शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करता है तो संकट में आ जाता है। खासतौर पर तब जब वो बिना विचारे अपनी शक्ति का इस्तेमाल किसी ऐसे कमजोर व्यक्ति के ऊपर करता है तो अपनी इस कार्रवाई से वो अपनी छवि तो खो ही देता है साथ ही उस कमजोर व्यक्ति को इस नजर से मजबूत बना देता है कि वो उसकी बिना विचारे इस्तेमाल की गई ताकत को सहन करने का आदी भी हो जाता है और सहने की शक्ति भी जुटा लेता है। यही स्थिति आज रुस के राष्टÑपति पुतिन की बनकर रह गई है। उसने यूक्रेन जैसे छोटे देश पर बिना विचारे, बिना कोई व्यवस्थित योजनाए बनाए यह सोचकर हमला कर दिया कि पांच-छह दिन में ही वो यूक्रेन को घुटनों पर बैठा देगा और अपनी मर्जी के मुताबिक यूक्रेन को अपने कब्जे में लेकर अपने हिसाब से उसकी सियासी व्यवस्था बना देगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। आज यूक्रेन के खिलाफ रूस के हमले शुरू हुए 50 दिन से ऊपर हो गए और रूस के ताबड़तोड़ हमलों के बाद भी उसे वो सफलता नहीं मिल पाई जो वो शुरू के पांच-छह दिन में ही हासिल कर लेना चाहता था। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े इस युद्ध ने महायुद्ध की शक्ल ले ली और पुतिन विश्व का सबसे बड़ा खलनायक, तानाशाह और नरसंहार करने वाला एक बड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया। रूस जैसी महाशक्ति, यूक्रेन जैसे छोटे देश पर पचास दिन तक लगातार पुरजोरता के साथ हमला करने पर पूरी दुनिया के सामने इस बात का प्रमाण आज दे रही है कि वो अब वो महाशक्ति नहीं रही जिसे दुनिया विश्व की एक महाशक्ति के रूप में देखती थी। आज की स्थिति यह है कि अमेरिका और चीन दोनों ही देश शायद इसी बात का इंतजार कर रहे हैं कि रूस का बारुदी खजाना खाली हो या इतना कम हो जाए कि वो अपने वर्तमान आर्थिक अभावों के बीच महाशक्ति की दौड़ से ही बाहर हो जाए। पुतिन जो स्वभाव से तानाशाह प्रमाणित हो गए हैं वो आज विश्व में अलग थलग पड़ गए हैं और अकेले खड़े नजर आ रहे हैं। चीन जो मूल रूप से रूस की विचारधारा वामपंथ का ही एक हिस्सा है वो भी यही चाहता है कि रूस इतना कमजोर हो जाए कि दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरी महाशक्ति के नाम से चीन को ही जाना जाए। पुतिन इस समय इतना बौखला गए हैं कि वो ये जिद पकड़ चुके हैं कि वो यूक्रेन को तहस-नहस करने के साथ-साथ दुनिया के नक्शे से उसका नाम ही हटा दे। ऐसा कुछ करने में पुतिन इस हद तक भी जा सकते हैं कि वो अपनी असफलता की निराशा में परमाणु बम का भी यूक्रेन पर इस्तेमाल कर दे। वो ये भी जानते हैं कि ऐसा कुछ करने में अमेरिका सहित यूरोप के सभी मुल्क उसके खिलाफ संयुक्त हमला बोल सकते हैं, इसलिए वो अपनी हताशा में यूक्रेन के साथ-साथ उसके अन्य सहयोगी देशों पर भी अपने बचाच में परमाणु हमला कर दे। पुतिन की स्थिति बिल्कुल वैसी ही बन गई है कि जैसे कभी विश्व के सबसे बड़े तानाशाह माने जाने वाले हिटलर की बनी थी और निराशा व अवसाद की स्थिति में आकर उद्देश्यपूर्ति न होने पर हिटलर ने स्वयं खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। पुतिन भी आज कुछ ऐसे ही हताश नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपनी अब तक की असफलता की हताशा में अपनी ही फौज के बीस बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया यह कहते हुए कि उन्होंने यूक्रेन के खिलाफ हमले में उदासीनता बरती और वो परिणाम नहीं दिए जो पुतिन चाहते थे। रूस पर विश्व के कई मुल्कों ने कई तरह की आर्थिक पाबंदियां लगा रखी हैं, और रूस पचास दिन से अधिक चले इस युद्ध में आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट सा गया है। इन सभी परिस्थितियों के चलते पुतिन अपनी बौखलाहट और हताशा में कभी भी यूक्रेन और उसके अन्य सहयोगी देशों पर परमाणु हमला बोल सकते हैं, वरना दूसरा विकल्प ऐसी हताशा मेंं वही बनता है जो कभी हिटलर का बना था कि पुतिन असफलता की निराशा में हिटलर जैसा ही कोई कदम उठाकर खुद को खुद से ही खत्म कर दें। परंतु ऐसा कुछ करने से अधिक संभावना यही बन सकती है कि वो अंतिम विकल्प के रूप में परमाणु बमों का इस्तेमाल करें और दुनिया को एक और विश्व युद्ध में धकेल दें।