकि वहां कोरोना महामारी का प्रकोप एकदम से फैलता नजर आ रहा है। पार्टी एजेंडे के कार्यक्रम को बीच में छोड़कर आए उन कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम जान बचाकर वापस लौटे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बंगाल के विधानसभा चुनाव में कई बड़े शहर कोरोना की चपेट में आ चुके हैं लेकिन उसकी खबर किसी भी बड़े मीडिया पर न तो दिखाई जा रही है, न छापी जा रही है। इन लोगों की ऐसी बातों से यही लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में दो मई के बाद कोरोना का आइटम बम फूटेगा और बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आ जाएंगे। इसी तरह हरिद्वार में चल रहे कुंभ के मेले में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है और वहां प्रशासन स्थिति को नियंत्रण में नहीं ले पा रहा है। कुंभ के इस मेले के बाद यहां आने-जाने वाले कई हजार लोग प्रभावित होंगे, इसका अनुमान अभी से लगाया जा रहा है। बंगाल चुनाव और कुंभ मेले में बरती जा रही अनियमितताओं पर कोई राष्टÑीय चैनल बोलने को तैयार नहीं है। जहां एक ओर गैर भाजपाई प्रदेशों में विधायकों और मंत्रियों की कोरोना को लेकर बरती जा रही गलतियों को बड़े-बड़े चैनल बड़ी ही सुर्खियों के साथ दिखाते हैं और उन राजनेताओं की निंदा करते हैं लेकिन बंगाल और कुंभ मेले को लेकर सभी ने आंखे मूंद ली हैं और होटों पर टेप लगा ली है। इन मामलों को लेकर हमारे मीडिया का ठीक ऐसा ही व्यवहार दिखाई देता है जैसा कि कभी महाराजा रंजीत सिंह के क्रिकेट खेलने के समय देखा जाता था। महाराजा अगर बल्लेबाजी करने आते तो उनके बल्ले से लगी हर गेंद को सीमा रेखा से पार जाना ही होता था, यदि बल्ले से लगी गेंद खुद से सीमा तक नहीं पहुंच पाती थी तो मैदान में खेल रहे अन्य रक्षकों को अपने पैर से किक मारकर उसे सीमा रेखा के पार भेजना ही होता था। इसी तरह अगर महाराजा के बल्ले से लगकर कोई गेंद हवा में उछल जाती थी तो किसी क्षेत्र रक्षक की हिम्मत उसे लपकने की नहीं होती थी, ऐसे ही अगर महाराजा किसी गेंदबाज की गेंद पर ‘क्लीन बोल्ड’ हो जाते थे तो एम्पायर को उस बॉल को ‘नो बॉल’ करार देना अनिवार्य होता था। पगबाधा महाराजा की बल्लेबाजी के दौरान नियमों में शामिल नहीं होती थी। महाराजा अपनी सत्ता शक्ति के आधार पर अपनी मनमर्जी का खेल खेलने के लिए स्वतंत्र होता था। ठीक ऐसी ही कुछ स्थिति हमारी आज की इस राजनीतिक व्यवस्था की बनी हुई है। प्रदेश शासन हो या पुलिस व्यवस्था या फिर केन्द्रीय सुरक्षा बल और चुनाव आयोग भी अपने-अपने व्यवहार को ऐसी ही व्यवस्था से जोड़े हुए हैं। अब टीएमसी मुखिया के फुटबॉल मैच का हाल और परिणाम कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है जो कभी महाराजा पटियाला के क्रिकेट मैच को लेकर कहा और सुना जाता है।