देश के लगभग सभी प्रदेशों में यह देखने को मिलता है कि वहां चल रहे नाइट बार, नाइट क्लब और मदिरा से जुडेÞ व्यवसायों को सुगमता से चलाने के लिए संचालकों को बाउंसर्स और तगड़े पहलवानों को नौकरी पर रखना पड़ता है। मदिरा सेवन करने के बाद कई लोग अक्सर सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं। उन्हें नीचे उतारने के लिए बॉक्सर्स, बाउंसर्स की जरूरत पड़ती है। मदिरा का ये व्यवसाय इन बाहुबलियों के बिना चला पाना संभव नहीं है। अब ऐसी ही जरूरत लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन और विभिन्न प्रदेशों में स्थापित विधानसभा भवनों में भी पड़नी शुरू हो गई है। जनतंत्र के इन भवनों में जनहित का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों और विधायकों को लगभग हर रोज किसी न किसी सदन के भवन से खींच-खींचकर बाहर निकाला जाता है। अभी बिहार में तो अद्भुत नजारा देखने को मिला, वहां विधानसभा में पुलिस अधिकार संशोधन बिल को लेकर विपक्षी नेताओं ने ऐसा हंगामा मचाया कि उन्हें सदन से खींच-खींचकर निकाला गया और जमीन पर लिटाकर बुरी तरह से मारा पीटा गया। इस शर्मनाक नजारे को देखकर ऐसा लगा मानो लोकतंत्र की धज्जियां उड़ गई हों और जन विश्वास जमीन पर लेटा अपनी जान की रक्षा की गुहार लगा रहा हो। बिल का विरोध कर रहे विपक्षी दलों के विधायकों को मार्शल्स ने धक्के दे देकर बाहर निकाला और बाहर निकलते ही स्थानीय पुलिस ने उन्हें बेरहमी से पीटा। इस तरह के हादसे दिल्ली की लोकसभा और राज्यसभा के सदनों में भी कई बार देखने को मिले हैं। देश का कोई ही प्रदेश ऐसा शेष बचा रह गया होगा जहां विधानसभा के भवनों में चल रही सदन की कार्यवाही के दौरान ऐसा सबकुछ न हुआ हो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने गए प्रतिनिधि अपने संबंधित सदनों में खुद को मिले जनविश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में इस तरह की हिंसा का होना समूचे देश को शर्मसार कर देता है। हमारे ये जनप्रतिनिधि जन साधारण के लिए एक ‘रोल मॉडल’ का काम करते हैं। लेकिन उनका यह आचरण उस जनविश्वास को खंडित कर देता है। विपक्षी दलों को अनावश्यक विरोध करना है और उस विरोध में सभी सीमाएं लांघनी हैं वहीं सत्ता दल सत्ता के नशे में चूर अपने खिलाफ सही या गलत कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। ऐसे में फिर लोकतंत्र बचा ही कहां रह जाता है। पक्ष-विपक्ष सभी जनप्रतिनिधियों को जनहित में एक अच्छे लोकतांत्रिक आचरण का निर्वाह तो करना ही चाहिए।